Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 241
________________ 230 रूप जीवन के चरम लक्ष्य प्राप्त करने की सामर्थ्य रखती है। राजीमती विदुषी है। उसे साहित्य, दर्शनशास्त्र आदि का अच्छा ज्ञान है। उसका हृदय कोमल भावनाओं से भरा हुआ है। वह दया, करूणा, प्रेम, सहानुभूति आदि गुणो से युक्त है। वह अतिथि-सत्कार में कुशल है। वह एक पतिव्रता नारी है; एक बार श्री नेमि को पति के रूप मे वरण करने के बाद अन्य किसी पुरूष से विवाह करने के लिए तैयार नहीं होती है। राजीमती का चरित्राङ्कन करते समय कवि मानव-मन में अपनी गहरी पैठ का परिचय देते है। प्रथम मेघ दर्शन पर राजीमती की उक्तियो के द्वारा वे विरहिणी स्त्री की भावनाओं और चेष्टाओ तथा मेघ के बीच उपस्थित भावसंवाद को बड़ी मनोवैज्ञानिक पकड़ के साथ उभारते है। राजीमती का चित्रण उन्होंने भावुक किन्तु बुद्धिमती स्त्री के रूप में किया है। स्वामी के वैराग्य से दुःखी और मर्माहत वह उन्हें तरह-तरह से समझाने का प्रयत्न करती है। उनके जीवन में अपना स्थान और महत्व वह अनेक तर्को से सिद्ध करती है। जैनमेघदूतम् मे इन दो प्रमुख पात्रों के अतिरिक्त श्रीकृष्ण और उनकी पत्नियो के चरित्र हमारे सामने आते हैं। श्रीकृष्ण श्री नेमि के चचेरे भाई थे। इन दोनो मे अत्यधिक स्नेह थे। आचार्य ने काव्य में श्री कृष्ण के व्यक्तित्व को बहुत छोटे-छोटे प्रसंगों के माध्यम से उभारा है। काव्य में श्री कृष्ण विद्वान, दयालु, विनम्र, बलशाली, रसिक और आकर्षक पति की भूमिका में आते है। ये गृहस्थ आश्रम के साथ-साथ मानव जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करने मे विश्वास रखते हैं। श्रीकृष्ण अत्यन्त सहृदय हैं और किसी को दुःखित नहीं देख सकते। श्री कृष्ण की पत्नियों का चरित्र स्वभाविकता के साथ चित्रित है। ये पतिव्रता नारी है। ये अपने पति की आज्ञा की अवहेलना नहीं करती। श्री

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