Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 240
________________ 229 प्रमुख कोश में खोजने पर भी नहीं मिलते। जैसे अमा, हल्लीसक, खरू, वशा आदि कवि ने कहीं-कहीं अत्यन्त रम्य कल्पनाओं को भी बड़ी दुरूह भाषा मे प्रस्तुत किया है।" चरित्र निर्माण की दृष्टि से यदि काव्य का मूल्यांकन किया जाय तो हम देखते है कि आचार्य ने पात्रो को इतनी सजीवता के साथ चित्रित किया है उनकी मञ्जुल मूर्ति हमारे नेत्रो के समक्ष उपस्थित हो जाती है। काव्य के नायक श्री नेमि का चरित्र काव्य का प्रमुख चरित्र है। वे काव्य नायक है। ये जैनधर्म के २२वें तीर्थंकर हैं। ये आदर्श व्यक्तित्व के स्वामी हैं। इनका व्यक्तित्व सुन्दर और प्रभावशाली है। इनमें वे सभी गुण विद्यमान है जो एक आदर्श योगी में मिलते हैं। इनका स्वभाव विनोदी है। साथ ही ये अत्यन्त पराक्रमी भी हैं। काम वासना इनके अन्दर रंच मात्र भी विद्यमान नहीं है, तभी तो अत्यन्त सुन्दरी और गुणवती राजकुमारी राजीमती को त्यागकर और अपनी सम्पत्ति का दान करके तपस्या के लिए रैवतक पर्वत पर चले जाते हैं। श्री नेमि जागरूक है। श्री नेमि अत्यन्त वैराग्यवान महापुरूष हैं और सांसारिक प्रलोभन इन्हे आत्म-साक्षात्कार के संकल्प से डिगा नहीं पाते। इन पर अपने चचेरे भाई श्री कृष्ण तथा उनकी पत्नियों द्वारा की जाती हुई नाना प्रकार की जल क्रीड़ाएँ, बसन्त का आगमन तथा राजीमती के उपालम्भ और अश्रुओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। दूसरी पात्र के रूप में काव्य की नायिका राजीमती के चरित्र का अङ्कन करके आचार्य ने नारी जाति की प्रतिष्ठा की है। आचार्य ने राजीमती के चरित्र को सर्वोच्च शिखर पर असीन कर यह आदर्श प्रस्तुत किया है कि नारी केवल भोग-विलास की वस्तु नहीं है वह सच्ची जीवन सङ्गिनी है। वह मोक्ष र वही २/१६ जैनमेघदूतम् २/२५ वही २/४

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