Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 230
________________ 220 (२) चोरी का माल खरीदना। (३) किसी को नाप तौल मे कम या अधिक देना। (४) कम कीमत की वस्तु को अधिक मूल्य में बेचना। (५) किसी असामन्य परिस्थिति से लाभ उठाने के लिए वस्तु के मूल्य मे वृद्धि। उपरोक्त पाँच प्रकार की चौर वृत्ति से बचना ही अस्तेय है। आचार्य मेरूतुङ्ग ने जैनमेघदूतम् मे अस्तेय व्रत का प्रत्यक्ष रूप से कही भी वर्णन नहीं किया है क्योकि काव्य के नायक श्री नेमि जैनधर्म के २२वें तीर्थंकर है अर्थात् उनके लिए अस्तेय की परिकल्पना करना अपनी दृष्टिकोण में उचित नही समझते हैं। परन्तु अपरोक्ष मे हम अस्तेय का दर्शन करते हैं जैसे काव्य मे कवि ने अपरिग्रह का विस्तृत वर्णन किया है। अपरिग्रह अस्तेय व्रत के बिना असंभव है। बह्मचर्य:- कामवासना का परित्याग करना ही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य के अग्रलिखित अंग बतलाये गये है - (१) दुराचारिणी स्त्रियो से बचना। (२) अश्लील बातो का त्याग करना। (३) शक्ति से अधिक भोग न करना। (४) अप्राकृतिक मैथुन से बचना आदि। संक्षेप मे अपनी स्त्री से संयोग तथा परायी स्त्री से वियोग दोनों ही ब्रह्मचर्य के अंग है। काव्य मे श्री नेमि ने कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया है। श्री नेमि स्वप्न मे भी किसी स्त्री के विषय में नहीं सोचते हैं। यहाँ तक कि वे

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