Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 236
________________ आपने अपने दान से उन प्रसिद्ध कल्पवृक्ष और चिन्तामणि को भी नीचे कर दिया है, जगत के जीवन की लक्ष्मी को धारण करने आपको कौन नही चाहता। 225 आचार्य मेरूतुङ्ग मानव मनोविज्ञान के सम्वेदनशील ज्ञाता है। आचार्य ने नायिका की भावनाओ का वर्णन अत्यन्त मनोवैज्ञानिक रीति से किया है। प्रायः देखा जाता है कि आसमान मे काले मेघो के आते ही समस्त जीव-जन्तु प्राणी आदि प्रसन्न हो जाते है । यह भी एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है। इसी मनोवैज्ञानिकता को कवि ने काव्य मे व्यक्त किया है। एक स्थान पर आचार्य मेरूतुङ्ग ने विरह सन्तप्त मानव चित्त को दुःखी करने वाले मेघ के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को 'एकं तावद्विरहिहृदयद्रोहकृन्मेघकालो" यह कहकर स्पष्ट किया है। इसी प्रकार विरहिणी स्त्रियों को इस मेघकाल में होने वाले कष्ट का जैनमेघदूतम् मे कवि ने अति मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है- " वर्षाकाल में स्वभाव से ईष्यालु स्त्रियाँ अपने शोक को उत्पन्न करने वाले मेघ से जो ईर्ष्या करती है, वह ठीक ही है। क्योकि नीलतुल्य जब यह मेघ श्याम वर्ण हो जाता है, तो वे भी मुख को श्याम बना देती है। जब यह मेघ बरसता है तो वे भी अश्रु बरसाती हैं। यह मेघ गरजता है, तो वे भी चातुर्यपूर्ण कटु - विलाप करती है और जब यह मेघ विद्युत चमकता है तो विरहिणी भी उष्ण निःश्वास छोड़ती है। २ इस प्रकार हम देखते हैं कि कवि ने मेघागमन से प्राणियों पर होने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभावों का सूक्ष्मता के साथ चित्रण किया है। १ जैनमेघदूतम् १/४ जैनमेघदूतम् १/६

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