Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 214
________________ 204 श्रीमान्नेमिः सपरिवृढतां फुल्लकङ्केल्लिमूलम् ।।' भगवान श्री नेमि एक पुष्पित अशोक के वृक्ष की मूल में बैठ गये। श्यामवर्ण वाले श्रीनेमि के प्रत्येक अङ्ग से जलस्राव हो रहा था, ऐसा लग रहा था मानो कोई मदस्रावी गज हो अथवा ऐसा अञ्जन पर्वत हो जिससे झरने बह रहे हो या शरद् ऋतु मे थोडा थोडा जल बरसाने वाले एकत्रित मेघो से युक्त आकाश हो। ___ इस प्रकार कवि की प्रत्येक कल्पना में प्रकृति के सुरम्य दृश्य दृष्टिगोचर होते है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति के बिना काव्य अधूरा रह जाता। जैनमेघदूतम् ३/२

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