Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02 Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. सामंत करी महा महो रे लो॥१॥हा॥सूरि सकारों गुनधारों ग्रहि दिरक जो,धन राजर्षि तिहां संयम उक्कर पालता रे लो ॥हा॥ था गियन गयड सूरिपद होय जो, जव्यांबुज सूरजनी परें अजुवाजता रे लो ॥१॥हा॥ केश नरिंद वरिंदने देई दिरक जो, मासखमणर्नु अणसण पालीने थया रे लो ॥ दां॥ धनवती पण सती पाली अगसण शुक्ष जो, सामानिक सुर सौधर्मे ते बिटुंगयां रेलो ॥ १५ ॥ हांगाचाता दोय तस गुणज्ञाता गु रावंत जो, धनदेवने धनदत्त पण नेला ऊपना रे लो ॥ हां० ॥ गुण याग र रतिसागरमां अवगाढ जो, एह प्रनाव जनमांतर संचित पुण्यना रेलो ॥२०॥हा॥ धन धनवती नेमी राजिमतीना जीव जो, सुरजव सहित कह्यो ए पहिलो नव नलो रेलो ॥हा॥ बारमी ढाल रसाल ए पहेले खंग जो,पहेलो ए अधिकार थयो अति गुणनिलो रे लो ॥१॥ हां ॥ वैरागी त्यागी वडनागी जेह जो, पंमित श्रीजिन विजय गुरु शुन संयमी रे लो॥ हां० ॥ नत्तम विजय विनेय अ गुणवंत जो,पद्मविजय कहे वात ए मुफम नमा रमी रे लो॥२॥सर्व गाथा ॥३७॥श्लोक॥३३॥ इति श्रीमन्नेमरा जिमत्योः सुरसहितःप्रथमनवः समाप्तः॥इति प्रथमाधिकारः समाप्तः ॥१॥ ॥अथ दितीयाधिकारः प्रारभ्यते ॥ ॥दोहा॥ - ॥ प्रणमी पास जिणंदने, जास महिम विख्यात ॥ त्रीजो नव हवे दा खवं, ते सुणजो अवदात ॥ १॥ जरत खेत्रमाहे अने, गिरिवैताढय महं त ॥ रूपमयी लवणाधिगत, पूर्वापर जस अंत ॥ २॥ उंचो पणविस जो यणा, पहोलो मूल पञ्चास ॥ दश जोयण तिहाथी जइ, एहवा तिहां वि लास ॥ ३ ॥ दक्षिण उत्तर श्रेणि तिहां, खेचरनां रहेगण ॥ दश योज न पहोला अजे, तिहां सुगजो मंमाण ॥४॥ नगर पंचास दक्षिण दिशे, उत्तर दिशिमां साठ ॥ रतन कनकमय कूट नव, जिहां दीसे बहु तात ॥ ५ ॥ सिम कूट तेहमां अजे, कोश माठेरो ऊंच ॥ कोश आयाम अध कोश पृथु, जंबूनदम संच ॥ ६ ॥ जिनवर चैत्य ते वर्णवू, प्रतिमा ए कशो पाठ ॥ देवनुवन सम दीपतुं, इणिपरें सूत्रे पाठ ॥ ७ ॥ अंब बकुल चंपक खजुर, शख चंदनवन ज्यांहिं ।। जे मुनिवर पण देखीने, विस्मयPage Navigation
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