Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ ३१४ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. ॥ अथ चतुर्थखंमस्य वितीयोऽधिकारः प्रारज्यते ॥ ॥दोहा॥ ॥ जुगला धरम निवारणो, रुपनदेव नमि पाय ॥ बीजा ए अधिकारमां, मुनिवर गुण कहेंवाय ॥ १॥ इणि अवसर हवे पांमवा, नित शैपदी जे नार ॥ साथें केलि कीडा करे, माने सफल अवतार ॥ २ ॥ण अवसर झेपदी घरे, नारंद थाव्या जाण ॥ मान न देवे झेपदी, रीष चढी तिण वाण ॥३॥ नत्पत्तिया अाकाशमां, धातकी जरतें जाय ॥ नाम अमरकं का नयर, जिहां पद्मोत्तर राय ॥ ४ ॥ ते पण स्त्रीनो लोलुपी, नारदने क हे एम ॥ मुफ अंतेनर सारिखं, कहीं ले के नहिं केम ॥ ५ ॥ ऋषि कहे क पमंक परें, नवि जाणे कांय वात ॥ पांमव घर झेपदी जेसी, त्रिनुवनमा न विरव्यात ॥ ६ ॥ राय मित्र सुर मोकली, तेडावी ते नार ॥ पद्मोत्तर क हे सुंदरी, बीहिक न धरे लगार ॥ ७ ॥ मुजणुं नोगव नोग तुं, शेपदी बोले ताम ॥ मासांतें कहेशो तिको, करशुं तुमचं काम ॥ ७ ॥ ौपदी पण ते महासती,करे तपस्या सार॥हवे परनातें पांमवा,नवि देखे निज नार॥॥ ॥ ढाल पहेली॥. ॥ एकवीशानी देशी ॥ हवे शैपदी रे, खोल करणने नीसया ॥ देश न यरने रे, वनमा जोवा सदु मल्या॥नवि लाधी रे, शुदि कांश शेपदी तणी॥ पांव माता रे, आवी कहे कृमजी नगी॥१॥०॥ कहे कृष्णने झेप दी कोइ, देव दानव हरि गयो ॥ कृष्ण सुगीने थया शोकातुर, कुण नाय वयरी थयो ॥ नारद मुख वली शोध साधी, पांव जेई साथ ए॥ कृष्ण सायर तटी आराधी,मागध तीरथ नाथ ए ॥ २ ॥ढाल॥ तव सुस्थित रे,क हे सुणो नारायण तुमो ॥ झैपदीने रे, लावी आपुं तुमने अमो ॥ पद्मरा जा रे, नयर सहित नाखू सायरें। कहे कृष्णजी रे, एह न कर मायरे ॥३॥०॥ जावू माहरे तिहां तेणे तुमें,मारग आपो तिहां जश् ॥ जीती ते हने आईं वहेलो,ौपदी साथें लश् ॥ब रथ जावे मार्ग ते तो, आप्योतव हरि जाय ए॥ जीते समरे तेह नरपति,ौपदी शरणे बाय ए॥४॥ढाल। मोरारीयें रे, मूक्यो तेहने जीवतो॥ौपदी लेई रे,वलीयो शंख वजावतो॥ मुनि सुव्रत रे, तिहां जिन कपिल नारायणो॥ सुणीयो शंख रे, पूले स्वामी

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80