Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 70
________________ ३०४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. हा ॥ कृष्मगुणहेतु इम जाणीयें, वली गुण कहुँ केहा ॥ वा० ॥ २५ ॥श्म सखी वात करतां थकां, कही सातमी ढाल ॥ पद्म कहे सांजलो नविज ना, प्रनु चरित्र रसाल ॥ वा॥ २६ ॥ सर्वगाथा ॥ २२५ ॥ ॥दोहा ॥ ॥ राजिमती इण अवसरें, मूके दीर्घ निसास ॥ तव सहियर पूछे इस्यु, करती कोडि विखास ॥१॥ आग्रह करी जब पूबीयुं, सा कहे तव सवि पाद ॥ दाहिण फुरके लोयणं, अपमंगल अविवाद ॥ २ ॥ हृदयमांहि ले दाय जिम, बुरीयें दे तेम ॥ जगअभुत जगवालहो, देखतां प्रनु नेम ॥३॥ इम सुणीने सहियरो कहे, मत कहे एह वयण ॥ अपमंगल दूरें गयां, सांजल रे अम वयण ॥॥ निरुपम नोग तुमें नोगवो, निरुपम ने मनी संग ॥ विलंब नहिं एहमां हवे,करजो नवनव रंग ॥५॥ मनवनन तुज वालहो, ए आव्यो निरधार ॥ मत कायर था एहमां, एम जंपे सदु नार ।। ६ ॥ण अवसर जगतातजी, आगल चाले जाम ॥ परमेश्वर जिनजी सुणे, करुण दीन स्वर ताम ॥७॥ ॥ढाल आतमी ॥ ॥ नंद सलूणा नंदना रे लो ॥ ए देशी ॥ नेमजी कहे सुण सारथी रेलो, कुण रुवे ने दुःखनारथी रे लो ॥ केवल करुणाहेतु रे लो, तव सारथी श्म कहेत हे रे लो ॥ १ ॥ केम पूडो प्रंनु जाणता रे लो, तुम वि वाहें पशु प्राणता रे लो ।। जादव नोजन कारणे रेलो, एह पशु संहा रणे रेलो ॥२॥ गाम नगरवासी तणा रे लो, गुफा पर्वत निकुंज घणारे लो ॥ जलचर थलचर ननचरा रे लो, जीव घणा नेला कस्या रे लो ॥३॥ आणी बांध्या एहमारे लो, नहीं श्वासोबास जेहमां रे लो॥ निज निज नापायें रडे रे लो, मरणना नयथी तडफडे रे लो ॥ ४ ॥ नेम कहे वैरा गीयो रे लो,रथ फेरो सोनागीयो रे लो॥जोऊ नजरें माहरी रे लो,एहनो नहिं को वाहरी रे लो ॥ ५॥ मृग सूअर घणा रोकडांरे लो, गामर स सला नेंसडा रे लो ॥ राशिब केश पांजरे रे लो, बेडीव विनती करे रे लो ॥ ६ ॥ मोर तित्तर लावां घणां रे लो, पंखी लखो नवि जाये ग एयां रे लो ॥ गोह नकुल बहु रंधिया रे लो, निर्दय पुरुचे वेधिया रे लो ॥७॥ शून्य ने संत्रांत लोयणां रेलो,जीवितनी वांग तणा रे लो ॥प्रच

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