Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ २७४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. देखीने जश्ने नामाने कहे रे ॥१॥ नामा कहे जितशत्रुने श्म वाणी जो, तुम्ह पुत्री परणावो अम्ह सुतने नली रे ॥ जितशत्रु कहे परणावं दुं ताम जो, हाथ जाली तुम्हें ले जावो अम्हें मोकली रे ।। १३ ।। म सुपीना मा तेडण आवे तास जो, तब तिहां सांब कुमार विचारे एहवं रे ॥ लो क सदु देखो मुफ सांबर्नु रूप जो,नामा देखो रूप ते कन्या जेहबुं रे ॥१॥ हाथ जाली तेडी जाय सांबने नारी जो, नर नारी सदु विस्मय पामे तिणे समे रे ॥ कर जाले बीजी कन्यानो आप जो,आप तणो कर आपे नीरु हा थमें रे ॥ १५ ॥ परणी वासनुवनमां जावे जाम जो, तव नृकुटी करी सांब कहे जा वेगलो रे ॥ ज संनलावे जामाने ते वात जो, ए तो आ व्यो सांब ते मानुं मयगलो रे ॥ १६ ॥ जामा कहे कोणें तेड्यो तुऊने ज जो, तव कहे तुम्हें तेड्यो ने परणाव्यो वली रे ।। सारखी सघला हा रिकावासी लोक जो, लोकें पण तस साख जरी आवी मली रे ॥ १७ ॥ कृमें पण भावीने संघली नार जो, सद् साखें परणावी सांब कुमारने रे ॥ एक दिन श्रीवसुदेवनी पासें तेह जो, आवे रमता रमता नमसाकारने रे॥ १७ ॥ सांब कहे बहु काल नम्या तुम्हें बाहार जो, वदु नारी परण्या तेहमां अचरिज किमु रे ॥ नाम वेठां कन्या शत परण्या स्वामी जो, अंतर जाणो तुम्हने अमविच्चे इस्युं रे ।। १ ए ॥ कहे वसुदेव तुं कूपमंकनी तुल्य जो, काढी मूक्यो ने बलथी तुं आवियो रे ।। देश भ्रमण करतां मुझने ब हमान जो, समुविजय करीने घर तेडी लावीयो रे ॥ १० ॥ पामी ते अपमान ने प्रणमे पाय जो, स्वामी में अझानपणे इम नांखीयुं रे ॥ म हारो ए अपराध ते खमजो स्वामी जो, फरी नहिं नां जेह अम्हें तुम्ह दाखीयुं रे॥१॥त्रीजे खंमें ने त्रीजे अधिकार जो, त्रीजी ढाल ते नां खी एह मनोहरु रे ।। पंमित उत्तम विजयनो शिष्य कहंत जो, पद्मविजय इम नविका सुजो गुणधरु रे ॥ १२ ॥ सर्व गाथा ॥ ७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ यवनहीपथी शण समे, बहु व्यापारी लोक ॥ याव्या करियाणां नरी, दाम करे तस रोक ॥ १ ॥ वेची करियाणां सवे, राजगृहें ते जाय ॥ रत्न कंबलने वेचवा, लान अधिक इबाय ॥२॥ शीत कृष्ण हरता सदा, श्लक्ष्ण रोम होय तास ॥ जीवजसा ते देखीने, मूल्य करे तस पास ॥ ३ ॥ व्या

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80