Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 62
________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. २६४ कहे एहवी वात, कनकमाला कहे सांगलो ॥ ५ ॥ नहिं तुं माहरो पूत, ढुं ताहरी माता नहिं | जाए तुं मुऊ याकूत, तव बोजे कुंअर सही ॥ ६ ॥ विद्या यापो मुऊ, कदेशो तिम करशुं पढ़ें ॥ खापुं विद्या तुऊ, तव कुं अर बोले अबे ॥ ७ ॥ ॥ ढाल आठमी ॥ ॥ पारिजातकनुं फूल स्वरगथी | ए देशी ॥ पद्युम्न कहे सुण वात, तुं माहरी ते मुऊने पहेलो पाल्यो । वली प्रज्ञप्ति गौरी विद्या, यापी मुने लाल्यो ॥ १ ॥ ना जो के नहिं जो के, जाणो मन प्राणो ॥ नारे माता नहिं करूं जोग तु सायें रे || नहिं करुं नहिं करूं माहरी माता, हवे गु रुणी मुऊ दुइरे ॥ ए यांकणी ॥ पुर बाहिर गयो कुमर ते जाम, तव ते यंग विदारी । पूबे पति तव जांखे एहवं, तु पुत्रे इम कारी ॥ नाजो० ॥ २ ॥ करे प्रहार प्रद्युम्नने जइने, तव ते साहमो थाय ॥ मरण लह्या बहु पुत्र शं बरना, क्रोधें देह नराय ॥ नाजो० ॥ ३ ॥ शंबरने प्रद्युम्न ते जांखे, कन कमाला ती जेह ॥ वात सुली थिर थइ ति हरखी, बालिंगे तस दे ह ॥ नाजो० ॥ ४ ॥ पश्चत्ताप करे मन बहुलो, नारद ऋषि तव याव्यो ॥ नारदने खावे प्रज्ञप्ति, तव तेहने मन जाव्यो | नाजो० ॥ ५॥ पूजी कहे नारदने वात, कनकमाला तणी जाइ ॥ तव नारद बोजे सुण माहरी, वात ते मनमां लाइ ॥ नाजो० ॥ ६ ॥ सीमंधरजीयें नाख्युं तेह, सघलुं तस सं लावी ॥ कहे ताहरी माताने पण बे, ते सुण वात ते ठावी ॥ नाजो० ॥ ७ ॥ पुत्रविवाहें केश ते आपे, खागल थाये जेहनो ॥ ते नामानो सुत नानु बे, थाये विवाह ते एहनो ॥ नाजो० ॥ ८ ॥ एक तो केशनुं दान ने बीजूं, वियोग पड्यो ताहरो जेह ॥ ते रोगें पीडीत तुज माता, मरणने लहेशे तेह ॥ नाजो || प्रज्ञप्तियें विमान विकूर्ति बेशी हवे ते मांहि ॥ नारदने पद्युम्न दोय चाल्या, द्वारिका जणी उष्ठाही ॥ नाजो० ॥ १ ॥ नारद कहे ए रिका ताहरी, धनदें रतने पूरी ॥ प्रद्युम्न कहे विमानने ठावो, करूं या श्वर्य पूरी ॥ नाजो० ॥ ११ ॥ जोजो के जश्यें कें, वहेला के वारु ॥ के वाल्हा माहरा यावो शुभ दीदारू रे || ए की ॥ नानुनी कन्या उपाडी, मूकी नारद पासें ॥ नारद कहे बाला मत बीजे, नो सुत सुविलासें ॥ जो० ॥ १२ ॥ वानरनुं एक रूप करोने, एक वानर कृष्ण

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