Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२७४ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो णी, करें पूजा नक्ति ते अति घणी ॥ जिनप्रतिमानी करी अर्चा, वली गीत नाटक करे चर्चा ॥१॥ त्रटक ॥ मन धरी पूजे, पाप धूजे, श्रीवसु देवजी, इणि परें ॥ देखि पामे, हर्ष ठामे, वली वली, स्तवना करे ॥ पुण्यवं तो, ए हसंतो, नक्ति करे, जिनवर तणी ॥ करे प्रनावना, जैनशासन, ढुं पण पुण्य, तणो धणी ॥ ॥ एहवं अदनुत में लद्यु, इणि परें श्रीवसुदेवें कह्यु ॥ पूजा संपूरण करि चाल्यो, तव वसुदेवने तिहां नाल्यो ॥३॥०॥ चिंते चित्तमां, कुण डे ए, रूप अनुप, सुहामणो ॥ अमर खेचर, असुरमां हे, रूप नहिं, कहिं कामणो ॥४॥ हस्तसंझायें तेडीयो, मन चिंते वसु देव नेडीयो॥मनुजनें एह ते देव, एहनी जश्ने करवी सेव ॥५॥३॥ सेव करवी, आग धरवी, एम चितवी, ते गयो ॥ धनदनें एक, काम हुँतुं, तिणें आदर, बदु थयो ॥ ६ ॥ पूजा करी ते नली परें, तव बोले वसुदेव शुनस्वरें ॥ एक विनीत ते सहजथी पोतें, वली करी पूजा सदु जोतें ॥ ७ ॥ ॥ सहू जोतें, हाथ जोडी, मान मोडी,ने कहे ॥ करोआ गा, स्वामी मुझने, करुं कारज, गह गहे ॥ ७॥ कहे वैश्रमण सुणो तुमें, एक वात कहुँ तुमने अमें ॥ करो दूतपणुं अमारूं, कारय थाशे वली तुमारूं ॥॥ ॥ तुमथी अमारु, काम थाशे, जा हरिचंद, नृप घरे ॥ कनकवतीने, जई नांखो, अमें कहिये, तिणि परें ॥ १० ॥ तव निज थानक जश् करी, मूके अलंकार ते मन धरी ॥ दूतनेज नचित जे हो य, महेलां वस्त्र पहेरे सोय ॥ ११ ॥०॥ सोय महेला, वस्त्र देखी, धन द जांखे, सांनलो ॥ आबरें सदु, लोक पूजे, तुं केम आव्यो, श्यामलो ॥ १२ ॥ यतः॥ आमंबरोहि सर्वेषां, मान्यो जगति वर्तते ॥ आमंबरेण ही नानां, कोपि नाख्यत्प्रियं वचः॥ १ ॥ शौरी कहे सुणो स्वामीजी, नहिं महेला वस्त्र कामजी ॥ दूतने तो वचन ते सार, तेतो मुझने के आधार ॥१३॥ ० ॥ आधार के एम, कहे जांखी, ढाल चोथी, ए जली ॥ गुरु उत्तम, विजयसाथें, पद्मविजयें ए, कही वली ॥ १४॥ सर्व गाथा ॥१५॥
॥दोहा॥ ॥ स्वस्ति तुझने होयजो, धनद कहे जा त्यांहि ॥ तव चाव्या ऊता वला, हरिचं गृह ज्यांहि ॥ १॥ हय गेय रह जड बदु मल्या, रोक्युं राय नुं हार ॥ पेशीने को नवि शके, थर अदृश्य तिणि वार ॥२॥ चाल्यो

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