Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ ४४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. नहीं कोई हाण ॥ पु० ॥ २॥ नूपतियें तस मानी वातडी, तेहने दी, सन्मान ॥पु॥ तेह जश्अनंगसिंहने कहे,हरख्योनृप तिणे थान ॥पु॥रए॥ एक दिन रत्नवतीने मोकली, पाणिग्रहणने काज ॥ पु० ॥ महा था बरें परण्यां ते बेदु, शोने घणुं युवराज ॥पु० ॥ ३०॥ सुख जोगवे ते सं सारनां, जेम महर्षिक देव ॥ पु०॥ पुण्य कस्यां ते कहिं जाये नहीं, क रें वली धर्मनी सेव ॥ पु० ॥३१॥ लोक प्रशंसा करता अति घणी, दे आणंद मन नयण ॥ पु० ॥ बंदीलंद पढे गुण जेहना, संतोषे वदु सयण ॥ पु०॥३५॥ रत्नवती\ करे जिन नक्तिने, वंदे नित्य गुरु पाय } पु० ॥ शास्त्र सुणे ते अति सोहामणां, दानी झानी ते थाय ॥ पु० ॥ ३३ ॥ बीजे अधिकारें सोहामणी, नाखी बातमी ढाल ॥॥ पु० ॥ पद्मविजय कहे पुण्य संचयथकी. नित्य होय मंगलमाल ॥ पु० ॥ ३४ ॥ सर्व गाथा ॥ १ ॥ ॥दोहा॥ ॥धनदेवने धनदत्त बडु, लघु चाता थया तास ॥ देवलोक मांथी च वी, पुण्य प्रबल जास ॥२॥ मनोगतिने चपलगति, नाम अडे सुखका र॥ नंदीश्वर प्रमुखें नमे, चैत्य घणां जण चार ॥२॥ विहरमान जिनवर कनें, सुणे हर्ष उपदेश ॥ पदकज सेवे ऋषि तणां, नमतो देश विदेश ॥३॥ काल एणि पेरें निर्गमे, लहि एकदिन संवेग ॥ वय परिपाक जाणीकरी. धरे नृप मन नछेग ॥४॥ राज्य ठवी तव कुंवरने, आप थयो मुनिनूप ॥ घाती अघाती क्ष्य करी; पाम्यो सिम स्वरूप ॥ ५ ॥ ॥ ढाल नवमी॥ ॥ धारा ढोला ।ए देशी॥ चित्रगति विद्याधरु रे, पाले राज्य उदार ॥ गुणना जोगी॥ पठितमात्र आवे कला रे, विद्या सि६ श्रीकार ॥गु० ॥ ॥१॥आण वहे विद्याधरा रे, पुण्य प्रबल जग जास ॥ गु० ॥ रत्नवती करे पाटवी रे, अंतेवरमां खास ॥ गु० ॥२॥ खेचर एक एणि अवसरें रे, मणिचूड जस नाम ॥ गु० ॥ एक दिन ते परजव गयो रे, दोय पुत्र तस गम ॥ गु० ॥३॥ शशी सूर नामें अजे रे, राजनिमित्त करे यु६ ।। गु०॥ चि जगति वहेंची दीये रे,राज्य तास अविरु६ ॥गु०॥॥ युक्ति वचनें समजा विया रे, नवि समजे पण मूढ । गु० ॥ कलह करे अति आकरो रे, वैर थयों अति गूढ ॥ गु० ॥ ५ ॥ युरू थयां तस बाकरां रे, मरण लयां ते दोय॥

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