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[८] बनी हुई रूढ़ियाँ और अज्ञान भस्मसात् हो जाय और नव प्रकाश रश्मियों से जीवन जाज्वल्यमान हो उठे।
लेखक ने जैनियों के केवल धार्मिक पतन पर ही नहीं, सामाजिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और शिक्षा तथा स्वास्थ्य विषयक पतन पर भी दृष्टिपात किया है। इस बारे में मुझे इतना तो कहना है कि जैन समाज के पतन के कारणों का उल्लेख करते समय लेखक उन मूल बातों पर नहीं गया है, जिनसे जैन समाज का ही नहीं, सारे भारतीय समाज का पतन हुआ है। भविष्यत खण्ड में सुधार के उपाय बताते समय भी लेखक की विचार-धाग विशाल नहीं बन पाई है। तथापि कई स्थलों पर भावों का उद्रेक बहुत सुन्दर हुआ है। ऐसे स्थल हृदय को छूने हैं और पाठकगण लेखक द्वारा अंकित चित्र में अपने को खो भी देते हैं।
आशा है लेखक 'जैन-जगती' द्वारा जैन-समाज में मनोवांच्छित जागृति और जीवन का प्रवाह बहा सकेगा जिससे लेखक का ध्येय और समाज का कल्याण दोनों कृतकृत्य होंगे।
४ कामर्सियल बिल्डिंग ।
कलकत्ता ३०-७-४२
भँवरलाल सिंघवी