Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 2
________________ ___ विषय-सूची। प्रार्थनायें। १. जनहितैषी किसी स्वार्थबुद्धिसे प्रेरित होकर निजी लाभ के लिए नहीं निकाला जाता है। इसमें जो समय और शक्तिका व्यय किया जाता है वह केवल अच्छे १ भद्रबाहु-संहिता ( ग्रन्थपरीक्षा ) विचारोंके प्रचारके लिए। अत: इसकी उन्नतिमें लेखक, श्रीयुत बाबू जुगलकिशोरजी। हमारे प्रत्येक पाठकको सहायता देनी चाहिए। मुख्तार। ... ... ५२१ २. जिन महाशयों को इसका कोई लेख अच्छा मालूम २ हिन्दी-जैनसाहित्यका इतिहास. ५४० हो उन्हें चाहिए कि उस लेखको जितने मित्रोंको वे पढ़कर सुना सकें अवश्य सुना दिया करें। ३ सभापतिका व्याख्यान-व्या०,श्रीयुत ३. यदि कोई लेख अच्छा न मालूम हो अथवा विरुद्ध बाबू माणिकचन्दजी जैन बी. ए. एल मालम हो तो केवल उसीके कारण लेखक या एल. बी. वकील-- ... ... ५६९ सम्पादकसे द्वेष भाव न धारण करने के लिए सवि४ लड़ना धर्म है या क्षमाभाव रख- नय निवेदन है। ना-ले०, श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाह ५८९ ४. लेख भेजनेके लिए सभी सम्प्रदायके लेखकोंको ५ स्याद्वाद महाविद्यालयकी भीतरी आमंत्रण है। -सम्पादक। दशा-ले०, श्रीयुत बाबू निहालकरण सेठी एम. एस. सी. ... ... ५९५ ।। १. हमारे हिन्दी ग्रन्थोंकी कदर । ६ उन्माद (कहानी)- ले०, श्रीयुत बाबू हिन्दी-ग्रन्थरत्नाकरके ग्रन्थोंके प्रेमी यह जानकर पदुमलाल बक्षी बी. ए. ... ५९९ बहुत प्रसन्न होंगे कि इन्दौरकी 'महाराजा होलकर्स ७ विधवा-विवाह विचार ... ... ६.१ हिन्दीसाहित्य-समिति ' ने हमारी नीचे लिखी पुस्त८ विविध प्रसर ... ... ६१० कोंपर प्रसन्न होकर उनके लेखकोंको नीचे लिखे अन९ अहिंसाका अर्थ ( कविता )—ले. सार परितोषिक प्रदान किया हैः___ श्रीयुत प. रामचरित उपाध्याय ... ६२३ १ स्वावलंबन ( हिन्दी सेल्फहेल्प )-ले०, १० विश्वप्रेम ( कविता ) ले० श्रीयुत बाबू - बाबू मोतीलाल बी. ए , ... ... ... ४५) मोतीलाल जैन वी. ए. ... ... ६२४ २ सफलता और उसकी साधनाके उपाय-ले०, बाबू रामचन्द्र वर्मा, ... २०) __३ युवाओंकी उपदेश-ले०, बाबू दयाचन्द नियमावली। वी. ए., २०). १. वार्षिक मूल्य उपहारसहित ३) तीन रुपया पेशगी ४ व्यापाराशिक्षा-ले०,पं० गिरिधर शर्मा,२०) ___ इसके सिवाय मध्यप्रदेश ( सी. पी.) के शिक्षाहै। वी. पी. तीन रुपया एक आनेका भेजा जाता है। है। खातेने अपने यहाँकी लायबेरियोंके और विद्यार्थि२. उपहारके बिना भी तीन रुपया मूल्य है। । योके पारितोषिकके लिए नीचे लिखी पुस्तके मंजूर ३. ग्राहक वर्षके आरंभसे किये जाते हैं और बीचसे अर्थात् ७ वें अंकसे । बीचसे ग्राहक होनेवालोंको की हैं और हमें इस प्रकारके नैतिक शिक्षाप्रद ग्रन्थ उपहार नहीं दिया जाता। आधे वर्षका मूल्य प्रकाशित करनेके लिए बहुत ही उत्साहित किया है:११) रु. है। १ मितव्ययता (किफायतशारी) मू. ) ४. प्रत्येक अंकका मूल्य पाँच आने है। २ चरित्रगठन ओर मनोबल , ) ३ अच्छी आदतें डालने की शिक्षा, ॥ ५. सब तरहका पत्रव्यवहार इस पतेसे करना चाहिए। ४ स्वावलम्बन (सेल्फ हेल्प) , १॥ मैनेजर-जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, ५पिताके उपदेश ६ शान्ति वैभव हीराबाग, पो० गिरगांव-बंबई। ७ युवाओंको उपदेश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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