Book Title: Jain Dharm Prakash 1937 Pustak 053 Ank 02 Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिदार LAAD Mam HTRA LIRAJYA Fe APER25 Aka : PANCHARA S - -- -- S HALARIACAMAN . EAM T hin-...- muramerarmi UKARNmmarSAKULAL-Kanakari.arafKALAMETE.moi આ પુસ્તક પર નું । म २ વિશાખ ( વીર . ર૪૬૩ श्री शान्तिजिन स्तवन ( छोटस बलमा मेरे आँगने में नीलो बले-यह राग. शान्तिाजनकला को जिये. तोगन्ति पाय । शानिय को मनाशी ॥र. : शरण कुमार विशालये, शान्ति आले. जगन बगान मिटानये. ना शान्ति पाये। शान्ति ॥२॥ शान्ति सेन दिखाइये, ना शान्ति आवे। शान्ति लेवनी में गाखिये. ना शान्ति आने ॥ शान्ति ॥२ स्वपने में बाल दियाइवे. मा शान्ति आवे । प्रेम में तुमरे रिझाइये. तो शान्ति आके ॥शान्तिः ॥ ३ ॥ पौषध में पागवत आवियो, तो झारणे गाखे । दया का पाठ यताइये. तो शान्ति आवे ॥ शान्ति ॥ ४ ॥ नगर 'आघाटपुर आविये, तो शान्ति आये। चार जिनालय भेटिये तो, शान्ति आवे । शान्ति ॥ ॥ सुवोध मल्ली न्याय साथ में, शान्ति को पावे । सागर से पार उतारिये, तो शान्ति आवे ॥ शान्ति० ॥ ६॥ ऋषि अनूपचन्द्र यु कहे, शान्ति को ध्यावे । मोह.को मन से निकालिये, तो शान्ति आवे ।। शान्तिः ॥ ७ ॥ ऋषि अनूपचन्द्र-उदयपुर १. आघाटपुर, उदयपुर स्टेशन से शहर जाते रास्ते में आता है। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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