Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. जैनधर्म परिचय मनुष्य की सृजनात्मकता का ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जिसे जैन आचार्यों एवं मनीषियों ने अपनी सृजन । की साधना से समृद्ध न किया हो, चाहे वह धर्म । और दर्शन का विचार का पक्ष हो या आचार का, चाहे भाषा और साहित्य के शास्त्र का पक्ष हो या प्रयोग और उसकी रचनात्मकता का, चाहे कला और विज्ञान के द्वारा की जाने वाली यथार्थ की नित नयी परीक्षा के साथ कलात्मक या वैज्ञानिक तथ्यों व वस्तुओं की प्रस्तुति का हो या उनके विश्लेषण का, चाहे गणित के सिद्धान्त व परिगणन का हो या भौतिक विज्ञान के आकलन का, चाहे मूर्तिकला का हो या चित्रकला का या उनकी बारीकियों व सपाट प्रस्तुतियों का, चाहे गृहस्थ के जीवन का हो या साधक के जीवन का, आदि-आदि। मनुष्य की सृजनात्मकता के इन सभी पक्षों को लेकर जैनों के अवदान को यहाँ इस पुस्तक में सार-संक्षेप में रखा गया है। प्रयास रहा है कि अधिकांशतः सभी पक्ष इसमें समाहित हो जाएँ। धर्म-दर्शन के आचार व विचार सम्बन्धी विविध विषयों के साथ-साथ जैन जीवन से जुड़े कुछ विषयों यथा- संगीत, गणित, वास्तु, ज्ञान-विज्ञान, इतिहास, भूगोल, ज्योतिष, अलंकारशास्त्र, भाषाचिन्तन, भारतीय व्याकरण परम्परा को जैनों का अवदान, उनके द्वारा पोषित कोश परम्परा, आयुर्वेद की परम्परा, वैश्विक सन्दर्भ में जैनधर्म आदि इसप्रकार की सामग्री भी इस संचयन में सँजोई गयी निस्सन्देह यह बृहत् कृति जैन-जैनेतर सभी पाठकों एवं स्वाध्याय-प्रेमियों को उपयोगी सिद्ध होगी। For Private And Personal Use Only

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