Book Title: Jain Dharm Kya Hai Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 4
________________ (२) वैज्ञानिक ढंगसे ही शीघ और निौति फल प्राप्त होते हैं। __ जैन धर्मके समझनेके लिए यह आवश्यक है कि पहिले हम 'धर्म'का अर्थ समझ लें । हम निशदिन धर्म २ कहा करते हैं परन्तु उसके यथार्थ भावको समझनेमें असमर्थ हैं । भला जब इतने वर्तमान प्रचलित मत ही विविध विविध प्रकारका थोथा धर्म निरूपण करें तो उपर्युक्त असमर्थतामें संशय ही क्या है ? ___ साधारणतया संसारमें चक्कर काटते हुए हम : सदृश जीवोंको सांसारिक दुःख और पीडाओंसे हटा मुक्ति सच्चे मार्गमें लगानेको धर्म कह सके हैं । सर्व प्राणीसमुदाय भी-मनुप्य, पशु, पक्षी आदि-प्रत्येक वस्तु और कार्यमें सुखकी वाञ्छा करते हैं । संसारमें ऐसा कोई जीव नहींPage Navigation
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