Book Title: Jain Dharm Kya Hai
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 22
________________ (२०) अथवा तियञ्च गतिके दुःखोंमें ले पटकती है। प्राचीन कालके मनुष्य बुद्धि, विद्या अंथवा उस वन्तुविज्ञानसे किमी प्रकार भी अनिभिज्ञ अथवा अल्पज्ञानी नहीं थे जिस ज्ञानके आधारसे इस आधुनिक मन्यताका निर्माण हुआ है। सुतरां उनमें विशेषता और थी कि उनको विश्वास था कि इन्द्रियले.लु ता दुःखोत्पादक और आत्मा. को निकृष्ट बनानेवाली है : इसो कारण उन्होंने आवश्यकीय सीमाके अंतर्गतके उपरांत आत्मगुणको नष्ट करनेवाली शारं रिक इन्द्रिय पुष्टिकारक कला अथवा विज्ञानका निरूपण नहीं किया था । मनुष्य और पशुमें केवल ज्ञान शक्तिने बड़ा अंतर. डाल दिया है कारण कि ज्ञानकी. महिमासे मनुष्य तो. अपने स्वाभाविक पूर्णपनको प्राप्त कर सकता है.परन्तु पशु ज्ञानके

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