Book Title: Jain Dharm Kya Hai
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 24
________________ (२२) कारण इस सभ्यताकी रूपा दृष्टिसे हर समय ही-दिन अथवा रात में परिश्रम कर गृहस्थीका खर्च एकत्रित करनेमें और उन साधनोंके मिलनेकी च्येष्टामें जिनसे मनुष्य अपनी समाज में “ कोई आदमी " समझा जाता है मनुष्यका उपयोग लगा रहता है । इस प्रकार वर्तमान ममयमें मनुष्य जीवनमें आत्मिक विकासके लिए कोई भी समय उपलब्ध नहीं होता है परन्तु वास्तविक मुख प्राप्ति हेतु अथवा मनुप्य जन्मकी सार्थकताके हेतु कर्म बंधनोंका क्षय कर अपनी अपूर्व निधिका प्राप्त करना आवश्यक है। प्राचीन सभ्यतामें आधुनिककी नितान्त विपरीततामें मनुष्यको आत्मविकासकी ओर पूर्ण ध्यान था। इसी कारण उस समय जीवन

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