Book Title: Jain Dharm Kya Hai Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ उत्पादक । यह आनंद आत्माका ही निजी स्वभाव है । यद्यपि अज्ञानतमके कारण वह प्रकट नहीं है । इस वक्तव्यकी सत्यताका प्रमाण मनोवाञ्छाकी पूर्तिमें हमारी आत्माको. सुखका अनुभव स्वतः ही हृदयसे बाह्य इद्रिय साहाय्यके विना ही अनुभवित होनेमें है। गंभीर विचार करनेसे ऐमा सुख पूर्ण स्वतंत्रतामें ही प्रदर्शित होता है । वस्तुतः जब कभी भी आत्मासे यह आच्छादित वर्ण अथवा तमका अभाव हो जायगा तब ही स्वाभाविक आनंद झलक उठेगा। संसारी आत्मा स्वकृत्योंसे पूर्ण हैं अत: इन बाह्य बोझा बढ़ानेवाले कार्यादि उसे भारस्वरूप दुःखपूर्ण प्रतीत होते हैं । इन पर पदार्थोके क्षय होनेपर आत्माको यथार्थः सुख अर्थात् स्वतंत्रता (मोक्ष) प्राप्त हो जाती है जिसकीPage Navigation
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