Book Title: Jain Dharm Kya Hai
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ ( 6 ) " विदित हो जाय कि जिस समय सच्चा आनन्द अनुभवगोचर होने लगे उसी समय उसकी पूर्ण मुक्ति हो जाय । आत्मके स्वाभाविक आनन्दके स्वरूपकी अनिभिज्ञता-अजानकारी ही आत्मा और सच्चे सुखके बीच में रोड़ा हैं । अतः ज्ञान ही सच्चे सुखका मार्ग हैं । ""आजकलके स्कूलों और कालिजों में जो ज्ञान ...सिखाया जाता है उससे यह सच्चा ज्ञान विशेष योग्य और पूर्ण है । इस सच्चे ज्ञान में न वस्तुओंका स्वभाव और प्रकृति की उन शक्तियों का वर्णन है जिससे आत्माका स्वाभाविक आनन्द नष्ट हुआ है और पुनः प्राप्त हो सक्ता है । अन्य चाहे कोई ज्ञान मनुष्यको हितकर भी हो परन्तु सच्चे सुखके अभिलाषीके लिए यही ज्ञान अभीष्ट एवं श्रेष्ठ है । "

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