Book Title: Jain Dharm Kya Hai
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ (१०) अमूर्तीक है इसलिए इन्द्रियोंद्वारा नानाना नहीं सक्ता है। परन्तु दूसरी तरफ पूर्णतया निराकार भी नहीं है क्योंकि जितने पदार्थोकी सत्ता सिद्ध है उतने समस्त पदार्थोकी साकार होना आवश्यक है । जीव सदैवसे सत्तामें है। और सदैवसे ही पुद्गलसे सम्बन्धित है। इस कारण अपने स्वाभाविक गुण अनन्त ज्ञान, अनन्त बल और अनन्त सुखके उपभोगसे वंचित है। सम्यक् चारित्रके अनुसार वर्तन करनेसे उन मलरूपी शक्तियों का क्षय होनाता है जो आत्माके चार अनन्त चतुष्टय-(१) अनन्तदर्शन (२) अनन्तज्ञान (३) अनन्तसुख (४) अनन्तबलनामक गुणको प्रेकट नहीं होने देते हैं। । । (२) अजीव तत्व चेतना रहित है और पांच प्रकारका है (१) पद्धल (२) धर्म (३)

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