Book Title: Jain Dharm Kya Hai
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 17
________________ (१५) 1 : (७) वां और अंतिम तत्व आत्माके वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति है । अर्थात् आत्मा के निज स्वरूपकी स्वतंत्रता, मोक्ष अथवा सुखका पा लेना ही है । इस मोक्ष तत्वको आत्मा अपने साथ लगे हुए समस्त पुद्गलोंके दूर करने पर प्राप्त करती है । इस प्रकारका इन तत्वोंका स्वरूप है । थोड़े हीमें जैन धर्मकी शिक्षा इस प्रकार है कि पहल और मूर्तीक पदार्थोंसे वेष्टित संसारके जीव चेतन पदार्थ हैं। इनमें पूर्णपने और सर्वदर्शिता की शक्ति विद्यमान् है । ये शक्तियां उनकी उन्हें 1 अपने सम्यक् वर्तावसे प्राप्त होती हैं । इन जीवोंके अनन्तदर्शन और अनन्त सुख संयुक्त पूर्णपनेका अभाव स्वोपार्जित कर्मोदयके कारण हुआ छ । अर्थात् इन जीवोंने स्वतः ही पर

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