Book Title: Jain Dharm Darshan ke Pramukh Siddhanto ki Vaignanikta
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 10
________________ पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला सारांश स्व.पं. फूल चन्द्र शास्त्री स्मृति व्याख्यान माला के अन्तर्गत प्रस्तुत ये दो व्याख्यान क्रमश: वस्तुनिष्ठ एवं व्यक्तिनिष्ठ एक सूत्री अध्ययन का पथ प्रकाशित करेंगे जो जैन धर्म-दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों की वैज्ञानिक भावना से सम्बन्धित है। विज्ञान एवं धर्म और दर्शन से संबंध निरूपित करते हुए सर्वप्रथम भाषा एवं गणित के श्रुत एवं लिपि विज्ञान का परिचय देते हुए प्रमाण एवं नय की वैज्ञानिकता प्रस्तुत की गयी है । न्याय सिद्धान्त का अभ्युदय, विकास एवं जैन विशेष वैज्ञानिक पद्धति का विश्लेषण किया गया है, जिसमें अनेकान्तवाद एवं स्याद्वाद का परिचय है। त्रिलोक-प्रज्ञप्ति विषयक भौगोलिक विज्ञान, ज्योतिर्विज्ञान, खगोल विज्ञान के नमूनों की वैज्ञानिक क्षमता और स्थिति कालादि की इकाइयों द्वारा पुद्गलादि का विवेचन दिया गया है । कर्म सिद्धान्त में राशि सिद्धान्त, नियंत्रण सिद्धान्त एवं प्रणाली सिद्धान्त का आधुनिक प्रसंग में प्रयोगात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है । इन सभी सिद्धान्तों का समाज नीति, राजनीति एवं विदेश नीति पर प्रभाव का वैज्ञानिक मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न विकसित जैन कलाओं में विज्ञान की भूमिका का अध्ययन किया गया है। जैन आचार-विचार वैज्ञानिक पद्धति का, आयुर्वेद, पर्यावरण, शाकाहारादि एवं संस्कृति पर प्रभाव का भी मूल्यांकन किया गया है । इस प्रकार वस्तुनिष्ठ अध्ययन हआ है। __व्यक्तिनिष्ठ अथवा आत्मनिष्ठ अध्ययन में चिर सम्मत जैन साहित्य में द्रव्यानुयोग एवं करणानुयोग की वैज्ञानिक भूमिका का निदर्शन किया गया है। दर्शन मोह और चरित्र मोह में प्रयुक्त गणित विज्ञान की विशेषताओं का वैज्ञानिक अध्ययन किस प्रकार किया जाये-इस समस्या का निदान किया गया है । लब्धियों रूप विकास एवं पाँचवीं लब्धि में परिणामों का वैज्ञानिक स्वरूप बतलाया गया है। क्षमादि दस लक्षण धर्म की वैज्ञानिक महत्ता___ अनन्तानुबंधी के विसंयोजन तथा मिथ्यात्व को तीन भागों में विभक्त करके कार्यकारी परिणामों की वैज्ञानिक विशेषता और इस प्रकार अहिंसा एवं अपरिग्रह द्वारा स्वतंत्रता (मुक्ति) की ओर वैज्ञानिक प्रगति की जैन धर्म-दर्शन की भूमिका का समालोचन,श्रृंखलाबद्ध प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्य में हुआ है। -लक्ष्मीचन्द्र जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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