Book Title: Jain Dharm Darshan ke Pramukh Siddhanto ki Vaignanikta
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 18
________________ पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला में किसी न किसी प्रकार की नासमझी के कारण ये दो स्वतंत्र सिद्धान्त एक रूप ही हैं ऐसी धारणा रूढ़ हो गयी होगी।” [20] प्रकृति की घटनाओं का विधान, कार्यकारणता का सिद्धान्त जो जैनदर्शन में युगपतत्व को आधारभूत मानकर लिया है, वह सर्वथा मौलिक है । [21] इस पर कुछ लेख द्रष्टव्य हैं । उनकी वैज्ञानिकता को आज चुनौती नहीं दी जा सकती है जहाँ तक संभावनात्मक विधान प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुके हैं। [22] त्रिलोक विषयक विज्ञान ___ सन् 1952 के लगभग डा. हीरालाल जैन द्वारा नागपुर में वक्ता को त्रिलोकप्रज्ञप्ति के गणित पर कार्य सौंपा गया था । तद्नुसार 1958 में तिलोयपण्णत्ती का 105 पृष्ठीय गणित जम्बूदीवपण्णत्ती संगहो में शोलापुर से गणितीय प्रस्तावना रूप में प्रकाशित हुआ था। इस पर देश-विदेश के विद्वानों ने अनेक लेख बनाए। इसी प्रकार महावीराचार्य के गणितसार-संग्रह पर भी देश-विदेश में अनेक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। [23] विशेषकर डा. आर.सी.गुप्ता एवं तकाओ हयाशी (जापान) के साथी अति प्रसिद्ध हो गये हैं। विशुद्धमती आर्यिका द्वारा भी त्रिलोकसार एवं त्रिलोकप्रज्ञप्ति के गणित कार्य में प्रसिद्ध हो चुकी हैं । [24] इसे प्रायोगिक रूप देने में ज्ञानमती आर्यिका भी प्रेरक रूप में विख्यात हो चुकी हैं । [25] यहाँ विशद विवेचन में न जाकर यह स्पष्ट कर देना पर्याप्त होगा कि जहाँ तक कि भूगोल और गणित ज्योतिर्लोक विज्ञान के स्पष्टीकरण का प्रश्न है, समस्याएँ हैं वे बहुत कुछ वक्ता द्वारा एवं सज्जन सिंह लिश्क की पुस्तक “जैन एस्ट्रानामी” में हल की जा चुकी हैं । ये नमूने गहन अध्ययन के विषय हैं तथा आधुनिक नमूनों (Models) के समकक्ष ऐतिहासिक विकास के अध्ययन रूप में प्रस्तुत किये जा सकते हैं । उनमें आगे चलकर किस प्रकार बीज डाले गये, एक सूत्री सिद्धान्त में वास्तव में अत्यन्त कठिन प्रश्न है । इन ग्रंथों में कई प्रकार की इकाइयों को, स्थान, काल में स्थिति दिखलाने हेतु निर्मित किया गया है, जिन्हें अनेक नये पारिभाषिक शब्दों में व्यक्त किया गया है, जो अन्य ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होते । अंतर्मुहूर्त, गगन खंड, योजन आदि अनेक शब्दों को जैनाचार्यों ने वैज्ञानिकता हेतु ही गढ़ा, जिन्हें कहीं भी किसी भी अन्य शब्दकोशों में उपलब्ध नहीं किया जा सकता है । लब्धिसार प्रोजेक्ट में, तथा ताओ ऑफ जैन साइंसेज़ में वक्ता द्वारा ऐसे अनेक वैज्ञानिक शब्दों को आधुनिक वैज्ञानिक शब्दों से जोड़ दिया गया है । [26] भूगोल के लिए इकाइयाँ अलग, ज्योतिष के लिए अलग, लोकविज्ञान के लिए अलग होते हुए भी सभी चर्चाओं को एक नक्शे में, एक-सूत्री रूप में, त्रिलोक में डाल दिया गया है, अत: समझना कठिन हो गया है । [27] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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