Book Title: Jain Dharm Darshan ke Pramukh Siddhanto ki Vaignanikta
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 37
________________ पं.फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला 29 Jain, L.C., On Contribution of Jainology to Indian Karma Struc tures, Tulsi Prajna, 7.56, 1981, 1-11. 34. गोम्मटसार जीवकांड, सं. आ. उपाध्ये एवं कै शास्त्री, भाग 1-2, 1978-1979, दिल्ली। 35. देखिये नि. 32, पृ. 202-220 .. 36. देखिये, नि. 34, साथ ही गोम्मटरसार-मंद प्रबोधिनी, जीवतत्त्व-प्रदीपिका एवं सम्यक् ज्ञानचंद्रिका टीका सहित, जी.एल जैन एवं एस.एल.जैन द्वारा संपादित, कलकत्ता, 1919, के अर्थसंदृष्टि अधिकार जीवकाण्ड। 37. लब्धिसार/क्षपणासार गर्भित, सं. फूलचंद्र सिद्धान्तशास्त्री, अगास, 1980 । __ कलकत्ता से भी 1919 में यही ग्रंथ प्रकाशित हुआ, जिसमें अर्थ संदृष्टि अधिकार भी दिया गया है। 38. देखिये नि. 36 एवं नि. 37 39. देखिये लब्धिसार, इंडियन नेशनल साइंस अकादमी प्रोजेक्ट, एल.सी.जैन, . 1984-87, जो आधुनिक संदृष्टियों में अंग्रेजी में तैयार की गयी है। 40. वही। 41. भटनागर, रा, जैन आयुर्वेद साहित्य, जैन विद्या का- एक मूल्यांकन, सांस्कृतिक ___ अवदान में सं. रा.च. द्विवेदी एवं प्रे. सु. जैन, दिल्ली, 1976, पृ. 66-75. ऐतिहासिक आदि एवं विज्ञान विषयक सूचना के लिए देखिये, 42. जैन, एच.सी., जैन आयुर्वेद का ऐतिहासिक पक्ष, अर्हत् वचन, 5.4, 1993, 253-259. जैन, रा.कु, जैन धर्म और आयुर्वेद, वही, 5.2, 1993,93-96. उपर्युक्त में मुख्यत: धर्म का आधार लिया गया है। अगरचंद नाहटा एवं नेमिचंद्र शास्त्री के आयुर्वेद संबंधी लेख्, जैन सिद्धान्त भास्कर, आरा 43. गणितसारसंग्रह, महावीराचार्य, अ.सं. लक्ष्मीचंद्र जैन, शोलापुर, 1963 44. जैन कला के विशद वर्णन हेतु देखिये. Smith, V., Jaina Stupa and other Antiquities from Mathura, Allahabad, 1901. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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