Book Title: Jain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Author(s): Surekhashreeji
Publisher: Vichakshan Smruti Prakashan

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Page 256
________________ २३४ . जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप और उसका अनुसरण करोगे तो तुमको मार्ग की प्राप्ति होगी।' इस प्रकार कुरान सार में श्रद्धा विषयक चर्चा की गई है। उसमें श्रद्धा अर्थ का अरबी भाषा में आए " ईमान" शब्द का किया है तथा निश्चय आस्तिकता व निष्ठा भी इसका अर्थ किया गया है। अरबी शब्द “मोमिन" का अर्थ श्रद्धावान् , भक्त किया है तथा .. श्रद्धाहीन, नास्तिक के लिए अरबी भाषा में “ काफिर ", " मुलहिद " शब्द प्रयुक्त हुए है। ___इस्लाम धर्म में यह कहा है कि ईश्वर (अल्लाह) ही मेरा सहायक । है, उस पर मुझे विश्वास है। और अपने अनुयायियों को भी ईश्वर पर विश्वास करने को कहते हैं कि ईश्वर पर विश्वास रखो, ईश्वर ही तुम्हारा रक्षण करेंगे। ये लोग ईश्वरीय विश्वास के अतिसमीप है, इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि “वास्तव में जिन लोगों को धर्म पर श्रद्धा है और जो घर का त्याग करके ईश्वर के काम में अपनी मिल्कत लगा देता है वह पैगम्बर का अनुसरण करता है। इस प्रकार ईश्वर पर श्रद्धा रखने वाले और पवित्र जीवन जीने वाले के लिए स्वर्ग में स्थान निश्चित है और उसे किस प्रकार का आनंद प्राप्त होता है ? ___उपर्युक्त उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि इस्लाम धर्म में श्रद्धा को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । श्रद्धा ही विकास का द्वार है । ईश्वरीय श्रद्धा को सर्वप्रथम माना है तथा आवश्यक माना है। इस श्रद्धा को सम्यग्दर्शन के लक्षण श्रद्धान के समकक्ष रखा जा सकता है। १. वही, ७-१५८, पृ० १९४ ।। २. वही, केटलाक शब्दार्थ, पृ० २१९ ॥ ३-४. धर्मों नुं तुलनात्मक अध्ययन, पृ० २०६ ॥ ५. वही, पृ० २१९ ॥

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