Book Title: Jain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Author(s): Surekhashreeji
Publisher: Vichakshan Smruti Prakashan

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Page 296
________________ शब्द २७४ - जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप पृष्ठ संख्या | शब्द पृष्ठ संख्या क्लेशमुक्त-४ गणिपिटक-१४ . कांक्षा-५३, ५४, ७४, १४३ गवेषणा-५६ कांक्षामोहनीय-५२, ५४ गीता-२१०, २१२, २१३, २१५ कांक्षा रहित-२९ २१६, २१७, २१९, २२०, २२१ कांक्षित-६८ गीतार्थ-७६ कान्तारवृत्ति-१४६ गुणधराचार्य-१३१ काफिर-२३४ . गुणभद्राचार्य-१५१ . कामच्छन्द-१७९ . गुरु निग्रह-१६२ काललब्धि-१५२ गुरु विग्रह-१४६ क्रियारूचि-४१, ६७ गोम्मटसार-१५४, १५५, १५६ कुंदकुंदाचार्य--१०९,११०,११२,११३ गोशालक-९, कुदर्शनदेशनापरिहार-१४० . घर्षण घोलन्याय-१०४ कुरान शरीफ-२३०, २३१ घातिकर्म-६४ कुरान सार-२३०,२३१,२३३,२३४ घेवरचंद बांठिया-५१ कुसुमपुर-८६ घोषनंदि-८६ कृष्णद्वैपायन वेद व्यास-२०६ चक्षुर्जन्य ज्ञान-२ केवलिपाक्षिक-५४ चतुर्दशपूर्व-७८ कौत्कृत्य-१७९ चाक्षुषज्ञान-१ कौमीषणि-८६ चामुण्डराय-१५४ कौशल्य-१४४ चार्वाक-२९ क्षपकश्रेणी-१२३ चारवेद-५९ क्षपण-१२९ चित्तगुणवियुक्ति-१९१ क्षपणासार-१५५, १५७ चित्ताधिकार विमुक्ति-१९१ क्षीणकषाय-१२६ चित्रकूट चितौड-१३८ क्षीण मोह-६३, ७२ चौदह गुणस्थान-१३१ गणधर-१२ चौदह जीवसमास-११५ गणाभियोग-१४६, १६२ चौदह पूर्वधर-५८

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