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शब्द
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जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप
पृष्ठ संख्या | शब्द पृष्ठ संख्या क्लेशमुक्त-४
गणिपिटक-१४ . कांक्षा-५३, ५४, ७४, १४३ गवेषणा-५६ कांक्षामोहनीय-५२, ५४ गीता-२१०, २१२, २१३, २१५ कांक्षा रहित-२९
२१६, २१७, २१९, २२०, २२१ कांक्षित-६८
गीतार्थ-७६ कान्तारवृत्ति-१४६
गुणधराचार्य-१३१ काफिर-२३४ .
गुणभद्राचार्य-१५१ . कामच्छन्द-१७९ .
गुरु निग्रह-१६२ काललब्धि-१५२
गुरु विग्रह-१४६ क्रियारूचि-४१, ६७
गोम्मटसार-१५४, १५५, १५६ कुंदकुंदाचार्य--१०९,११०,११२,११३ गोशालक-९, कुदर्शनदेशनापरिहार-१४० .
घर्षण घोलन्याय-१०४ कुरान शरीफ-२३०, २३१ घातिकर्म-६४ कुरान सार-२३०,२३१,२३३,२३४ घेवरचंद बांठिया-५१ कुसुमपुर-८६
घोषनंदि-८६ कृष्णद्वैपायन वेद व्यास-२०६ चक्षुर्जन्य ज्ञान-२ केवलिपाक्षिक-५४
चतुर्दशपूर्व-७८ कौत्कृत्य-१७९
चाक्षुषज्ञान-१ कौमीषणि-८६
चामुण्डराय-१५४ कौशल्य-१४४
चार्वाक-२९ क्षपकश्रेणी-१२३
चारवेद-५९ क्षपण-१२९
चित्तगुणवियुक्ति-१९१ क्षपणासार-१५५, १५७ चित्ताधिकार विमुक्ति-१९१ क्षीणकषाय-१२६
चित्रकूट चितौड-१३८ क्षीण मोह-६३, ७२ चौदह गुणस्थान-१३१ गणधर-१२
चौदह जीवसमास-११५ गणाभियोग-१४६, १६२ चौदह पूर्वधर-५८