Book Title: Jain Bauddh Aur Gita Me Karm Siddhant Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prakrit Bharati Academy View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय भारतीय चिन्तन के अनुसार नैतिक जीवन की समग्र साधना बन्धन या दुःख से मुक्ति के लिये है। भारतीय चिन्तकों की दृष्टि में पुण्य और पाप की समग्र चिन्तना का सार निम्न कथन में समाया हुआ है कि "परोपकार पुण्य है और परपीड़न पाप है।" _ बन्धन के प्रमुख कारणों को इस पुस्तक 'जैन, बौद्ध और गीता में कर्म सिद्धान्त' में वर्णित किया है। जैन परम्परा में बन्धन के मूलभूत तीन कारण राग, द्वेष और मोह माने गये हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में राग और द्वेष इन दोनों को कर्म-बीज कहा गया है और उन दोनों का कारण मोह बताया गया है। यद्यपि राग और द्वेष साथ-साथ रहते हैं, फिर भी उनमें राग ही प्रमुख है। राग के कारण ही द्वेष होता है। जैन कथानकों के अनुसार इन्द्रभूति गौतम का महावीर के प्रति प्रशस्त राग भी उनके कैवल्य की उपलब्धि में बाधक रहा था। इस प्रकार राग एवं मोह ही बन्धन के प्रमुख कारण हैं। आचार्य कुन्दकुन्द राग को प्रमुख कारण बताते हुए कहते है, आसक्त आत्मा ही कर्म-बन्ध करता है और अनासक्त मुक्त हो जाता है, यही जिन भगवान् का उपदेश है। इसलिए कर्मों में आसक्ति मत रखो। लेकिन यदि राग का कारण जानना चाहें तो जैन परम्परा के अनुसार मोह ही इसका कारण सिद्ध होता है। यद्यपि मोह और राग-द्वेष सापेक्षरूप में एक दूसरे के कारण बनते हैं। इस प्रकार द्वेष का कारण राग और राग का कारण मोह है। मोह तथा राग परस्पर एक दूसरे के कारण है। अतः राग, द्वेषPage Navigation
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