Book Title: Jain Agamdhar aur Prakrit Vangamaya
Author(s): Punyavijay
Publisher: Punyavijayji

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Page 14
________________ ३२ ] १४. णागज्जुणा तु पदंति १५. भदन्तनागार्जुनीयास्तु 99 59 ३०२ वृत्तिपत्र ३०३ ३१३ यहां पर आचारांगचूर्णि और शीलांकाचार्य रचित वृत्तिके जो पृष्ठ-पत्रांक आदि दिये गये हैं वे आगमोद्धारक पूज्य आचार्य श्री सागरानन्दसूरि सम्पादित आवृत्तिके हैं. જ્ઞાનાંજલ पृ० १ उपर्युक्त पंद्रह उल्लेखों में से पांच उल्लेख शीलांकीय वृत्तिमें नहीं हैं. बाकीके दस उल्लेख शीलांकाचार्यने दिये हैं. वे सभी उल्लेख आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की चूर्णि वृत्ति में ही हैं. द्वितीय श्रुतस्कन्धकी चूर्णि-वृत्तिमें नागार्जुनीय - वाचना का कोई उल्लेख नहीं है. यहां आचारांग-चूर्णिमें से नागार्जुनीयवाचनाके जो पंद्रह उल्लेख उद्धृत किये गये हैं उनमें सात जगह अति पूज्यतासूचक 'भदन्त विशेषणका प्रयोग किया है जो अन्य किसी चूर्णि-वृत्ति आदिमें नहीं है. इससे अनुमान होता है कि इस चूर्णिके प्रणेता, जिनके नामका उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता, कम-से-कम नागार्जुनीय परंपराके प्रति आदर रखने वाले थे. (३) सूत्रकृतांगकी चूर्णिमें नागार्जुनीय वाचनाके जो उल्लेख मिलते हैं उन सभी स्थानों पर 'नागार्जुनीयास्तु' ऐसा लिखकर ही नागार्जुनीय वाचनाभेदका उल्लेख किया गया है जो प्रथम श्रुतस्कन्धमें चार जगह व दूसरे श्रुतस्कन्धमें नौ जगह पाया गया है. आचार्य शीलांकने अपनी वृत्ति में ' नागार्जुनीयास्तु पठन्ति ' लिखकर नागार्जुनीय वाचनाका : उल्लेख चार जगह किया है. संभव है पिछले जमाने में नागार्जुनीय वाचनाभेदका कोई खास महत्त्व रहा न होगा. Jain Education International प्रसंगवशात् एक बात की सूचना करना हम यहाँ उचित समझते हैं कि सूत्रकृतांगचूर्णिकार 'अणुत्तरणाणी - अणुत्तरदंसी अणुत्तरणाणदंसणधरो, एतेण एकत्वं णाण-दंसणाणं ख्यापितं भवति ' [ श्रुत १ अध्य० २. उ० २ गा० २२] इस उल्लेखसे एकोपयोगवादी आचार्य सिद्धसेन के अनुयायी मालूम होते हैं. (४) उत्तराध्ययनसूत्रकी चूर्णिमें चूर्णिकार आचार्यने पाँच स्थानों पर नागार्जुनीय वाचनाभेदका उल्लेख किया है. पाइय-टीकाकार वादिवेताल शान्तिसूरिजीने भी इन पाँच स्थानों पर नागार्जुनीय वाचनाभेदका उल्लेख किया है. किन्तु सिर्फ एक स्थान पर नागार्जुनीयका नाम न लेकर ' पठ्यते च ' ऐसा लिखकर नागार्जुनीय वाचनाभेदका उल्लेख किया है. [पत्र २६४ - १]. कुछ विद्वान् स्थविर आर्य देवर्द्धिगणिके आगम-व्यवस्थापन व आगम-लेखनको बालभी वाचनारूपसे बतलाते हैं, किंतु ऊपर वालमी वाचनाके विषयमें जो कुछ कहा गया है उससे उनका यह कथन भ्रान्त सिद्ध होता है. वास्तवमें वालभी वाचना वही है जो माथुरीवाचनाके ही समय में स्थविर आर्य नागार्जुनने वलभीनगर में संघसमवाय एकत्र कर जैन आगमोंका संकलन किया था. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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