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જ્ઞાનાંજલિ धूर्ताख्यान आदि कथाओंका उल्लेख विक्रमकी पांचवीं छठी सदीमें रचे गए भाष्यों में आता हैं. धूर्ताख्यान तो निशीथचूर्णिकारने अपनी चूर्णिमें [गा० २९६, पत्र १०२-१०५] भाष्य गाथाओंके अनुसार संक्षेपमें दिया भी है और आख्यानके अन्तमें उन्होंने “सेसं धुत्तक्खाणगाहाणुसारेण णेयमिति" ऐसा उल्लेख भी किया है. इससे पता चलता है कि प्राचीन कालमें 'धूर्ताख्यान' नमक व्यंसक कथाग्रन्थ था, जिसका आधार लेकर आचार्य श्री हरिभद्रने प्राकृत धूर्ताख्यानकी रचना की है. प्राचीन भाष्य आदिमें जिन कथा-ग्रन्थों का उल्लेख पाया जाता हैं उनमेंसे आज सिर्फ एक श्री संघदासगणिका वसुदेवहिंडी ग्रन्थ ही प्राप्त है, जो भी खण्डित है. दाक्षिण्याङ्क आचार्य श्रीउद्द्योतनसूरिने अपनी कुवलयमाला कथाकी [र० सं० शाके ७००] प्रस्तावनामें पादलिस, शालवाहन, षट्पर्णक, गुणाढ्य, विमलाङ्क, देवगुप्त, रविषेण, भवविरह, हरिभद्र आदिके नामोंके साथ उनकी जिन रचनाओंका निर्देश किया है उनमेंसे कुछ रचनाएं प्राप्त हैं, किन्तु, पादलिप्तकी तरंगवती, षट्पर्णकके सुभाषित आदि रचनाएं, गुणाढ्यकी पिशाचभाषामयी बृहत्कथा, विमलाङ्कका हरिवंश, देवगुप्तका त्रिपुरुषचरित्र आदि कृतियाँ आज प्राप्त नहीं हैं. संघदासकी वसुदेवहिंडी, धर्मसेन महत्तरका शौरसेनी भाषामय वसुदेव हिंडी द्वितीय खण्ड, विमलाङ्कका पउमचरिय, हरिभद्रसूरिकी समराइञ्चकहा, शीलाङ्क विमलमतिका चउप्पन्न महापुरिसचरिय, भद्रेश्वरकी कहावली आदि प्राचीन कथाएं आज प्राप्त हैं. ये सब रचनाएं विक्रमकी प्रथम सहस्राब्दीमें हुई हैं. इनके बादमें अर्थात् विक्रमको बारहवीं शताब्दीमें चौवीस तीर्थंकरोंके चरित्र आदि अनेक चरितोंकी रचना हुइ है, जो अनुमानतः दो-तीन शताब्दियों में हुई है. वर्धमानसूरि-आदिनाथचरित्र और मणोरमा कहा, सोमप्रभाचार्य-सुमतिनाथ चरित्र और कुमारपाल. प्रतिबोध, गुणचंद्रसूरि अपरनाम देवभद्रसूरि-पार्श्वनाथचरित, महावीरचरिय और कहारयणकोस, लक्ष्मणगणि-सुपासनाहचरिय, बृहद्गच्छीय हरिभद्रसूरि-चन्द्रप्रभचरित्र और नेमिनाहचरिउ अपभ्रंश, देवसूरि-पद्मप्रभचरित, अजितदेवसूरि---श्रेयांसचरित, देवचन्द्रसूरि---शान्तिनाथचरित्र
और मूलशुद्धिप्रकरणटीका, नेमिचन्द्रसूरि—अनन्तनाथचरित्र और महावीरचरित्र, श्रीचन्द्रसूरिमुनिसुव्रतस्वामिचरित और कुंथुनाथचरित्र, पद्मप्रभसूरि--मुनिसुव्रतचरित्र, मलधारी हेमचन्द्रसूरिअरिष्टनेमिचरित्र, (भवभावनावृत्त्यन्तर्गत), रत्नप्रभसूरि-अरिष्टनेमिचरित, यशोदेवसूरि-चन्द्रप्रभ चरित, चन्द्रप्रभोपाध्याय-वासुपूज्यचरित्र, श्रीचन्द्रप्रभसूरि-विजयचन्द्र केवलिचरित्र, शान्तिसूरिपृथ्वीचन्द्रचरित्र, विजयसिंहसूरि-भुवनसुन्दरीकहा, धनेश्वर-सुरसुन्दरीकहा आदि प्राकृत कथा-चरितग्रन्थ प्रायः महाकाय ग्रन्थ हैं और विक्रमकी ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दीमें ही रचे गये हैं. इनके अतिरिक्त दूसरी भी दशश्रावकचरित, वर्द्धमानदेशना, शालिभद्रादि चरित, ऋषिदत्ताचरित, जिनदत्ताख्यान, कलावईचरिय, दवदंतीकहा, सुसढकहा, मणिवइचरिय, सणंकुमारचरिय, तरंगवती-संक्षेप, सीयाचरिय, सिरिवालकहा, कुम्मापुत्तचरिय, मौनएकादसीकहा, जम्बूसामिचरिय, कालिकाचार्यकथा,
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