Book Title: Hitshikshano Ras Author(s): Rushabhdas Shravak Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुगति तणी पदवी पण होय, ज्ञान समुं नहिं दूजूं कोय॥जेहथी सकल नेद जल लहे, स्वर्ग नरगनी वातो कहे ॥१०॥ कहे पृथिवी सायरनां मान, नदी मंगर ने नगर निधान ॥ जीव अजीवना नांखे नेद, नांखे विवरी त्रण्ये वेद ॥ ११॥ जाणे पुण्य पापनी वात, साधु धर्मश्रावक अवदात ॥जव्य अन्न व्य ज्ञानी उलखे, मूरख श्रणसमजु सहु नखे ॥१२॥ तेणें ज्ञान अधिक कहेवाय, लहे शारद तणे पसाय ॥ वेद पुराण पिंगल तो थयु,प्रथम नाम शारदर्नु ग्रह्यु ॥१३॥ कवित काव्य ने गाथामांहि,नाषा विण नवि चाले क्यांहि ॥आगम चरित्त रास ने नास, सचराच र जग ताहारो वास ॥१४॥ तुं पुत्री बो ब्रह्मा तणी, ताहारी शोना दीसे घणी ॥ सखरूं रूप सुकोमल अंग, तुं माता मुफ राखे रंग ॥१५॥ गुण ताहारा नवि लाधे पार, तुं करजे कविजननी सार ॥ आज 'हुट हैडे उबास, नीपालं हित शिदारास ॥ १६ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ कान्ह वजाडे वांसली ॥ ए देशी॥ ॥राग आशावरी तथा सिंधूडो ॥ ॥ रास रचुंरंगें करी, मांहे नाव जलेरा ॥ नीति For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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