Book Title: Hitshikshano Ras Author(s): Rushabhdas Shravak Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) शास्त्रना बोलडा, सिझांतज केरा ॥१॥ चरित्रनेद कहुं जला, मांहे लौकिक बोलो ॥ सुणतां पंमित पणुं वधे, नर टले निटोलो॥२॥वैदक शास्त्रमांहि सटी. कविघटना केती॥ज्योतिष नेद कहेशं सह।, विधि श्रावक जेती ॥३॥ साधुपंथ कहुं सही, वली खपन विचारो॥विधियें विनति सांजलो, गुण वाधे सारो॥४॥ विधि जाणे जाग्या तणी, नव पद किम गणियें ॥ नोकरवाली किसि कही, ते विधि पण सु णियें ॥ ५॥ केम पडिक्कमणुं कीजिये, पच्चरकाण सणीजें ॥ केम शंकाशल्य टालिये, केम वस्त्र धरी में ॥६॥ किम जिनमंदिर जूहारियें, किम वंदन कीजें॥पूजाविधि सुणजो सहु, विधि जोजन सुणी जें॥॥ दान केही परें दीजीयें, केम वणज करीजें ॥ सनामांदे केम बेसीयें, जल किणिविध पीनें ॥७॥ दौरकर्म केही परें करे, सुण विधि अंघोलो ॥ शरम केही पेरें कीजियें, सुण विधि अबोलो ॥ पुरुषं केही विध बोलवं, किम लोग जजेवो ॥ सेवकनी वि धि सांजलो, साहेब पण केहवो ॥ १० ॥ केही परें मारग हीमीयें, शुज करणी केही गर्न तणा नेदज सुणी, जीव चेतो तेही ॥ ११ ॥ वाणीही दंग नेद For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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