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मुगति तणी पदवी पण होय, ज्ञान समुं नहिं दूजूं कोय॥जेहथी सकल नेद जल लहे, स्वर्ग नरगनी वातो कहे ॥१०॥ कहे पृथिवी सायरनां मान, नदी मंगर ने नगर निधान ॥ जीव अजीवना नांखे नेद, नांखे विवरी त्रण्ये वेद ॥ ११॥ जाणे पुण्य पापनी वात, साधु धर्मश्रावक अवदात ॥जव्य अन्न व्य ज्ञानी उलखे, मूरख श्रणसमजु सहु नखे ॥१२॥ तेणें ज्ञान अधिक कहेवाय, लहे शारद तणे पसाय ॥ वेद पुराण पिंगल तो थयु,प्रथम नाम शारदर्नु ग्रह्यु ॥१३॥ कवित काव्य ने गाथामांहि,नाषा विण नवि चाले क्यांहि ॥आगम चरित्त रास ने नास, सचराच र जग ताहारो वास ॥१४॥ तुं पुत्री बो ब्रह्मा तणी, ताहारी शोना दीसे घणी ॥ सखरूं रूप सुकोमल अंग, तुं माता मुफ राखे रंग ॥१५॥ गुण ताहारा नवि लाधे पार, तुं करजे कविजननी सार ॥ आज 'हुट हैडे उबास, नीपालं हित शिदारास ॥ १६ ॥
॥ ढाल ॥ ॥ कान्ह वजाडे वांसली ॥ ए देशी॥
॥राग आशावरी तथा सिंधूडो ॥ ॥ रास रचुंरंगें करी, मांहे नाव जलेरा ॥ नीति
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