Book Title: Hindi Jain Patrakarita Itihas evam Mulya Author(s): Sanjiv Bhanavat Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf View full book textPage 4
________________ के माध्यम से आवाज उठाई वहीं भारतमाता की परतन्त्रता की बेड़ियों को तोड़ने के लिए देश में चल रहे आन्दोलन को नेतृत्व दिया तथा सत्याग्रह, असहयोग और भारत छोड़ो आन्दोलन को सक्रियता प्रदान की । आर्य समाज के इतिहासकारों ने इस युग को "संस्था युग" का नाम दिया है। जैन समाज की भी लगभग यही स्थिति रही। इस काल में अनेक जैन धार्मिक तथा सामाजिक संगठन स्थापित किये गये। इन संगठनों ने अपने मुख पत्रों का प्रकाशन किया। इस युग की जैन पत्रकारिता में तिलक की भाँति तेजस्वी और प्रदीप्त स्वर तो देखने को नहीं मिलता किन्तु गांधी की अहिंसा की भावना को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है अहिंसा जैन दर्शन का मुख्य तत्त्व है। गांधीजी के कार्यक्रमों और नीतियों को अनेक जैन पत्रों ने अपना समर्थन दिया। इस कालखण्ड के जैन पत्र इस प्रकार हैंप्रमुख | हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य 11 "स्थानकवासी जैनी भाइयों को धर्म, नीति, व्यवहार सदाचार, बताने वाला मासिक "जैन हितेच्छु” बम्बई से अगस्त 1901 में प्रकाशित हुआ । इसके संपादक मोतीलाल मनसुखलाल शाह थे। ये "स्पेक्टेटर" उपनाम से लिखते थे यह पत्र "विचार पत्र" अधिक था। लगभग ढाई वर्षों तक वह गुजराती भाषा में प्रकाशित होता रहा था किन्तु दक्षिण, पंजाब, मेवाड़, मारवाड़ आदि प्रदेशों के स्थानकवासी जैन भाइयों के लाभार्थ इसे हिन्दी में "हिन्दी जैन हितेच्छु" के नाम से प्रकाशित किया जाने लगा। इसी समय "जैन आदित्य" नामक पाक्षिक पत्र भी स्थानकवासी जैनियों ने प्रकाशित किया, जो आर्थिक संकट के कारण दो माह में ही बन्द हो गया। सन् 1905 में गुलाबचन्द ढढ्ढा के संपादन में श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरेंस प्रकाश आफिस, मुम्बई द्वारा मासिक "श्री जैन श्वेताम्बर कान्रेन्स हेरल्ड" का प्रकाशन किया गया। इस पत्र का प्रकाशन अंग्रेजी, हिन्दी तथा गुजराती भाषा में होता था। मार्च 1906 के बाद के अंकों में अधिकांश सामग्री गुजराती में प्रकाशित होने लगी थी। सन् 1910 में जैन स्त्रियों के लिए देवबन्द सहारनपुर से "जैन नारीहितकारी” पत्र निकला, जिसके सम्पादक बा. ज्योतिप्रसाद थे। जनवरी 1912 में हिन्दी, गुजराती भाषा में "श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फरेंस प्रकाश" का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। जुलाई 1912 में आरा (बिहार) से श्री जैन सिद्धान्त भवन ने अपना मुखपत्र "श्री जैन सिद्धान्त भास्कर" का प्रकाशन किया। इस त्रैमासिक पत्रिका के सम्पादक पदमराज रानीवाला थे। जैनधर्म और संस्कृति से सम्बन्धित शोध एवं गवेषणापूर्ण लेख इस त्रैमासिक पत्रिका में प्रकाशित होते हैं। इस पत्र ने सिर्फ प्राचीन सुरक्षित शास्त्रों की ऐतिहासिक चर्चा करने का संकल्प अपने प्रथम संपादकीय में व्यक्त किया। राजनैतिक तथा सामाजिक विषयों से यह पत्र दूर ही रहा। जून 1937 से अंग्रेजी विभाग "द जैन एंटीक्वेरी" नाम से प्रारम्भ हुआ। "श्री जैन सिद्धान्त भास्कर" का प्रकाशन सन 1913 से 1935 तथा 1966 से 1962 तक बन्द रहा। इसके संपादन से प्रो. हीरालाल, प्रो. ए. एन्. उपाध्ये, बाबू कामताप्रसाद, पं. भुजबली शास्त्री, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन आदि जुड़े रहे। द्वितीय महाबुद्ध के समय घोर आर्थिक संकट के कारण दिसम्बर 1940 से इसे षट्मासिक कर दिया गया । Jain Education International सन् 1913 में "जैन प्रकाश" साप्ताहिक का प्रकाशन हिन्दी - गुजराती भाषा में शुरु हुआ । यह अ. भा. श्वेताम्बर जैन कान्फरेंस का मुखपत्र है। सन् 1913 से 1936 तक यह पत्र साप्ताहिक रूप से नियमित निकलता रहा। जून 1937 से इसे पाक्षिक कर दिया गया। जनवरी 1938 से यह पुनः साप्ताहिक हो गया। 1941 में लिये गये एक निर्णय के अनुसार "जैन प्रकाश" को हिन्दी व गुजराती में एक साथ प्रकाशित न कर पृथक-पृथक रूप से प्रकाशित किया जाने लगा तथा प्रति सप्ताह इनकी एक - एक आवृत्ति डनिकाली जाने लगी। इस प्रकार पुनः यह पाक्षिक हो गया। सन् 1954 से पुनः हिन्दी व गुजराती भाषा में इसे संयुक्त रूप से साप्ताहिक किया गया, किन्तु कुछ समय बाद पुनः गुजराती व हिन्दी भाषा में इसके पृथक-पृथक अंक पाक्षिक रूप से प्रकाशित होने 85 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/Page Navigation
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