Book Title: Hindi Jain Patrakarita Itihas evam Mulya
Author(s): Sanjiv Bhanavat
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 14
________________ डॉ. संजीव भानावत जैन पत्रकारिता की एक शताब्दी की विकास यात्रा का अध्ययन इस बात को संकेतित करता है कि यह व्यावसायिकता से आज तक अछूती रही है। जैन पत्रों का प्रकाशन लाभार्जन अथवा अन्य संकीर्ण हितों की पूर्ति के लिए नहीं किया गया। ये पत्र विशद्ध रूप से समाज सुधार के संकल्प तथा अपने धार्मिक आदर्शों और सांस्कृतिक जागरण के प्रचार-प्रसार के लिए प्रकाशित किये जाते रहे हैं। यही कारण है कि जैन पत्रों में प्रकाशित सामग्री मुख्यतः विचार प्रधान तथा नैतिक सामाजिक उद्बोधनों से युक्त होती है। इस प्रकार की सामग्री से जैन पत्र "समाचार पत्र" (News paper ) कम है तथा "विचारपत्र" (Vicews paper ) अधिक हैं। जैन पत्रकारिता वैयक्तिक चरित्र व संयम साधना पर विशेष बल देती है। अतः इनसे जुड़े समाचार विशेष स्थान प्राप्त करते हैं। व्यसन मुक्ति, ब्रह्मचर्य पालन, व्रत, दान आदि के समाचार वैयक्तिक जीवन शुद्धि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसी प्रकार संतों की विहार चर्या से सम्बन्धित समाचार भी इन पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित होते हैं। जैन पत्रों में प्रकाशित समाचारों में जहाँ सामाजिकता के दर्शन होते हैं, वहीं वे धार्मिक एवं सांस्कृतिक जागरण के प्रति भी समर्पित होते हैं। जैन पत्रकारिता के उद्भव और विकास की कहानी इस समाज के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जागरण की कहानी है। जैन पत्रकारिता की यह विकास यात्रा सरल व सहज नहीं रही। नानाप्रकार के संघर्षों को झेलकर ही जैन पत्रकारिता का तप एवं साधनामय स्प उभर सका है। आर्थिक कठिनाइयों, उचित मुद्रण सुविधाओं का अभाव, अवैतनिक संपादक, संपादकीय टीम व कार्यालयी सुविधाओं का अभाव आदि कठिनाइयों के बावजूद जैन पत्रकारिता अपने आदर्शों व उद्देश्यों की पूर्ति में ईमानदारी से समर्पित रही है। जैन पत्रकारिता ने हमारे सामाजिक जीवन को शुद्ध एवं संस्कारवान बनाने की दृष्टि से विभिन्न सामाजिक विकृतियों पर कड़े प्रहार किये हैं। नारी जाति के सामाजिक स्तर पर उसके अधिकारों का समर्थन कर उसके गौरवमय चरित्र को जैन पत्रों ने प्रकट किया है। समाज में पिछड़ी और निम्न जातियों के विकास व उनके जीवन स्तर को सुधारने की प्रेरणा भी जैन पत्रों में भी है। इस प्रकार सामाजिक क्षेत्र में जैन पत्रकारिता ने समतावादी, सदिविहीन, चरित्रनिष्ठ व व्यसनमुक्त समाज की कल्पना का आदर्श हमारे सामने प्रस्तुत किया है। जैन पत्रकारिता का मुख्य धरातल धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा नैतिक मूल्यों के विकास के साथ सम्बद्ध रहा है। राजनीतिक क्षेत्र में भी जैन पत्रकारिता ने इन्हीं मूल्यों की प्रतिष्ठापना पर बल दिया है। अहिंसावादी मूल्यों की संवाहिका जैन पत्रकारिता ने राष्ट्रीय सुरक्षा व अखण्डता जैसे संवेदनशील प्रश्नों पर कायरता का परिचय नहीं दिया वरन् जन-मानस को साहस और शौर्य के साथ इन खतरों से जूझने की प्रेरणा दी है। गांधीजी के स्वदेशी तथा भारत छोड़ो जैसे आन्दोलनों को जैन पत्रकारिता ने सदा अपना रचनात्मक सहयोग दिया। स्वातन्त्र्योत्तर भारत में देश के पुनर्निर्माण के साथ भी जैन पत्रकारिता जुड़ती है और महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर विचारोत्तेजक टिप्पणियाँ लिखकर अपनी राजनीतिक चेतना के प्रखर पक्ष का परिचय देती है। भारतीय संविधान में निहित मानवीय मूल्यों यथा -- वैचारिक स्वतन्त्रता, सामाजिक समानता, धर्मनिरपेक्षता आदि को आम जन से जोड़ने और उनका प्रचार-प्रसार करने की दृष्टि से जैन पत्रकारिता सदा प्रयत्नशील रही। वैचारिक दृष्टि से जैन पत्रकारिता धार्मिक तत्त्वदर्शन के विवेचन-विश्लेषण से जुड़कर अपने व्यापक अर्थों में आत्म कल्याण, विश्वशान्ति व विश्व मैत्री की बात करती है। जैन पत्रकारिता की यह धार्मिक, आध्यात्मिक चेतना मूलतः व्यक्ति चेतना को विकसित करती हुई उसे व्यापक सामाजिक-राष्ट्रीय हितों से जोड़ती है। साहित्यिक सांस्कृतिक चेतना के विकास में भी जैन पत्रकारिता का विशेष योगदान रहा है। जैन पत्रकारिता ने एक ओर यदि साहित्य की विविध विधाओं के रचनात्मक लेखन को प्रकट किया है, वहीं दूसरी ओर संस्कृत की गौरवमय परम्पराओं को भी बनाये रखा है। प्राचीन जैन साहित्य के अन्वेषण, समीक्षण व संरक्षण की दिशा में जैन पत्रों के 95 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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