Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य
- डॉ. संजीव भानावत'
मनुष्य की जिज्ञासा और उत्सुकता की मूलभूत प्रवृत्ति की पत्रकारिता के जन्म और विकास का महत्त्वपूर्ण कारण है । अपने परिवेश के आस-पास घटित घटनाओं से परिचय प्राप्त करने की लालसा आज वृहत्तर सृष्टि तक जा पहुँची है। मनुष्य की इस जिज्ञासा प्रवृत्ति का ही यह परिणाम है कि सम्पूर्ण सृष्टि धीरे-धीरे एक मानव परिवार के रूप में परिणित होती जा रही है। समय के स्पन्दनों को महसूस करने की चाहत ने ही पत्रकारिता के फलक को जीवन्त और चेतनायुक्त बना दिया है।
" मस्तिष्क और आत्मा" की स्वाधीनता के नाम पर जेम्स हिक्की द्वारा 29 जून, 1780 को "बंगाल गजट " या कलकत्ता जनरल एडवरटाईजर" नामक साप्ताहिक पत्र का प्रारम्भ किया गया। वस्तुतः इसी दिन से भारत में पत्रकारिता का विधिवत् प्रारम्भ माना जाता है। अल्पकाल तक जीवित इस पत्र ने दमन के विरुद्ध संघर्ष का जो साहस दिखाया, वह आने वाले काल में पत्रकारिता जगत के लिए आदर्श बन गया। इस पत्र के प्रकाशन के साथ भारत में पत्र- प्रकाशन की परम्परा शुरू हो गयी ।
हिन्दी भाषा का पहला पत्र 30 मई, 1826 को कलकत्ता से प्रकाशित "उदन्त मार्तण्ड" था। इसके संपादक श्री युगल किशोर शुक्ल थे। इसके लगभग 54 वर्षों बाद सन् 1880 में प्रथम हिन्दी जैन पत्र का प्रकाशन हुआ था। जैन पत्रकारिता के प्रारम्भ होने से पूर्व देश के सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने लगे थे। वर्षों की गुलामी से मुक्ति प्राप्त करने के लिए भारतीय जन मानस छटपटा रहा था ।
पहला जैन पत्र
हिन्दी जैन पत्रों की विकास यात्रा का प्रारम्भ सन् 1880 में प्रयाग से प्रकाशित "जैन पत्रिका " से माना जाता है। श्री अगरचन्द नाहटा ने वैंकटलाल ओझा द्वारा संपादित "हिन्दी समाचार पत्र सूची, भाग 1" के आधार पर इसे पहली जैन पत्रिका माना है।
अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने "समाचार पत्रों का इतिहास" में भी सन 1880 में प्रकाशित इस पत्रिका का उल्लेख किया है। 2 इसी भाँति डॉ. रामरतन भटनागर के शोध ग्रन्थ में दी गयी पत्रिकाओं की सूची से भी इस पत्रिका के प्रकाशन की सूचना मिलती है। अतः यह माना जा सकता है कि प्रयाग से सन् 1880 में प्रकाशित " जैन पत्रिका" हिन्दी भाषा की प्रथम जैन पत्रिका है।
काल- विभाजन
अध्ययन की सुविधा के लिए जैन पत्रकारिता के इतिहास को तीन खण्डों में विभाजित किया जा सकता है-
1. प्रथम युग सन् 1880 से 1900
2. द्वितीय युग
सन् 1901 से 1947
3. तृतीय युग - सन 1948 से आज तक
1. प्रथम युग (सन् 1880 से 1900)
जैन पत्रकारिता की इतिहास यात्रा के इन दो दशकों की पत्रकारिता में ऐसे तेवर देखने को नहीं मिलते, जिनसे प्रखर राष्ट्रीय भावना अथवा उत्कट सामाजिक सुधार की लालसा प्रकट होती हो। किन्तु जैन पत्रकारिता
82
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य
का यह शैशवकाल भावी विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। इन पत्रों का मुख्य उद्देश्य अपने धर्म व मतों का प्रचार-प्रसार तो था ही किन्तु सामाजिक जागरण की दिशा में भी ये पत्र सोचने लगे थे। "जैन गजट" तथा "जैन मित्र" जैसे पत्र जो आज भी प्रकाशित हो रहे हैं, इसी युग की देन हैं।
प्रथम जैन पत्र "जैन-पत्रिका" के बारे में विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है। सन 1884 में दो हिन्दी जैन पत्रों का प्रकाशन हुआ -- "जीयालाल प्रकाश" और "जैन"। "जीयालाल प्रकाश" का प्रकाशन फर्रुखनगर (हरियाणा) से हुआ। इन दोनों पत्रों का मुख्य उद्देश्य जैन मत का प्रचार-प्रसार करना था। जैनधर्म पर अन्य विचारधाराओं द्वारा किये जाने वाले प्रहार का विशेषकर स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा, इन पत्रों द्वारा विरोध किया गया।
इसी वर्ष शोलापुर से रावजी सखाराम दोशी, गोरालाल शास्त्री और पन्नालाल सोनी के सम्पादकत्व में हिन्दी, मराठी भाषा का पाक्षिक "जैन बोधक" प्रारम्भ हुआ। यह पत्र अखिल भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्रीय परिषद् का पत्र था (सन् 1891 में अजमेर से "जैन प्रभाकर" का प्रकाशन हुआ, जिसका संपादन छोगालाल बिलाला करते थे।
सन 1892 में "जैन हितैषी" नामक मासिक पत्र मुरादाबाद से बाब पन्नालाल ने निकाला। पहले "देश हितैषी" सन् 1903 में पं. पन्नालाल बाकलीवाल ने प्रकाशित किया, जिसे सन् 1904 में "जैन हितैषी" के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। अतः "जैन हितैषी" का जन्म भी पं. पन्नालाल बाकलीवाल के ही सम्पादन एवं प्रबन्ध में हुआ। इसका प्रमुख उद्देश्य जैन संस्कृति एवं इतिहास विषयक अनुसंधान था। यह जैनों का पहला शोध मासिक था। इसने जगह-जगह पर प्राप्त जैनागम से सम्बद्ध प्राचीन हस्तलिखित अप्रकाशित पाण्डुलिपियों की सूची प्रकाशित की।"2
बाबू पन्नालाल बाकलीवाल की "जैन हितैषी" पत्रिका हिन्दी और उर्दू लिपियों में निकलती थी। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन के शब्दों में बाकलीवाल जैन जागरण के अग्रदूतों की प्रथम पंक्ति में थे। ...छापे के आन्दोलन को उन्होंने सफल बनाया, अनेक संस्थाओं की स्थापना की। "जैन हितैषी" का उन्होंने दस वर्ष तक सम्पादन किया।"3 बाकलीवाल जी के बाद पं. नाथूराम प्रेमी इसके संपादक हुए। इनके कुशल सम्पादन में यह एक उत्कृष्ट साहित्यिक पत्र बन गया था। सामाजिक विषयों को भी इस पत्र में पर्याप्त स्थान दिया जाता रहा। यह पत्र वस्तुतः शोध एवं अनुसन्धानात्मक लेखों के प्रकाशन के कारण उस युग की "साहित्यिक प्रयोगशाला" का प्रथम एवं स्तरीय साहित्यिक पत्र बन गया था।
सन् 1891 में अजमेर से "जैन प्रभाकर" का प्रकाशन हुआ। इसके संपादक छोगालाल बिलाला थे। इसी समय बाबू ज्ञानचन्द जैनी ने " जैन पत्रिका" निकालनी शुरु की। बाबू ज्ञानचन्द बहुत ही साहसी और निर्भीक थे। जैन समाज में सबसे पहले शायद उन्होंने ही विधवा विवाह की चर्चा छेड़ी थी।
इस समय साम्प्रदायिक और जातीय पत्रों के प्रकाशन का सिलसिला प्रारम्भ हो गया था। इसमें अनेक पत्रों का मूल स्वर सम्प्रदाय विशेष के विचारों का प्रसार करना ही रहा।
अजमेर से दिसम्बर 1895 में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा ने साप्ताहिक "जैन गजट" का प्रकाशन प्रारम्भ किया। जैनधर्म व दर्शन से सम्बद्ध लेखों के प्रकाशन के साथ-साथ इसमें जैन समाज की गतिविधियों के समाचार भी प्रकाशित किये जाते थे। बाबू सूरजभान जैन के सम्पादन में प्रारम्भ हुए इस पत्र का मुख्य उददेश्य दिगम्बर जैन महासभा की नीतियों का प्रचार-प्रसार करना था। इस पत्र ने भारत के जैन मतावलम्बियों को एक सत्र में संगठित करने तथा उनको उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। श्री
83
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
डॉ. संजीव भानावत
घासीराम, बाबू देवकुमार, पं. वर्धमान शास्त्री एवं हरकवन्द सेठी इस पत्र के उल्लेखनीय संपादक रहे हैं। "जैन गजट" मुख्यतः परम्परावादी तथा स्थितिपालक नीति का पत्र है, जो हिन्दी के वर्तमान समाचार पत्रों में सबसे अधिक पुराना पत्र है। यह इस समय लखनऊ से प्रकाशित हो रहा है। इसके प्रधान संपादक पं. श्याम सुन्दरलाल शास्त्री है।
सन् 1897 में फर्रुखनगर से मासिक "जैन भास्कर" का प्रकाशन हुआ। जनवरी सन् 1900 में बम्बई से मासिक "जैन मित्र" का प्रकाशन हुआ। यह पत्र रायल अठपेजी साइज के सोलह पेजों पर निकलता था और डाक खर्च सहित सवा रुपया उसका वार्षिक मूल्य था। प्रारम्भ में यह पत्र दिगम्बर जैन सभा, बम्बई की ओर से निकलता था किन्तु एक वर्ष बाद यह प्रांतिक सभा का मुख पत्र बन गया। ___"जैन मित्र" पं. गोपालदास बरैया के सम्पादन में प्रकाशित होता था। चौथे वर्ष से पं. नाथूराम प्रेमी भी इसके सहायक सम्पादक हो गये। सन् 1908 में इसके संपादन का भार शीतलप्रसाद जी पर आ गया। अठारहवें वर्ष से इस पत्र का प्रकाशन साप्ताहिक रूप से होने लगा। सन् 1917 में यह सूरत से छपने लगा। ___"जैन मित्र" सदा सामाजिक बुराइयों का विरोधी रहा। साहित्य, दर्शन, शिक्षा, धर्म तत्त्वज्ञान सहित धार्मिक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक विषयों पर इस पत्र में अनेक लेख प्रकाशित होते हैं। इसके सम्पादकीय प्रायः विचार प्रधान हुआ करते थे। स्वतन्त्रता पूर्व देश की राजनीतिक अवस्था पर "जैन मित्र" ने काफी लिखा।
"जैन मित्र" के संस्थापक मूलचन्द किसनदास कापडिया थे। इनका चित्र आज भी "जैन मित्र" के प्रत्येक अंक पर प्रकाशित होता है। इस पत्र के सम्पादन से गोपालदास बरैया, पं. नाथूराम प्रेमी, ब्र. शीतलप्रसाद, पं. परमेष्ठिदास आदि जुड़े रहे। वर्तमान में इसका सम्पादन शैलेश डाहथाभाई कापडिया कर रहे हैं।
हिन्दी जैन पत्रकारिता का यह प्रथम युग शैशवकाल माना जा सकता है। यह वह समय था जब जैन पत्रकारिता अपनी विकास की सम्भावनाओं को खोज रही थी। राजा राममोहन राय से लेकर दयानन्द सरस्वती, विवेकानन्द, एनीबेसेन्ट आदि समाज सुधारकों के स्वर के साथ ही अपनी शैशवावस्था में जैन पत्रकारिता ने समाज की धड़कन को सुनने का प्रयत्न किया। इस दौर में बाबू पन्नालाल बाकलीवाल, पं. नाथूराम प्रेमी, जुगलकिशोर मुख्तार, बाबू ज्ञानचन्द आदि जैसे तेजस्वी व्यक्तियों ने "जैन हितैषी", "जैन पत्रिका", "जैन मित्र" आदि पत्रों के साथ समाज सुधार तथा जन-जागरण की दिशा में प्रयत्न करने प्रारम्भ कर दिये थे। इन जैन पत्रकारों ने शिक्षा-प्रचार, स्त्रियों की दशा में सुधार तथा सामाजिक संगठनों की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए सुधारवादी प्रवृत्तियों का प्रचार-प्रसार करने के लिए प्रयत्न किया। द्वितीय युग ( सन् 1901 से 1947 ई. तक)
जैन पत्रकारिता का दूसरा चरण सन् 1901 से 1947 तक माना जा सकता है। इस दौर में देश में स्वाधीनता आन्दोलन पूरे जोर पर था। तिलक और उसके बाद गाँधी ने देश की जनता को राजनैतिक अधिकारों से परिचित कराकर स्वतन्त्र भारत का स्वर्णिम स्वप्न दिखाया। इस काल के अधिकांश पत्र भारत की आजादी के संघर्ष के प्रति समर्पित थे। स्वतन्त्रता का शंखनाद करने वाले इन पत्रों की आजादी को प्रतिबन्धित करने का भी प्रयास समय-समय पर ब्रिटिश सरकार द्वारा किया जाता रहा, जिसका सशक्त विरोध भी इनके सम्पादकों और प्रकाशकों ने किया।
तिलक के बाद आजादी के संघर्ष की बागडोर गाँधीजी के हाथों में आ गयी। व्यावसायिक पत्रकारिता से दूर रहते हुए गांधीजी ने सदा जनहित तथा मिशनरी भावना से कार्य किया। गाँधीजी ने अपनी लड़ाई का मुख्य आधार अहिंसा को बनाया। सामाजिक कुरीतियों और दूषित परम्पराओं के खिलाफ जहाँ गांधीजी ने पत्रकारिता
84
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
के माध्यम से आवाज उठाई वहीं भारतमाता की परतन्त्रता की बेड़ियों को तोड़ने के लिए देश में चल रहे आन्दोलन को नेतृत्व दिया तथा सत्याग्रह, असहयोग और भारत छोड़ो आन्दोलन को सक्रियता प्रदान की ।
आर्य समाज के इतिहासकारों ने इस युग को "संस्था युग" का नाम दिया है। जैन समाज की भी लगभग यही स्थिति रही। इस काल में अनेक जैन धार्मिक तथा सामाजिक संगठन स्थापित किये गये। इन संगठनों ने अपने मुख पत्रों का प्रकाशन किया। इस युग की जैन पत्रकारिता में तिलक की भाँति तेजस्वी और प्रदीप्त स्वर तो देखने को नहीं मिलता किन्तु गांधी की अहिंसा की भावना को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है अहिंसा जैन दर्शन का मुख्य तत्त्व है। गांधीजी के कार्यक्रमों और नीतियों को अनेक जैन पत्रों ने अपना समर्थन दिया। इस कालखण्ड के जैन पत्र इस प्रकार हैंप्रमुख
|
हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य
11
"स्थानकवासी जैनी भाइयों को धर्म, नीति, व्यवहार सदाचार, बताने वाला मासिक "जैन हितेच्छु” बम्बई से अगस्त 1901 में प्रकाशित हुआ । इसके संपादक मोतीलाल मनसुखलाल शाह थे। ये "स्पेक्टेटर" उपनाम से लिखते थे यह पत्र "विचार पत्र" अधिक था। लगभग ढाई वर्षों तक वह गुजराती भाषा में प्रकाशित होता रहा था किन्तु दक्षिण, पंजाब, मेवाड़, मारवाड़ आदि प्रदेशों के स्थानकवासी जैन भाइयों के लाभार्थ इसे हिन्दी में "हिन्दी जैन हितेच्छु" के नाम से प्रकाशित किया जाने लगा। इसी समय "जैन आदित्य" नामक पाक्षिक पत्र भी स्थानकवासी जैनियों ने प्रकाशित किया, जो आर्थिक संकट के कारण दो माह में ही बन्द हो गया।
सन् 1905 में गुलाबचन्द ढढ्ढा के संपादन में श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरेंस प्रकाश आफिस, मुम्बई द्वारा मासिक "श्री जैन श्वेताम्बर कान्रेन्स हेरल्ड" का प्रकाशन किया गया। इस पत्र का प्रकाशन अंग्रेजी, हिन्दी तथा गुजराती भाषा में होता था। मार्च 1906 के बाद के अंकों में अधिकांश सामग्री गुजराती में प्रकाशित होने लगी थी।
सन् 1910 में जैन स्त्रियों के लिए देवबन्द सहारनपुर से "जैन नारीहितकारी” पत्र निकला, जिसके सम्पादक बा. ज्योतिप्रसाद थे। जनवरी 1912 में हिन्दी, गुजराती भाषा में "श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फरेंस प्रकाश" का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। जुलाई 1912 में आरा (बिहार) से श्री जैन सिद्धान्त भवन ने अपना मुखपत्र "श्री जैन सिद्धान्त भास्कर" का प्रकाशन किया। इस त्रैमासिक पत्रिका के सम्पादक पदमराज रानीवाला थे। जैनधर्म और संस्कृति से सम्बन्धित शोध एवं गवेषणापूर्ण लेख इस त्रैमासिक पत्रिका में प्रकाशित होते हैं। इस पत्र ने सिर्फ प्राचीन सुरक्षित शास्त्रों की ऐतिहासिक चर्चा करने का संकल्प अपने प्रथम संपादकीय में व्यक्त किया। राजनैतिक तथा सामाजिक विषयों से यह पत्र दूर ही रहा। जून 1937 से अंग्रेजी विभाग "द जैन एंटीक्वेरी" नाम से प्रारम्भ हुआ।
"श्री जैन सिद्धान्त भास्कर" का प्रकाशन सन 1913 से 1935 तथा 1966 से 1962 तक बन्द रहा। इसके संपादन से प्रो. हीरालाल, प्रो. ए. एन्. उपाध्ये, बाबू कामताप्रसाद, पं. भुजबली शास्त्री, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन आदि जुड़े रहे। द्वितीय महाबुद्ध के समय घोर आर्थिक संकट के कारण दिसम्बर 1940 से इसे षट्मासिक कर दिया गया ।
सन् 1913 में "जैन प्रकाश" साप्ताहिक का प्रकाशन हिन्दी - गुजराती भाषा में शुरु हुआ । यह अ. भा. श्वेताम्बर जैन कान्फरेंस का मुखपत्र है। सन् 1913 से 1936 तक यह पत्र साप्ताहिक रूप से नियमित निकलता रहा। जून 1937 से इसे पाक्षिक कर दिया गया। जनवरी 1938 से यह पुनः साप्ताहिक हो गया। 1941 में लिये गये एक निर्णय के अनुसार "जैन प्रकाश" को हिन्दी व गुजराती में एक साथ प्रकाशित न कर पृथक-पृथक रूप से प्रकाशित किया जाने लगा तथा प्रति सप्ताह इनकी एक - एक आवृत्ति डनिकाली जाने लगी। इस प्रकार पुनः यह पाक्षिक हो गया। सन् 1954 से पुनः हिन्दी व गुजराती भाषा में इसे संयुक्त रूप से साप्ताहिक किया गया, किन्तु कुछ समय बाद पुनः गुजराती व हिन्दी भाषा में इसके पृथक-पृथक अंक पाक्षिक रूप से प्रकाशित होने
85
/
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
डॉ. संजीव भानावत
लगे।
"जैन प्रकाश" प्रारम्भ में अजमेर से पता था। बाद में यह सुरत से छपने लगा। "जैन प्रकाश" के आदि संपादक डॉ. धारसीभाई गुलाबचन्द संघाणी थे। इनके अतिरिक्त झवेरचन्दजादव कामदार, पं. बालमुकुन्द शर्मा, रतनलाल बथेलवाल, पं. दुखमोचनझा, दुर्गाप्रसाद जौहरी, सूरजमल लल्लूभाई जैन, त्रि.बी. हेमण्णी डायालालमणिलाल मेहता, हर्षचन्दमफरचन्द दोशी, नटवरलालकपूरचन्द शाह, गुलाबचन्दनानचन्द सेठ, रमणिकलाल तुरखिया, एवं जे. देसाई, रत्नकुमार जैन "रत्नेश", शान्तिलालवनमाली सेठ, आनन्दराज सुराणा, डॉ. ए.पी. पटेरिया, रामानन्द जैन आदि भी इसके सम्पादन से जुड़े रहे। वर्तमान में इसका प्रकाशन अजितराज सुराणा के सम्पादन में दिल्ली से हो रहा है। गुजराती "जैन प्रकाश" का प्रकाशन बम्बई से हो रहा है।
सन् 1914 में बम्बई से मालवा दिगम्बर जैन प्रांतिक सभा का सचित्र मासिक मुख पत्र "जैन प्रभात" का प्रकाशन सूरजमल जैन के संपादन में हुआ। इसी वर्ष "जैन प्रदीप" के प्रकाशन के भी उल्लेख मिलते हैं। सन 1915 में राधावल्लभ जसोदिया के सम्पादन में "खंडेलवाल जैन हितैषी" निकाला। इसी वर्ष बम्बई से "जैन हितेच्छु" नामक त्रैमासिक पत्र का प्रकाशन हुआ। सन 1916 में हाथरस (उ.प्र.) से मिश्रीलाल सांगानी ने "जैन मार्तण्ड" नाम से हिन्दी मासिक प्रकाशित किया। अप्रैल 1917 को बम्बई से टेकचन्द सिंघी के संपादन में मासिक "जैनसमाज" का प्रकाशन हुआ। यह एक सुधारवादी पत्र था।
जोधपुर से जून 1918 में ओसवाल यंगमेन्स सोसायटी ने "मारवाड़ और ओसवाल" नाम से मासिक पत्र प्रकाशित करना प्रारम्भ किया था। बाद में इसका नाम ओसवाल हो गया। ओसवाल जाति की उन्नति के लिए समर्पित इस पत्र ने स्वयं को तत्कालीन राजनैतिक एवं धार्मिक विवादों से दूर रखा। जैन धर्मावलम्बियों की एक प्रशाखा खण्डेलवालों का मुखपत्र "खण्डेलवाल जैन" गौतमपुरा (इन्दौर) से 1918 में प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष इन्दौर से श्यामलाल पाण्डवीय के सम्पादन में जैनियों की एक पत्रिका "जीवदया" निकली। सन् 1918 में ही आगरा से श्री महेन्द्र के सम्पादन में मासिक "जैसवाल जैन", श्री वीर भवन, आगरा से मासिक" जैन पथ प्रदर्शक", श्री वीरभक्त के संपादन में कलकत्ता से मासिक "पद्मावती पुरवाल" तथा इटावा से मासिक "सत्योदय" का प्रकाशन हुआ।
अप्रैल सन् 1902 में "जैन इतिहास, साहित्य, तत्त्व ज्ञान आदि विषयक" उद्देश्य को लेकर जैन साहित्य संशोधक समाज की ओर से मुनिराज श्री जिनविजय जी के संपादन में सचित्र त्रैमासिक पत्रिका "जैनसाहित्य संशोधक" का प्रकाशन पूना से हुआ। जैन धर्म, इतिहास, कला-संस्कृति तथा स्थापत्य आदि क्षेत्रों में शोध एवं अनुसंधान की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देने तथा आम पाठकों के समक्ष लाने का प्रयास "जैनसाहित्य संशोधक" ने किया। इस वर्ष प्रकाशित अन्य प्रमुख पत्र थे -- पूना सिटी से "महावीर", मंडीकटरा, सागर से मुन्नालालराधेलाल काव्यतीर्थ के संपादन में "गोलापूर्व जैन", सिवनी से कस्तूरचन्द वकील के संपादन में "परवार", दिल्ली से चाणसी गुलाबचन्द संघाणी के संपादन में "जैन जगत", नन्दबाई, इन्दौर से रतनलालबघेललाल जैन के सम्पादन में "जैन दिवाकर", दिल्ली से "जैन बन्धु" तथा सोलापुर ( महाराष्ट्र) से पं. गौरीलाल शास्त्री के संपादन में "जैन सिद्धान्त"।
मई 1921 में सुरत से मासिक "जैन महिलादर्श" का प्रकाशन भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला परिषद की ओर से श्रीमती पंडिताचन्दाबाई, आरा के संपादन में किया गया। जैन समाज की नारियों में सामाजिक चेतना के जागरण और धार्मिक भावों के रफुरण में इस पत्र की उल्लेखनीय भूमिका रही। नारी जाति के मनोबल को बनाये रखने में "जैन महिलादर्श" का विशेष सहयोग रहा। पं. चन्दाबाई 52वर्ष तक इस पत्र का सपादन करती रहीं। कालान्तर में इसका प्रकाशन स्थगित हो गया किन्तु सन 1988 में महावीर जयन्ती के अवसर पर इसका
86
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य
पुनःप्रकाशन भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा की ओर से लखनऊ से डॉ. कुसुमशाह के संपादन में किया जाने लगा है।
अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद की ओर से बिजनौर में ब्र. शीतलप्रसाद के संपादन में सन् 1923 में पाक्षिक "वीर" का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। शीघ्र ही इस पत्र के संपादन से पं. परमेष्ठीदास जैन का नाम जुड़ गया। इनकी संपादन कुशलता से "वीर" ने कुछ ही समय में युवा वर्ग में अपनी अच्छी पहचान कायम कर ली। यह पत्र सामाजिक विकृतियों का कटु आलोचक तथा नवीन चेतना का अग्रदूत बन गया। वर्तमान में इसका प्रकाशन दिल्ली से हो रहा है। इस वर्ष में प्रकाशित होने वाले पत्रों में प्रमुख हैं -- अजमेर से दुर्गाप्रसाद के संपादन में साप्ताहिक "अहिंसा प्रचारक", सोलापुर से पं. अजित कुमार शास्त्री के संपादन में मासिक "जैन प्रभादर्श", कलकत्ता से दुलीचन्द परवार के संपादन में मासिक "परवार हितैषी" । सन् 1924 में आबूरोड से "मारवाड़ जैनसुधारक" मासिक का प्रकाशन हुआ।
सन् 1925 में प्रकाशित पत्रों में "खण्डेलवाल जैनहितेच्छु", "जैन जगत", "प्यारी पत्रिका", "श्री मारवाड़ जैनसुधाकर", "हमड बन्धु" तथा "श्वेताम्बर जैन" प्रमुख हैं। "खण्डेलवाल जैन हितेच्छु" साप्ताहिक पत्र "खण्डेलवाल जैन महासभा", अजमेर का मुखपत्र था, जो बाद में पाक्षिक हो गया और पं. नाथूलाल शास्त्री के संपादन में इन्दौर से प्रकाशित होने लगा। समाज सुधार तथा रुढ़ियों के विरुद्ध आवाज बुलन्द करने में इस पत्र ने विशेष भूमिका निभाई। इसी वर्ष कपूरचन्द पाटनी के संपादन में पाक्षिक "जैन जगत" का प्रकाशन फतहचन्द सेठी ने अजमेर से किया। इस पत्र में दरबारी लाल न्यायतीर्थ के क्रांतिकारी और तेजस्वी विचारों का प्रकाशन किया जाता था। सन् 1926 से पत्र का संपादन भार भी उन्हीं के कंधों पर आ गया। इनके संपादन स्पर्श के बाद तो यह पत्र तत्कालीन समाज का एक ऐसा प्रखर पत्र बन गया, जो दूषित परम्पराओं, रूढ़ियों और अंधविश्वासों पर कड़े प्रहार करता था। सन् 1934 में दरबारीलाल जी ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। सन 1935 में उन्होंने "जैन जगत" को पाक्षिक "सत्य संदेश" के रूप में परिवर्तित कर दिया।
सन 1927 में प्रकाशित पत्रों में दीपचन्द जैन के संपादन में दिल्ली से हिन्दी मासिक "वर्धमान" तथा पं. श्रीलाल के संपादन में कलकत्ता से हिन्दी मासिक "विनोद" थे। "आदर्श जैन चरित्र", "समन्तभद्र", "जैन युवक" तथा "ओसवाल-नवयुवक" सन् 1928 में प्रकाशित प्रमुख पत्रिकाएँ हैं। "आदर्श जैन-चरित्र" मासिक का प्रकाशन बिजनौर से पं. मूलचन्द वत्सल के संपादन में हुआ। सरसावा से इसी वर्ष पं. जुगलकिशोर मुख्तार के संपादन में "समन्तभद्र" मासिक का प्रकाशन शुरु हुआ, जो शीघ्र ही "अनेकान्त" में मिल गया। मार्च 1928 में मासिक "जैन युवक" का प्रकाशन कलकत्ता से श्री विजयसिंह भांडिया के संपादन में हुआ। यह पत्र जैन समाज में चेतना एवं ओजस्वी भावनाओं का प्रसार करने वाला पत्र था। समाज-सुधार, समाज संगठन, अछूतोद्धार, शुद्धि-संस्कार सम्बन्धी तथा राजनैतिक लेखों का प्रकाशन इस पत्र में होता था।
जनवरी 1928 में कलकत्ता से ओसवाल नवयुवक समिति ने मासिक "ओसवाल नवयुवक" का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस मासिक का मूल स्वर सामाजिक सुधार था। सामाजिकता के साथ-साथ संपादकीय वक्तव्यों में राष्ट्रीय भावनाओं की भी झलक दिखाई देती थी। इस पत्र के संपादन से श्रीचन्दरामपुरिया, मोहनलाल, जेठमल भंसाली, मोतीलाल नाहटा, सिद्धराज ढढ्ढा, गोपीचन्द चोपड़ा, विजयसिंह नाहर तथा भंवरमल सिंघी जैसे प्रबुद्ध विचारक जुड़े रहे। स्वतंत्रतापूर्व के उस काल में विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कोई समझौता न करने का सुन्दर उदाहरण इस पत्र के संपादकों-- श्री विजयसिंह नाहर तथा भंवरमल सिंघी ने प्रस्तुत किया। "साधुत्व" विषय पर प्रकाशित एक लेख पर हुई तीखी आलोचना पर जब पत्र संचालकों ने उन्हें भविष्य में ऐसे लेख न छापने की प्रतिज्ञा का आग्रह किया तो दोनों ने अपना त्यागपत्र दे दिया। इसी वर्ष रतनलाल मेहता के
87
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
डॉ. संजीव भानावत
संपादन में श्री उत्तमजैन साहित्य प्रकाशक मण्डल, उदयपुर की ओर से मासिक "जैन ज्ञान प्रकाश" का प्रकाशन हुआ।
21 अप्रैल, 1929 को पं. जुगलकिशोर मुख्तार ने देहली में समन्तभद्राश्रम की स्थापना की और दिसम्बर 1929 में मासिक "अनेकान्त" का प्रकाशन किया। एक वर्ष तक नियमित प्रकाशन बन्द हो गया और आठ वर्ष बाद पुनः प्रकाशन शुरु हो सका। आगामी कुछ वर्षों तक प्रकाशन की नियमितता में बाधाएँ आती रहीं। सन् 1956 से 1962 तक इसका प्रकाशन स्थगित रहा किन्तु उसके बाद से यह अनवरत रूप से प्रकाशित हो रहा है। सन् 1953 तक मुख्तार सा. ही इसका संपादन करते रहे। उसके बाद छोटेलाल जैन, जयभगवान जैन, परमानन्द शास्त्री, आदिनाथ नेमीनाथ उपाध्ये, रतनलाल कटारिया, डॉ. प्रेमसागर जैन, यशपाल जैन, गोकुलप्रसाद जैन आदि इसके संपादन से सम्बद्ध रहे। सामाजिक वाद-विवादों तथा सम्प्रदायवाद से रहित "अनेकान्त" एक ऐसा मासिक पत्र है, जो सत्य, शान्ति और लोकहित का संदेशवाहक बनकर जैन पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुख स्थान रखता है। इतिहास, पुरातत्त्व, दर्शन, साहित्य आदि की यह एक प्रमुख शोधपूर्ण एवं आलोचनात्मक त्रैमासिकी है। इस पत्रिका के विकास में पं. जुगलकिशोर मुख्तार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। "अनेकान्त" के माध्यम से मुख्तार सा. ने जैन पत्रकारिता के साहित्यिक व अनुसंधानात्मक पक्ष को अत्यधिक पुष्ट किया। डॉ. ज्योति प्रसाद जैन ने उन्हें जैन पत्रकारिता का "महावीर प्रसाद द्विवेदी बताया है।
वर्धा से 16 नवम्बर 1919 को पाक्षिक पत्र "सनातन जैन" का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सामाजिक सुधारों की दृष्टि से यह पत्र उल्लेखनीय है। शीतलप्रसाद जी के संपादन में इस पत्र ने बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह सहित अनेक सामाजिक कुरीतियों का तीखा विरोध किया।
हिन्दी मासिक "वीरवाणी" का प्रकाशन सन् 1929 में दुलीचन्द परवार के संपादन में कलकत्ता से हुआ। सन् 1930 में आत्मानन्द जैन महासभा की ओर से अम्बाला नगर से श्री कीर्तिप्रसाद जैन के सम्पादन में मासिक "आत्मानन्द" का प्रकाशन किया गया। यह सामाजिक-सांस्कृतिक और नैतिक विचारों की प्रमुख पत्रिका थी। सन् 1932 में ललितपुर (उ.प्र.) से मासिक "सिद्धि" का प्रकाशन रा.वै. सिद्धसागर के संपादन में तथा जयपुर से रायसाहब केसरमल अजमेरा के संपादन में मासिक "सुधारक" का प्रकाशन हुआ।
सन 1914 में प्रकाशित मालवा दि. जैन प्रांतिक सभा के मुखपत्र मासिक "जैन प्रभात" का पुनःप्रकाशन मई, 1933 में श्री दि. जैन मालवा प्रांतिक सभाश्रित औषधालय, बडनगर (उज्जैन) द्वारा किया गया। इसके संपादक लाला भगवानदास थे। इसी वर्ष जुलाई में मुलतान से पाक्षिक "जैन दर्शन" शुरु किया गया, जो पं. चैनसुखदास जैन के संपादन में प्रकाशित होता था। यह श्री भारतवर्षीय दि. जैन शास्त्रार्थ संघ का मुखपत्र था।
बिजनौर से अगस्त 1933 में श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ परिषद का मुखपत्र "जैन दर्शन" पाक्षिक का प्रकाशन शुरु हुआ। 2 जुलाई 1934 में आगरा से चाँदमल चौरसिया और सर्यवर्मा के संपादन में "ओसवाल सुधारक संगठन" नाम से पाक्षिक पत्र का प्रकाशन किया गया। एक वर्ष बाद इसका नाम "ओसवाल सुधारक" कर दिया गया। यह पत्र प्रगतिशील चेतना का प्रतीक था। फरवरी 1935 में जैन शिक्षण परिषद, ब्यावर ने ब्यावर के श्री जैन गुरुकुल से हिन्दी मासिक "जैन शिक्षण संदेश" का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इसके संपादक शोभाचन्द्र भारिल्ल और शांतिलाल वनमाली सेठ थे। यह पत्र "शिक्षण संस्थाओं का सखा तथा माता-पिताओं का मार्गदर्शक" था। "शिक्षा, शिक्षक और शाला" से सम्बन्धित इस पत्रिका ने बच्चों को सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा दी तथा उन्हें बुराई से बचने का भी संदेश दिया। इसी वर्ष कलकत्ता से पाक्षिक "जैन बन्धु" का प्रकाशन पं. चैनसुखदास के संपादन में प्रारम्भ हुआ। यह पत्र कलकत्ता के पाक्षिक स्वतन्त्र सामाजिक पत्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जो प्रखर सामाजिक चेतना का पत्र बना। भंवरलाल न्यायतीर्थ भी इसके संपादन से बाद में जुड़ गये। सन
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य
1935 में ही नागपुर से पाक्षिक "तारणपंथ" तथा अजमेर से सुजानमल सोनी के संपादन में "चन्द्रसागर" का प्रकाशन हुआ।
10 मई 1936 को आगरा से "वीर संदेश" पाक्षिक का प्रकाशन जवाहरलाल लोढ़ा के संपादन में हुआ। 10 अप्रैल 1936 में अजमेर से राजमल लोढ़ा के संपादन में "जैन ध्वज" का प्रकाशन हुआ। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ की ओर से मई 1937 में साप्ताहिक "जैन संदेश" का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इसके आदि संपादक कपूरचन्द जैन थे। सन् 1958 में शोध सामग्री युक्त त्रैमासिक "शोधांक" भी इस पत्र के साथ प्रकाशित होना शुरु हुआ। शोधांक का प्रकाशन सन् 1981 तक डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन के संपादन में होता रहा। इसी वर्ष "शान्ति सिन्धु" नामक पाक्षिक पत्र का प्रकाशन हुआ। सन् 1938 में प्रकाशित पत्रिकाओं में अ.भा.दि. जैन परवार सभा का मासिक "परवार बन्धु", अ.भा. तारणपंथी नवयुवक मण्डल का मासिक "तारणबन्धु आदि
सन् 1939 में "जैन भारती" का प्रकाशन कलकत्ता से शुरु हुआ। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के इस मासिक मुखपत्र तथा साप्ताहिक विवरण पत्रिका का प्रकाशन जनवरी 1952 से बन्द कर दिया गया था तथा इनके स्थान पर -- "जैन भारती" साप्ताहिक का प्रकाशन 5 फरवरी, 1953 में श्रीचन्द रामपुरिया के संपादन में शुरु हुआ। वर्तमान में इसका प्रकाशन कु. हंसा दस्ताणी के संपादन में कलकत्ता से हो रहा है। विजयसिंह नाहर तथा भंवरमल सिंघी ने जनवरी 1940 में "तरुण ओसवाल" का प्रारम्भ कलकत्ता से किया। यह सामाजिक सुधारों तथा क्रांति व संघर्ष के प्रदीप्त स्वरों से युक्त प्रखर पत्र था। एक वर्ष बाद यही पत्र "तरुण जैन" के नाम से प्रकाशित होने लगा। इसी वर्ष ठाकुर प्रभुदयाल जैन के संपादन में भिण्ड, ग्वालियर से मासिक "खण्डेलवाल जैन हितैषी" प्रकाशित हुआ। चिमनसिंह लोढ़ा ने 1940 में ही पाक्षिक "झलक" का प्रकाशन किया।
सन् 1942 में इन्दौर से बाबू अमोलकचन्द सिंघवी के सम्पादन में "मंगल" का प्रकाशन हुआ। जनवरी 1943 में आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. की प्रेरणा से श्री रत्न विद्यालय, भोपालगढ़ (जोधपुर) द्वारा फूलचन्द जैन सारंग "विद्यालंकार" के संपादन में इतिहास, संस्कृति और धर्म की मासिकी "जिनवाणी" का प्रकाशन हुआ। वर्तमान में यह पत्रिका डॉ. नरेन्द्र भानावत के संपादन में जयपुर से प्रकाशित हो रही है, जिसमें धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक और साहित्यिक धरातल से आध्यात्मिक नवचेतना को जागृत करने वाली सामग्री प्रकाशित की जाती है। इस पत्रिका के संपादन-दायित्व से बसन्त कुमार जैन, शशिकान्त झा, पं. रत्नकुमार जैन "रत्नेश", केसरीकिशोर "केशव", प्रकाशचन्द्र बोथरा, शान्तिचन्द मेहता, लालचन्द जैन, मिट्ठालाल मुरडिया, मदन लाल जैन, पारसमल प्रसून, जिनेन्द्र कुमार जैन, जतनराज मेहता, डॉ. शान्ता भानावत आदि जुड़े रहे। अजमेर से इसी वर्ष प्रकाशमल जैन के संपादन में त्रैमासिक "जैन ज्योति" का प्रकाशन हुआ। 6 अप्रैल 1944 में विजय मोहन जैन के संपादन में मासिक सूचना पत्र "वीर लोकाशाह का प्रकाशन शुरु किया गया।
मई 1945 में आत्मधर्म कार्यालय (सुवर्णपुरी) सोनगढ़-काठियावाड़ से हिन्दी मासिक "आत्मधर्म" का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। यह श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़ (सौराष्ट्र) का मुखपत्र है। यह पत्र कानजी स्वामी के मांगलिक प्रवचनों को प्रमुखता से प्रकाशित करता रहा है। इसके आदि संपादक रामजीभाईमाणकचन्द दोशी थे। सन् 1976 से इस पत्र की मुद्रण व्यवस्था जयपुर से होने लगी। किन्तु 1983 में पुनः सोनगढ़ से प्रकाशित होने लगा।
अप्रैल 1947 को वर्धा से श्री भारत जैन महामण्डल के मुखपत्र "जैन जगत" का प्रकाशन हुआ। इसके प्रकाशक तथा संपादक हीरासाब चवड़े थे। वर्तमान में इसका प्रकाशन चन्दनमल चाँद के संपादन में बम्बई से हो
89
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
डॉ. संजीव भानावत
रहा है। इस पत्र के संपादन से रिषभदास रांका, जमनालाल जैन, अगरचन्द नाहटा, धीरजलालधनजीभाई शाह, शंकर जैन, रतन पहाडी, रतनलाल जोशी आदि जुड़े रहे। "जैन जगत" सामाजिक चेतना का प्रमुख पत्र है। श्री वीर प्रेस, जयपुर पं. चैनसुखदास न्यायतीर्थ एवं भंवरलाल न्यायतीर्थ के संपादन में पाक्षिक "वीरवाणी" का प्रकाशन अप्रैल 1947 में हुआ। वर्तमान में इसका प्रकाशन भंवरलालजैन न्यायतीर्थ तथा डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल के संपादन में हो रहा है। श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, श्री महावीरजी (जयपुर स्टेट) के सचित्र पाक्षिक मुखपत्र "महावीर संदेश" 25 मई 1947 से प्रारम्भ हुआ। धार्मिक पत्र होते हुए भी यह मानव कल्याण के प्रति समर्पित था। 15 अगस्त 1947 को सागर से पं. पन्नालाल साहित्याचार्य के संपादन में मासिक "जैन प्रकाश" का प्रकाशन हुआ।
भारत की स्वाधीनता के साथ हिन्दी जैन पत्रकारिता के दूसरे युग का इतिहास पूरा हो जाता है। हिन्दी जैन पत्रकारिता के प्रथम युग में हम जिस सामाजिक चेतना के दर्शन करते हैं वह अत्यन्त प्रखरता के साथ दूसरे युग में उभरती है। वृद्ध-विवाह, बाल-विवाह, कन्याविकय आदि कुरीतियों का तीखा विरोध इस युग की विशेषता है।
यह काल-खण्ड जैन पत्रकारिता के युवावस्था का काल माना जा सकता है यह वह समय था जब देश में राजनैतिक आन्दोलन पूरे जोर पर था। सर्वत्र पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की जा रही थी। ऐसे कठिन समय में जैन पत्रकारिता ने धार्मिक-सामाजिक सुधारों के साथ-साथ गांधीजी की अहिंसात्मक लड़ाई को अपना नैतिक एवं रचनात्मक समर्थन दिया।
तृतीय युग (सन् 1948 से आज तक )
जैन पत्रकारिता का तीसरा युग सन् 1948 से आज तक माना जा सकता है। इस काल में देश राजनीतिक दृष्टि से स्वतन्त्र था अब हमें अपने स्वप्नों का भारत बनाना था। नव निर्माण के इस महायज्ञ में पत्र-पत्रिकाओं ने भी हिस्सा बँटाया। इस युग के प्रमुख पत्र इस प्रकार हैं
-
31
जनवरी 1948 में कलकत्ता से पुरातत्त्व विशेषज्ञ मुनिश्री कांतिसागर के संपादन में "नव निर्माण", आगरा से हजारीमल जैन के संपादन में "पंकज", जोधपुर से साप्ताहिक "अहिंसा" कलकत्ता से साप्ताहिक "जनपथ" आदि इस युग के कुछ प्रारम्भिक प्रमुख पत्र थे।
जनवरी 1949 में हिंसा के विरुद्ध आवाज बुलन्द करने वाला "हिंसा विरोध" का प्रकाशन अहमदाबाद से हुआ। भारतीय ज्ञानपीठ, काशी ने 9 जुलाई 1948 को मासिक "ज्ञानोदय" का प्रकाशन कलकत्ता- दिल्ली से क्रमशः किया प्रारम्भ में यह पत्रिका भ्रमण संस्कृति की प्रमुख पत्रिका थी। लगभग चार वर्षों तक "ज्ञानोदय" का स्वरुप जैन वाङ्मय के शोध अनुसंधान पर विशेष केन्द्रित रहा। नवम्बर 1949 में ही अ. भा. श्री शान्तिवीर दि. जैन सिद्धान्त संरक्षिणी सभा के साप्ताहिक मुखपत्र "जैन दर्शन" का प्रकाशन शुरू हुआ।
I
-
जनवरी 1950 में अलीगंज (एटा) से कामताप्रसाद जैन के संपादन में "अहिंसा-वाणी" का प्रकाशन हुआ जनवरी में ही सैलाना (म.प्र.) से मासिक "सम्यक् दर्शन" का प्रकाशन रतनलाल दोशी के संपादन में हुआ। "जिनवाणी" के मई 1950 के अंक से कोटा से दैनिक "निर्भीक " के प्रकाशन की सूचना मिलती है।
सन् 1951 में श्री महावीरजी में स्व. कृष्णाबाई ने श्री दि. जैन मुमुक्षु महिलाश्रम के मुखपत्र "महिला जागरण" की स्थापना की। सन् 1952 में स्व. बाबू पद्मसिंह जैन ने जोधपुर में "तरुण जैन" नाम से साप्ताहिक पत्र प्रारम्भ किया। यह पत्र अखिल भारतवर्षीय श्वे. स्था. जैन समाज का साप्ताहिक मुखपत्र है इसी वर्ष जयपुर से इन्द्रलाल शास्त्री ने पाक्षिक "अहिंसा" का प्रकाशन किया। सन् 1952 में निम्बाहेडा से स्व. श्रीमद्विजययतीन्द्र सूरीश्वर जी की प्रेरणा एवं भावना से मासिक "शाश्वत धर्म" का प्रकाशन हुआ। वर्तमान में
90
/
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य
इसका प्रकाशन पुणे (महाराष्ट्र) से हो रहा है। सन् 1954 में अजमेर से "जैन कल्याण" मासिक प्रकाशित
हुआ।
सन् 1951 में "अणुव्रत" तथा "सन्मति संदेश" का प्रकाशन हुआ। "अणुव्रत" आचार्य तुलसी के आदर्शों की अनुपालना करते हुए अहिंसा प्रधान समाज रचना तथा नैतिक जागरण के लिए अणुव्रत अभियान का मुखपत्र है। वर्तमान में इसका प्रकाशन धरमचन्द चोपड़ा के संपादन में नई दिल्ली से हो रहा है। जनवरी 1955 में दिल्ली से मासिक "सन्मति संदेश" का प्रकाशन हुआ। इसके संपादक पं. प्रकाशहितैषी शास्त्री हैं। इसी वर्ष बीकानेर से "अभय संदेश" का प्रकाशन किया गया। बीकानेर से ही "जैन आवाज" का प्रकाशन 1955 के अन्त में प्रारम्भ हुआ।
सन् 1956 में अंबाला शहर से श्री आत्मानन्द जैन महासभा के मासिक मुखपत्र "विजयानन्द" का प्रकाशन हुआ, जो कालान्तर में लुधियाना से प्रकाशित होने लगा। इस पत्र के आदि संपादक प्रो. पृथ्वीराज जैन थे। इस वर्ष के अन्य प्रमुख पत्र थे -- "जैसवाल जैन", "बन्धु", "मरुधर", "केसरी" तथा "सुमति"। श्री जैन सभा, कलकत्ता की ओर से पन्नालाल नाहटा के संपादन में साप्ताहिक जैन का प्रकाशन 1958 में किया गया। 1958 में ही भारतवर्षीय वर्णी जैन साहित्य मन्दिर, मुजफ्फरनगर की ओर से मासिक "वर्णी प्रवचन" का प्रकाशन किया गया। 15 अगस्त 1959 को अहमदनगर से मासिक "सुधर्मा" का प्रकाशन किया गया। आचार्य आनन्द ऋषि जी की प्रेरणा से संस्थापित श्री तिलोकरत्न स्था. जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड की यह मासिक मुख पत्रिका है। इस पत्रिका के संस्थापक शाह केशवजी जवेरचन्द थे। वर्तमान में यह पं. चन्द्रभूषण मणि त्रिपाठी के संपादन में प्रकाशित हो रही है। 1959 में दिल्ली से "विश्वधर्म" मासिक का प्रकाशन हुआ। 1961 में फिरोजाबाद से "जैन जागरण" तथा 1962 में जयपुर से "जैन संगम" का प्रकाशन हुआ।
राजस्थान जैन सभा, जयपुर ने सन् 1962 में महावीर जयन्ती के अवसर पर वार्षिक "महावीर जयन्ती स्मारिका" का प्रकाशन आरम्भ किया। इस स्मारिका में जैन साहित्य, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व व सिद्धान्त आदि विषयों पर महत्त्वपूर्ण गवेषणापूर्ण आलेख प्रकाशित होते हैं। सन् 1963 में प्रकाशित पत्रों में "श्रमणोपासक" श्री अ.भा. साधुमार्गी जैन संघ का पाक्षिक मुखपत्र है जो वर्तमान में जुगराज सेठिया तथा डॉ. शान्ता भानावत के संपादन में बीकानेर से प्रकाशित होता है। "श्री अमर भारती" का प्रकाशन सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा से पाक्षिक रूप से शुरु हुआ था, जो 1965 से मासिक हो गयी है। कालान्तर में इसका प्रकाशन वीरायतन, राजगह से होने लगा। यह पत्रिका मुख्य रूप से कवि श्री उपाध्याय अमर मुनि के क्रान्तिकारी विचारों की तेजस्वी पत्रिका है।
सन् 1964 में अजमेर से "ओसवाल समाज" का प्रकाशन हुआ। जून 1964 को बाड़मेर जिले के बालोतरा गाँव से "श्री नाकोडा अधिष्ठायक भैरव" नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया गया। सन् 1965 में जनवरी माह में "सत्यार्थ" तथा "धर्मवाणी" मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। फरवरी 1966 में अजमेर से "जैन बालक" मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ। 23 जनवरी सन् 1967 को रांची से श्री जिनेन्द्र कुमार जैन के संपादन में साप्ताहिक "जैन जागरण" का प्रकाशन हुआ। इसी वर्ष पाक्षिक "करुणा दीप" एटा से प्रकाशित हुई। । सन् 1968 में प्रकाशित जैन पत्रिकाओं में "धर्मज्योति" तथा "कथालोक" प्रमुख पत्र हैं। "धर्म ज्योति" का प्रकाशन जनवरी माह में भीलवाड़ा से पाक्षिक रूप में किया गया। कालान्तर में यह मासिक हो गयी। यह धर्म ज्योति परिषद् की मुख पत्रिका है। कथाओं के माध्यम से धार्मिक सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने के उद्देश्य से मुनि जी श्री महेन्द्र कुमार "प्रथम" की प्रेरणा से जयपुर से महेन्द्र जैन के संपादन में मासिक "कथालोक" का प्रकाशन अगस्त 1968 में प्रारम्भ किया गया। नीति कथाओं तथा प्रादेशिक लोक कथाओं के माध्यम से यह पत्र भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल पक्ष को प्रकट कर रहा है। वर्तमान में "कथालोक" का प्रकाशन दिल्ली से
91
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
डॉ. संजीव भानावत
हर्षचन्द के सम्पादन में हो रहा है। सन् 1969 में प्रकाशित पत्रों में लुधियाना से साप्ताहिक "आर्य संस्कार", उदयपुर से मासिक "महावीर नन्दन", जोधपुर से मासिक "ओसवाल हितैषी" आदि प्रमुख है। सन् 1970 में आचार्य श्री आत्माराम जैन प्रकाशन समिति, लुधियाना की ओर से मासिक "आत्म रश्मि" का प्रकाशन हुआ। इसी वर्ष दिगम्बर जैन संस्कृति सेवक समाज, दिल्ली की ओर से मासिक "जैन संस्कृति" का प्रकाशन किया गया। इसका प्रकाशन मथुरा से होता था। अप्रैल 1970 में ही "जैन दर्पण" का प्रकाशन जयपुर से हुआ। फिरोजाबाद से "पद्मावती संदेश" तथा जोधपुर से "जैन शासन" का प्रकाशन भी इसी वर्ष में हुआ।
15 मई 1971 से इन्दौर से डॉ. नेमीचन्द जैन के सम्पादन में "तीर्थंकर" मासिक का प्रकाशन शुरु हुआ। "तीर्थकर" वस्तुतः एक विचार मासिक है, जिसका प्रकाशन "विकृतियों से विचार के स्तर पर जूझने और मनुष्य को मनुष्य के स्प में प्रतिष्ठित किये जाने की स्वाभाविक सम्भावनाओं को ढूंढ़ निकालने के प्रयत्न के संकल्प के साथ हुआ। फरवरी 1971 में अ.भा. दिगम्बर जैन समिति, दिल्ली में परसादी लाल पाटनी के संपादन में
2500वाँ निर्वाण महोत्सव बलेटिन" प्रकाशित हुआ। बाद में इसका प्रकाशन मेरठ से दिगम्बर जैन महासमिति "बुलेटिन" के नाम से होने लगा। इसके संपादक अक्षय कुमार जैन हो गये। वर्तमान में यह पत्रिका "दिगम्बर जैन महासमिति पत्रिका" के नाम से पाक्षिक रूप से जयपुर से फूलचन्द जैन के संपादन में प्रकाशित होती है।
सन 1971 में इन्दौर से मासिक "सन्मति वाणी" का प्रकाशन किया गया, सन 1972 में बीकानेर से "अणुवीक्षक" साप्ताहिक का प्रकाशन हुआ। 1972 में ही धार्मिक पाक्षिक पत्रिका "शांतिज्योति" का प्रकाशन जोधपुर से हुआ। इसी वर्ष दिसम्बर माह में जयपुर से रामरतन कोचर के संपादन में मासिक "वल्लभ संदेश" का प्रकाशन हुआ। यह पत्र जैनाचार्य वल्लभ विजयजी द्वारा प्रतिपादित समन्वय व सर्वधर्म समभाव की भावना लेकर प्रकाशित किया जा रहा है। वर्तमान में इसके संपादक विमल चन्द्रकोचर है।
सन् 1923 में मेवाड़ कान्फरेंस का प्रकाशन किया गया। सितम्बर 1973 में अ.भा. तेरापंथ युवक परिषद्, लाडनूं ने कमलेश चतुर्वेदी तथा विजयसिंह कोठारी के संपादन में मासिक "युवालोक" का प्रकाशन किया। बाद में इसका नाम "युवादृष्टि" हो गया। वर्तमान में इसका प्रकाशन गंगाशहर (बीकानेर) से कमलेश चतुर्वेदी के संपादन में हो रहा है। जनवरी सन् 1973 में जैन विश्व भारती, लाडनूं की त्रैमासिक पत्रिका "अनुसंधान पत्रिका" का प्रकाशन हुआ। इसके प्रधान संपादक डॉ. महावीरराज गेलड़ा तथा संपादक रमेश जैन थे। जनवरी 1975 में इसका नाम "तुलसी प्रज्ञा" हो गया। वर्तमान में यह लाडनूं से डॉ. नथमल टाटिया के संपादन में प्रकाशित हो रही है। इसमें शोध एवं चिन्तन प्रधान लेखों की प्रधानता होती है। इसमें अंग्रेजी भाषा के लेखों का भी प्रकाशन किया जाता है।
सन् 1973 में "युगवीर" मासिक का प्रकाशन पटना से हुआ। इसी वर्ष दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान के मुखपत्र "सम्यक् ज्ञान" का प्रकाशन हस्तिनापुर (मेरठ) से हुआ। सन् 1974 में दिल्ली से "विश्व धर्म" मासिक, कलकत्ता से पाक्षिक, "मंगलज्योति", हैदराबाद से "जैन सेवा संघ संदेश", गोहाटी से "पार्षद", दिल्ली से साप्ताहिक "महावीर मिशन", मासिक "वर्धमान", लखनऊ से मासिक "ज्ञानकीर्ति", सागर से मासिक "ज्ञान मंजूषा", गिरडीह से मासिक "पारसवाणी" आदि पत्रों के प्रकाशन हुए। जून 1974 में ही भगवान महावीर 2500वें निर्वाण महासमिति के मासिक प्रकाशन के रूप में दिल्ली से "वीर परिनिर्वाण" पत्रिका प्रकाशित हुई। इसके प्रधान संपादक अक्षयकुमार जैन थे।
जनवरी 1975 में प्रकाशजैन बांठिया के संपादन में मासिक "विश्वेश्वरमहावीर" का प्रकाशन जोधपुर से हुआ। मार्च 1975 में आचार्य श्री हस्तीमल जी म. की प्रेरणा से श्री महावीर जैन श्राविका समिति, जोधपुर की ओर से मासिक "वीर-उपासिका" का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इसकी प्रथम संपादिका श्रीमती रतन चौरड़िया थीं।
92
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य
वर्तमान में यह पत्रिका डॉ. नरेन्द्र भानावत तथा श्रीमती सुशीला भंडारी के संपादन में मद्रास से प्रकाशित हो रही है। सन् 1975 में ही माण्डोलीनगर (जालोर) से श्री शान्तिसेवा संघ की ओर से पाक्षिक "शान्ति ज्योति" का प्रकाशन हुआ।
1975 में ही इन्दौर से "जैन समाज के रीति रिवाज", बंगलौर से "समता संदेश", दिल्ली से "अपरिग्रह" आदि मासिक पत्रों का प्रकाशन हुआ। नवम्बर 1975 से फरवरी 1976 तक जोधपुर से "विश्व कल्याण" का प्रकाशन हुआ, जो कालान्तर में "अरिहन्त" से मिल गया। अब यह मेहसाणा (गुजरात) से छपता है।
अक्टूबर 1976 में आगरा से श्रीमती उषारानी लोढ़ा के संपादन में मासिक "श्रमण भारती" का प्रकाशन हुआ। सन् 1983 में मासिक "श्रमण भारती" के साथ-साथ साप्ताहिक "श्रमण भारती" का भी प्रकाशन श्रीमती लोढ़ा के संपादन में होने लगा। अक्टूबर 1976 में ही जैन दिवाकर श्री चौथमल जी म.सा. के शताब्दी वर्ष में जैन दिवाकर नवयुवक मण्डल, रतलाम से मासिक "जैन दिवाकर" का प्रकाशन किया गया। जे.एम. दस्तानी के संपादन में दिल्ली से इसी वर्ष तेरापन्थी समाज का पाक्षिक पत्र "तेरापंथी" प्रारम्भ हुआ।
चंडीगढ़ से जनवरी 1977 में "युवा स्तम्भ" का प्रकाशन किया गया। जनवरी 1977 में ही दिल्ली से "समन्वय संदेश" नामक त्रैमासिक शुरू हुआ। मार्च 1977 में अ.भा.जय गुंजार प्रकाशन समिति ने ब्यावर से "जय गुजार" मासिक का प्रकाशन किया। वर्तमान में डॉ. तेजसिंह गौड़ इसके संपादक हैं। अप्रैल 1977 में विदिशा (म.प्र.) से पं रतनचन्द भारिल्ल के सम्पादन में "जैन पथ प्रदर्शक" समिति की ओर से पाक्षिक "जैन पथ प्रदर्शक" का प्रकाशन किया गया। अगस्त 79 से इसका प्रकाशन जयपुर से हो रहा है। मई 1977 में मासिक पत्र "तित्थयर" का प्रकाशन कलकत्ता से हुआ। इसके संपादक गणेश ललवानी तथा राजकुमारी बेगानी हैं। इसी वर्ष पाक्षिक "तेरापंथ भारती" का प्रकाशन कलकत्ता से हुआ। जुलाई 1977 में श्री सुधर्म प्रचारक मण्डल, जोधपुर की ओर से मासिक "सुधर्म प्रवचन" का प्रकाशन हुआ। सितम्बर 1977 में धार (म.प्र.) से "ओसवाल जैन" का प्रकाशन हुआ। इस वर्ष के अन्य प्रमुख पत्र थे -- "सुशील समाचार", "जैन एकता" (जालंधर), "बंधन तोड़ो" (उदयपुर), "समाचार पत्रक" (कलकत्ता) तथा "तारण बन्धु" (भोपाल)।
जनवरी 1978 में रायपुर से "जैन श्री" मासिक का प्रारम्भ हुआ। फरवरी 1978 में बामनिया (म.प्र.) से मासिक "श्री राजेन्द्र विद्याप्रकाश" का प्रकाशन किया गया। 15 अगस्त 1978 को बाडमेर से भूरचन्द जैन की प्रेरणा से प्रकाशचन्द बोहरा के सम्पादन में "जैन तीर्थंकर" नामक पाक्षिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ। सन 1979 में उदयपुर से पाक्षिक "जगत वल्लभ" तथा "सम्यक् बोध" का प्रकाशन हुआ। जून 1979 को बंगलौर से अ.भा. अहिंसा प्रचार संघ की ओर से मासिक "अहिंसा दर्शन" का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। इस पत्रिका के संपादक एस. श्री कष्ठूमूर्ति हैं। इसी वर्ष महावीर मित्र मण्डल, रायपुर की ओर "मित्रमहावीर" का प्रकाशन हुआ। 1979 में ही सादड़ी (मारवाड़) से मोहन कुमार पुनमिया के संपादन में साप्ताहिक "मुनिघोष" का प्रकाशन किया गया। सन् 1985 में यह पाक्षिक हो गया।
सन् 1980 में कलकत्ता से "तेरापंथ प्रकाश" का प्रकाशन हुआ। इसी वर्ष रतलाम से मासिक "जैनमणी" प्रकाशित हुई, जिसका नाम "जैन नवोदय" कर दिया गया। जून 1980 में मद्रास से "विचक्षण ज्योति" नामक साप्ताहिक पत्रिका प्रारम्भ की गयी। तुलसी अध्यात्म नीडम्, लाडनूं की मुख पत्रिका "प्रेक्षाध्यान" का प्रकाशन भी इसी वर्ष हुआ। सन् 1980 में सोनागिर (दतिया) से "स्यादवाद ज्ञान गंगा" का प्रकाशन किया गया। मार्च 181 में बुन्देलखण्ड से "वीतराग वाणी" का प्रकाशन हुआ। अप्रैल 1981 में बम्बई से सावित्री कोचर के संपादन में ओसवाल मित्र मण्डल की त्रैमासिकी "ओसवाल जगत" प्रकाशित हुई। 5 अप्रैल 1981 को जयपुर से अखिल बंसल के संपादन में "समन्वय वाणी" का प्रकाशन हुआ। अप्रैल 1981 में ही दिल्ली से नेमीचन्द जैन के
93
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
डॉ. संजीव भानावत
संपादन में साप्ताहिक "अहिंसा समीर" का प्रकाशन हुआ। अप्रैल 1981 में ही "वन्देवीरम्" नामक एक अन्य मासिक पत्र का प्रकाशन आचार्य अमृतकुमार जैन के संपादन में हुआ। नवम्बर 1981 में मुनिश्री महेन्द्रमुनि "कमल" के दिशा-निर्देशन में जीवन सिंह चौधरी के संपादन में भीलवाडा से मासिक "तपोधन" का प्रकाशन हुआ। इसी वर्ष श्री वीतराग सांस्कृतिक संघ, अहमदनगर की ओर से बाल मासिक "आनन्द दीप" का प्रकाशन किया गया। बच्चों को कुव्यसनों से दूर रखने और संस्कारवान बनाने की दृष्टि से यह पत्रिका उल्लेखनीय है।
सन् 1982 में जिनेन्द्र कुमार जैन ने जयपुर से "जैन समाज" नाम दैनिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया। जैन पत्रकारिता की इतिहास यात्रा का यह प्रमुख बिन्दु है, जब एक समग्र रूप से जैन दैनिक के प्रकाशन की योजना ने साकार रुप लिया। इसी वर्ष गाजियाबाद से "अरिहन्त टाइम्स" तथा अजमेर से "बढ़ते कदम" नामक साप्ताहिक पत्रों का भी प्रकाशन हुआ। 1983 में डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल के संपादन में "वीतराग विज्ञान" मासिक का प्रकाशन जयपुर से हुआ।
अगस्त, 83 में पाक्षिक "महाप्राण" दिल्ली से प्रकाशित हुआ। मार्च, 1984 में श्री श्वे.स्था. जैन स्वाध्याय संघ, गुलाबपुरा की ओर से त्रैमासिक "सम्बोधि" का प्रकाशन किया गया। मार्च 85 से पत्रिका का नाम "स्वाध्याय संदेश" हो गया। जनवरी 1988 से यह द्वैमासिक हो गयी। मार्च 1984 में ही लुधियाना से बाल मासिक "नूतन जैन पत्रिका" का प्रकाशन हुआ। अप्रैल 1984 में जैन विद्या संस्थान, महावीरजी द्वारा अर्द्धवार्षिक शोध पत्रिका "जैन विद्या" का प्रकाशन प्रो. प्रवीणचन्द जैन के संपादन में हुआ। इस वर्ष प्रकाशित अन्य पत्र थे-- पुष्पदन्त धारा (भिलाईनगर), जिनप्रतिभा (जोधपुर), श्रमण (महावीर) बाद में श्रमण स्वर, आकोला (चित्तौड़गढ़), भातृसभापत्रिका (बम्बई), "आगम आलोक" (आबू पर्वत), "समता युवा संदेश" ( रतलाम), धर्मचक्र बाद में संगम धारा (जयपुर)।
सन् 1985 में प्रकाशित पत्रों में अहिंसा (जयपुर), स्याद्वाद (दीमापुर, नागालैण्ड), खरतर संदेश (वाडमेर), पार्श्वज्योति (बिजनौर), विचारवाणी (ब्यावर) आदि प्रमुख हैं। तीर्थंकर महावीर स्मृति केन्द्र समिति, उ.प्र., लखनऊ 1986 में जयपुर से सम्याज्ञान प्रचारक मण्डल द्वारा द्वैमासिक "स्वाध्याय शिक्षा" का प्रकाशन किया। डॉ. नेमीचन्द्र जैन के सम्पादन में इन्दौर से "शाकाहार क्रांति" का प्रकाशन मार्च-अप्रैल 1987 में हुआ। इससे पूर्व जनवरी-फरवरी 1987 में इसका प्रकाशन "शाकाहार समाचार" के रूप में हुआ। इसी वर्ष वल्लभनगर (उदयपुर) से "समाज दर्पण" का प्रकाशन किया गया। जून 1987 में "गोम्मटवाणी" का प्रकाशन हुआ। अक्टूबर 1987 में उदयपुर से "तरुण ओसवाल" प्रकाशित हुआ। जनवरी 1988 में जयपुर से "विमलधर्म आख्यायिका" का प्रकाशन हुआ। दिसम्बर, 1988 में इन्दौर से "जिनोपासक" मासिक तथा इन्दौर से ही "समय" त्रैमासिक का प्रकाशन हुआ। मूल्यांकन
जैन पत्रकारिता का एक शताब्दी का इतिहास अपने उद्भव और विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सामाजिक, राजनीतिक सुधारों एवं आजादी प्राप्त करने की उत्कट अभिलाषा की पृष्ठभूमि में अंकुरित-पल्लवित हिन्दी जैन पत्रकारिता आज स्वतन्त्र भारत में न सिर्फ राष्ट्रीय निर्माण के लिए जन-चेतना जागृत करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है वरन् राष्ट्रीय चरित्र और संस्कार निर्माण के पवित्र संकल्प के प्रति प्रतिबद्ध भी है। सार्वजनिक पत्रकारिता की भाँति तीखा स्वर तथा तेजस्विता और प्रखरता का बाह्य भाव भले ही जैन पत्रकारिता में दृष्टिगोचर न होता हो किन्तु उसमें अपनी आन्तरिक तेजस्विता है, तप एवं साधना का कठोर बल है, जिसकी प्रदीप्त भावभूमि पर जैन पत्रकारिता विकासित हुई और व्यक्ति एवं राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण तथा सरल, सहज सात्विक जीवन के आदर्श के लिए संघर्षरत रही।
94
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
डॉ. संजीव भानावत
जैन पत्रकारिता की एक शताब्दी की विकास यात्रा का अध्ययन इस बात को संकेतित करता है कि यह व्यावसायिकता से आज तक अछूती रही है। जैन पत्रों का प्रकाशन लाभार्जन अथवा अन्य संकीर्ण हितों की पूर्ति के लिए नहीं किया गया। ये पत्र विशद्ध रूप से समाज सुधार के संकल्प तथा अपने धार्मिक आदर्शों और सांस्कृतिक जागरण के प्रचार-प्रसार के लिए प्रकाशित किये जाते रहे हैं। यही कारण है कि जैन पत्रों में प्रकाशित सामग्री मुख्यतः विचार प्रधान तथा नैतिक सामाजिक उद्बोधनों से युक्त होती है। इस प्रकार की सामग्री से जैन पत्र "समाचार पत्र" (News paper ) कम है तथा "विचारपत्र" (Vicews paper ) अधिक हैं।
जैन पत्रकारिता वैयक्तिक चरित्र व संयम साधना पर विशेष बल देती है। अतः इनसे जुड़े समाचार विशेष स्थान प्राप्त करते हैं। व्यसन मुक्ति, ब्रह्मचर्य पालन, व्रत, दान आदि के समाचार वैयक्तिक जीवन शुद्धि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसी प्रकार संतों की विहार चर्या से सम्बन्धित समाचार भी इन पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित होते हैं। जैन पत्रों में प्रकाशित समाचारों में जहाँ सामाजिकता के दर्शन होते हैं, वहीं वे धार्मिक एवं सांस्कृतिक जागरण के प्रति भी समर्पित होते हैं।
जैन पत्रकारिता के उद्भव और विकास की कहानी इस समाज के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जागरण की कहानी है। जैन पत्रकारिता की यह विकास यात्रा सरल व सहज नहीं रही। नानाप्रकार के संघर्षों को झेलकर ही जैन पत्रकारिता का तप एवं साधनामय स्प उभर सका है। आर्थिक कठिनाइयों, उचित मुद्रण सुविधाओं का अभाव, अवैतनिक संपादक, संपादकीय टीम व कार्यालयी सुविधाओं का अभाव आदि कठिनाइयों के बावजूद जैन पत्रकारिता अपने आदर्शों व उद्देश्यों की पूर्ति में ईमानदारी से समर्पित रही है। जैन पत्रकारिता ने हमारे सामाजिक जीवन को शुद्ध एवं संस्कारवान बनाने की दृष्टि से विभिन्न सामाजिक विकृतियों पर कड़े प्रहार किये हैं। नारी जाति के सामाजिक स्तर पर उसके अधिकारों का समर्थन कर उसके गौरवमय चरित्र को जैन पत्रों ने प्रकट किया है। समाज में पिछड़ी और निम्न जातियों के विकास व उनके जीवन स्तर को सुधारने की प्रेरणा भी जैन पत्रों में भी है। इस प्रकार सामाजिक क्षेत्र में जैन पत्रकारिता ने समतावादी, सदिविहीन, चरित्रनिष्ठ व व्यसनमुक्त समाज की कल्पना का आदर्श हमारे सामने प्रस्तुत किया है।
जैन पत्रकारिता का मुख्य धरातल धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा नैतिक मूल्यों के विकास के साथ सम्बद्ध रहा है। राजनीतिक क्षेत्र में भी जैन पत्रकारिता ने इन्हीं मूल्यों की प्रतिष्ठापना पर बल दिया है। अहिंसावादी मूल्यों की संवाहिका जैन पत्रकारिता ने राष्ट्रीय सुरक्षा व अखण्डता जैसे संवेदनशील प्रश्नों पर कायरता का परिचय नहीं दिया वरन् जन-मानस को साहस और शौर्य के साथ इन खतरों से जूझने की प्रेरणा दी है। गांधीजी के स्वदेशी तथा भारत छोड़ो जैसे आन्दोलनों को जैन पत्रकारिता ने सदा अपना रचनात्मक सहयोग दिया। स्वातन्त्र्योत्तर भारत में देश के पुनर्निर्माण के साथ भी जैन पत्रकारिता जुड़ती है और महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर विचारोत्तेजक टिप्पणियाँ लिखकर अपनी राजनीतिक चेतना के प्रखर पक्ष का परिचय देती है। भारतीय संविधान में निहित मानवीय मूल्यों यथा -- वैचारिक स्वतन्त्रता, सामाजिक समानता, धर्मनिरपेक्षता आदि को आम जन से जोड़ने और उनका प्रचार-प्रसार करने की दृष्टि से जैन पत्रकारिता सदा प्रयत्नशील रही।
वैचारिक दृष्टि से जैन पत्रकारिता धार्मिक तत्त्वदर्शन के विवेचन-विश्लेषण से जुड़कर अपने व्यापक अर्थों में आत्म कल्याण, विश्वशान्ति व विश्व मैत्री की बात करती है। जैन पत्रकारिता की यह धार्मिक, आध्यात्मिक चेतना मूलतः व्यक्ति चेतना को विकसित करती हुई उसे व्यापक सामाजिक-राष्ट्रीय हितों से जोड़ती है। साहित्यिक सांस्कृतिक चेतना के विकास में भी जैन पत्रकारिता का विशेष योगदान रहा है। जैन पत्रकारिता ने एक ओर यदि साहित्य की विविध विधाओं के रचनात्मक लेखन को प्रकट किया है, वहीं दूसरी ओर संस्कृत की गौरवमय परम्पराओं को भी बनाये रखा है। प्राचीन जैन साहित्य के अन्वेषण, समीक्षण व संरक्षण की दिशा में जैन पत्रों के
95
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________ डॉ. संजीव भानावत प्रयासों से आज न सिर्फ जैन साहित्य वरन हिन्दी साहित्य भी समृद्ध हुआ है। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जैन पत्रकारिता की यह गैर व्यावसायिक धारा अविच्छिन्न रूप से व्यावसायिक पत्रकारिता के समानान्तर चली आ रही है जो अनेक बाधाओं व संकटों के बावजूद भी अपनी आन्तरिक तेजस्विता के कारण सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, साहित्यिक तथा कला एवं पुरातत्त्व प्रकाशन हो चुका है। इन पत्रों की सामग्री का विवेचन-विश्लेषण इस बात का जीवन्त प्रमाण है कि गैर व्यावसायिक, धार्मिक तथा लोक सेवापरक पत्रकारिता में जैन पत्रकारिता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आधुनिक भारत के सांस्कृतिक इतिहास लेखन में जैन पत्रकारिता एक प्रभावी, प्रामाणिक और विश्वसनीय स्रोत है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। #C-235 ए, दयानन्द मार्ग, तिलक नगर, जयपुर-302004 96