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________________ डॉ. संजीव भानावत संपादन में श्री उत्तमजैन साहित्य प्रकाशक मण्डल, उदयपुर की ओर से मासिक "जैन ज्ञान प्रकाश" का प्रकाशन हुआ। 21 अप्रैल, 1929 को पं. जुगलकिशोर मुख्तार ने देहली में समन्तभद्राश्रम की स्थापना की और दिसम्बर 1929 में मासिक "अनेकान्त" का प्रकाशन किया। एक वर्ष तक नियमित प्रकाशन बन्द हो गया और आठ वर्ष बाद पुनः प्रकाशन शुरु हो सका। आगामी कुछ वर्षों तक प्रकाशन की नियमितता में बाधाएँ आती रहीं। सन् 1956 से 1962 तक इसका प्रकाशन स्थगित रहा किन्तु उसके बाद से यह अनवरत रूप से प्रकाशित हो रहा है। सन् 1953 तक मुख्तार सा. ही इसका संपादन करते रहे। उसके बाद छोटेलाल जैन, जयभगवान जैन, परमानन्द शास्त्री, आदिनाथ नेमीनाथ उपाध्ये, रतनलाल कटारिया, डॉ. प्रेमसागर जैन, यशपाल जैन, गोकुलप्रसाद जैन आदि इसके संपादन से सम्बद्ध रहे। सामाजिक वाद-विवादों तथा सम्प्रदायवाद से रहित "अनेकान्त" एक ऐसा मासिक पत्र है, जो सत्य, शान्ति और लोकहित का संदेशवाहक बनकर जैन पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुख स्थान रखता है। इतिहास, पुरातत्त्व, दर्शन, साहित्य आदि की यह एक प्रमुख शोधपूर्ण एवं आलोचनात्मक त्रैमासिकी है। इस पत्रिका के विकास में पं. जुगलकिशोर मुख्तार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। "अनेकान्त" के माध्यम से मुख्तार सा. ने जैन पत्रकारिता के साहित्यिक व अनुसंधानात्मक पक्ष को अत्यधिक पुष्ट किया। डॉ. ज्योति प्रसाद जैन ने उन्हें जैन पत्रकारिता का "महावीर प्रसाद द्विवेदी बताया है। वर्धा से 16 नवम्बर 1919 को पाक्षिक पत्र "सनातन जैन" का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सामाजिक सुधारों की दृष्टि से यह पत्र उल्लेखनीय है। शीतलप्रसाद जी के संपादन में इस पत्र ने बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह सहित अनेक सामाजिक कुरीतियों का तीखा विरोध किया। हिन्दी मासिक "वीरवाणी" का प्रकाशन सन् 1929 में दुलीचन्द परवार के संपादन में कलकत्ता से हुआ। सन् 1930 में आत्मानन्द जैन महासभा की ओर से अम्बाला नगर से श्री कीर्तिप्रसाद जैन के सम्पादन में मासिक "आत्मानन्द" का प्रकाशन किया गया। यह सामाजिक-सांस्कृतिक और नैतिक विचारों की प्रमुख पत्रिका थी। सन् 1932 में ललितपुर (उ.प्र.) से मासिक "सिद्धि" का प्रकाशन रा.वै. सिद्धसागर के संपादन में तथा जयपुर से रायसाहब केसरमल अजमेरा के संपादन में मासिक "सुधारक" का प्रकाशन हुआ। सन 1914 में प्रकाशित मालवा दि. जैन प्रांतिक सभा के मुखपत्र मासिक "जैन प्रभात" का पुनःप्रकाशन मई, 1933 में श्री दि. जैन मालवा प्रांतिक सभाश्रित औषधालय, बडनगर (उज्जैन) द्वारा किया गया। इसके संपादक लाला भगवानदास थे। इसी वर्ष जुलाई में मुलतान से पाक्षिक "जैन दर्शन" शुरु किया गया, जो पं. चैनसुखदास जैन के संपादन में प्रकाशित होता था। यह श्री भारतवर्षीय दि. जैन शास्त्रार्थ संघ का मुखपत्र था। बिजनौर से अगस्त 1933 में श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ परिषद का मुखपत्र "जैन दर्शन" पाक्षिक का प्रकाशन शुरु हुआ। 2 जुलाई 1934 में आगरा से चाँदमल चौरसिया और सर्यवर्मा के संपादन में "ओसवाल सुधारक संगठन" नाम से पाक्षिक पत्र का प्रकाशन किया गया। एक वर्ष बाद इसका नाम "ओसवाल सुधारक" कर दिया गया। यह पत्र प्रगतिशील चेतना का प्रतीक था। फरवरी 1935 में जैन शिक्षण परिषद, ब्यावर ने ब्यावर के श्री जैन गुरुकुल से हिन्दी मासिक "जैन शिक्षण संदेश" का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इसके संपादक शोभाचन्द्र भारिल्ल और शांतिलाल वनमाली सेठ थे। यह पत्र "शिक्षण संस्थाओं का सखा तथा माता-पिताओं का मार्गदर्शक" था। "शिक्षा, शिक्षक और शाला" से सम्बन्धित इस पत्रिका ने बच्चों को सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा दी तथा उन्हें बुराई से बचने का भी संदेश दिया। इसी वर्ष कलकत्ता से पाक्षिक "जैन बन्धु" का प्रकाशन पं. चैनसुखदास के संपादन में प्रारम्भ हुआ। यह पत्र कलकत्ता के पाक्षिक स्वतन्त्र सामाजिक पत्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जो प्रखर सामाजिक चेतना का पत्र बना। भंवरलाल न्यायतीर्थ भी इसके संपादन से बाद में जुड़ गये। सन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212281
Book TitleHindi Jain Patrakarita Itihas evam Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanjiv Bhanavat
PublisherZ_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf
Publication Year1994
Total Pages15
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size790 KB
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