________________
हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य
- डॉ. संजीव भानावत'
मनुष्य की जिज्ञासा और उत्सुकता की मूलभूत प्रवृत्ति की पत्रकारिता के जन्म और विकास का महत्त्वपूर्ण कारण है । अपने परिवेश के आस-पास घटित घटनाओं से परिचय प्राप्त करने की लालसा आज वृहत्तर सृष्टि तक जा पहुँची है। मनुष्य की इस जिज्ञासा प्रवृत्ति का ही यह परिणाम है कि सम्पूर्ण सृष्टि धीरे-धीरे एक मानव परिवार के रूप में परिणित होती जा रही है। समय के स्पन्दनों को महसूस करने की चाहत ने ही पत्रकारिता के फलक को जीवन्त और चेतनायुक्त बना दिया है।
" मस्तिष्क और आत्मा" की स्वाधीनता के नाम पर जेम्स हिक्की द्वारा 29 जून, 1780 को "बंगाल गजट " या कलकत्ता जनरल एडवरटाईजर" नामक साप्ताहिक पत्र का प्रारम्भ किया गया। वस्तुतः इसी दिन से भारत में पत्रकारिता का विधिवत् प्रारम्भ माना जाता है। अल्पकाल तक जीवित इस पत्र ने दमन के विरुद्ध संघर्ष का जो साहस दिखाया, वह आने वाले काल में पत्रकारिता जगत के लिए आदर्श बन गया। इस पत्र के प्रकाशन के साथ भारत में पत्र- प्रकाशन की परम्परा शुरू हो गयी ।
हिन्दी भाषा का पहला पत्र 30 मई, 1826 को कलकत्ता से प्रकाशित "उदन्त मार्तण्ड" था। इसके संपादक श्री युगल किशोर शुक्ल थे। इसके लगभग 54 वर्षों बाद सन् 1880 में प्रथम हिन्दी जैन पत्र का प्रकाशन हुआ था। जैन पत्रकारिता के प्रारम्भ होने से पूर्व देश के सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने लगे थे। वर्षों की गुलामी से मुक्ति प्राप्त करने के लिए भारतीय जन मानस छटपटा रहा था ।
पहला जैन पत्र
हिन्दी जैन पत्रों की विकास यात्रा का प्रारम्भ सन् 1880 में प्रयाग से प्रकाशित "जैन पत्रिका " से माना जाता है। श्री अगरचन्द नाहटा ने वैंकटलाल ओझा द्वारा संपादित "हिन्दी समाचार पत्र सूची, भाग 1" के आधार पर इसे पहली जैन पत्रिका माना है।
अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने "समाचार पत्रों का इतिहास" में भी सन 1880 में प्रकाशित इस पत्रिका का उल्लेख किया है। 2 इसी भाँति डॉ. रामरतन भटनागर के शोध ग्रन्थ में दी गयी पत्रिकाओं की सूची से भी इस पत्रिका के प्रकाशन की सूचना मिलती है। अतः यह माना जा सकता है कि प्रयाग से सन् 1880 में प्रकाशित " जैन पत्रिका" हिन्दी भाषा की प्रथम जैन पत्रिका है।
काल- विभाजन
अध्ययन की सुविधा के लिए जैन पत्रकारिता के इतिहास को तीन खण्डों में विभाजित किया जा सकता है-
1. प्रथम युग सन् 1880 से 1900
2. द्वितीय युग
सन् 1901 से 1947
3. तृतीय युग - सन 1948 से आज तक
1. प्रथम युग (सन् 1880 से 1900)
जैन पत्रकारिता की इतिहास यात्रा के इन दो दशकों की पत्रकारिता में ऐसे तेवर देखने को नहीं मिलते, जिनसे प्रखर राष्ट्रीय भावना अथवा उत्कट सामाजिक सुधार की लालसा प्रकट होती हो। किन्तु जैन पत्रकारिता
82
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org