Book Title: Hindi Jain Patrakarita Itihas evam Mulya Author(s): Sanjiv Bhanavat Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf View full book textPage 3
________________ डॉ. संजीव भानावत घासीराम, बाबू देवकुमार, पं. वर्धमान शास्त्री एवं हरकवन्द सेठी इस पत्र के उल्लेखनीय संपादक रहे हैं। "जैन गजट" मुख्यतः परम्परावादी तथा स्थितिपालक नीति का पत्र है, जो हिन्दी के वर्तमान समाचार पत्रों में सबसे अधिक पुराना पत्र है। यह इस समय लखनऊ से प्रकाशित हो रहा है। इसके प्रधान संपादक पं. श्याम सुन्दरलाल शास्त्री है। सन् 1897 में फर्रुखनगर से मासिक "जैन भास्कर" का प्रकाशन हुआ। जनवरी सन् 1900 में बम्बई से मासिक "जैन मित्र" का प्रकाशन हुआ। यह पत्र रायल अठपेजी साइज के सोलह पेजों पर निकलता था और डाक खर्च सहित सवा रुपया उसका वार्षिक मूल्य था। प्रारम्भ में यह पत्र दिगम्बर जैन सभा, बम्बई की ओर से निकलता था किन्तु एक वर्ष बाद यह प्रांतिक सभा का मुख पत्र बन गया। ___"जैन मित्र" पं. गोपालदास बरैया के सम्पादन में प्रकाशित होता था। चौथे वर्ष से पं. नाथूराम प्रेमी भी इसके सहायक सम्पादक हो गये। सन् 1908 में इसके संपादन का भार शीतलप्रसाद जी पर आ गया। अठारहवें वर्ष से इस पत्र का प्रकाशन साप्ताहिक रूप से होने लगा। सन् 1917 में यह सूरत से छपने लगा। ___"जैन मित्र" सदा सामाजिक बुराइयों का विरोधी रहा। साहित्य, दर्शन, शिक्षा, धर्म तत्त्वज्ञान सहित धार्मिक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक विषयों पर इस पत्र में अनेक लेख प्रकाशित होते हैं। इसके सम्पादकीय प्रायः विचार प्रधान हुआ करते थे। स्वतन्त्रता पूर्व देश की राजनीतिक अवस्था पर "जैन मित्र" ने काफी लिखा। "जैन मित्र" के संस्थापक मूलचन्द किसनदास कापडिया थे। इनका चित्र आज भी "जैन मित्र" के प्रत्येक अंक पर प्रकाशित होता है। इस पत्र के सम्पादन से गोपालदास बरैया, पं. नाथूराम प्रेमी, ब्र. शीतलप्रसाद, पं. परमेष्ठिदास आदि जुड़े रहे। वर्तमान में इसका सम्पादन शैलेश डाहथाभाई कापडिया कर रहे हैं। हिन्दी जैन पत्रकारिता का यह प्रथम युग शैशवकाल माना जा सकता है। यह वह समय था जब जैन पत्रकारिता अपनी विकास की सम्भावनाओं को खोज रही थी। राजा राममोहन राय से लेकर दयानन्द सरस्वती, विवेकानन्द, एनीबेसेन्ट आदि समाज सुधारकों के स्वर के साथ ही अपनी शैशवावस्था में जैन पत्रकारिता ने समाज की धड़कन को सुनने का प्रयत्न किया। इस दौर में बाबू पन्नालाल बाकलीवाल, पं. नाथूराम प्रेमी, जुगलकिशोर मुख्तार, बाबू ज्ञानचन्द आदि जैसे तेजस्वी व्यक्तियों ने "जैन हितैषी", "जैन पत्रिका", "जैन मित्र" आदि पत्रों के साथ समाज सुधार तथा जन-जागरण की दिशा में प्रयत्न करने प्रारम्भ कर दिये थे। इन जैन पत्रकारों ने शिक्षा-प्रचार, स्त्रियों की दशा में सुधार तथा सामाजिक संगठनों की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए सुधारवादी प्रवृत्तियों का प्रचार-प्रसार करने के लिए प्रयत्न किया। द्वितीय युग ( सन् 1901 से 1947 ई. तक) जैन पत्रकारिता का दूसरा चरण सन् 1901 से 1947 तक माना जा सकता है। इस दौर में देश में स्वाधीनता आन्दोलन पूरे जोर पर था। तिलक और उसके बाद गाँधी ने देश की जनता को राजनैतिक अधिकारों से परिचित कराकर स्वतन्त्र भारत का स्वर्णिम स्वप्न दिखाया। इस काल के अधिकांश पत्र भारत की आजादी के संघर्ष के प्रति समर्पित थे। स्वतन्त्रता का शंखनाद करने वाले इन पत्रों की आजादी को प्रतिबन्धित करने का भी प्रयास समय-समय पर ब्रिटिश सरकार द्वारा किया जाता रहा, जिसका सशक्त विरोध भी इनके सम्पादकों और प्रकाशकों ने किया। तिलक के बाद आजादी के संघर्ष की बागडोर गाँधीजी के हाथों में आ गयी। व्यावसायिक पत्रकारिता से दूर रहते हुए गांधीजी ने सदा जनहित तथा मिशनरी भावना से कार्य किया। गाँधीजी ने अपनी लड़ाई का मुख्य आधार अहिंसा को बनाया। सामाजिक कुरीतियों और दूषित परम्पराओं के खिलाफ जहाँ गांधीजी ने पत्रकारिता 84 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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