Book Title: Hindi Jain Patrakarita Itihas evam Mulya Author(s): Sanjiv Bhanavat Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf View full book textPage 6
________________ हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य पुनःप्रकाशन भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा की ओर से लखनऊ से डॉ. कुसुमशाह के संपादन में किया जाने लगा है। अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद की ओर से बिजनौर में ब्र. शीतलप्रसाद के संपादन में सन् 1923 में पाक्षिक "वीर" का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। शीघ्र ही इस पत्र के संपादन से पं. परमेष्ठीदास जैन का नाम जुड़ गया। इनकी संपादन कुशलता से "वीर" ने कुछ ही समय में युवा वर्ग में अपनी अच्छी पहचान कायम कर ली। यह पत्र सामाजिक विकृतियों का कटु आलोचक तथा नवीन चेतना का अग्रदूत बन गया। वर्तमान में इसका प्रकाशन दिल्ली से हो रहा है। इस वर्ष में प्रकाशित होने वाले पत्रों में प्रमुख हैं -- अजमेर से दुर्गाप्रसाद के संपादन में साप्ताहिक "अहिंसा प्रचारक", सोलापुर से पं. अजित कुमार शास्त्री के संपादन में मासिक "जैन प्रभादर्श", कलकत्ता से दुलीचन्द परवार के संपादन में मासिक "परवार हितैषी" । सन् 1924 में आबूरोड से "मारवाड़ जैनसुधारक" मासिक का प्रकाशन हुआ। सन् 1925 में प्रकाशित पत्रों में "खण्डेलवाल जैनहितेच्छु", "जैन जगत", "प्यारी पत्रिका", "श्री मारवाड़ जैनसुधाकर", "हमड बन्धु" तथा "श्वेताम्बर जैन" प्रमुख हैं। "खण्डेलवाल जैन हितेच्छु" साप्ताहिक पत्र "खण्डेलवाल जैन महासभा", अजमेर का मुखपत्र था, जो बाद में पाक्षिक हो गया और पं. नाथूलाल शास्त्री के संपादन में इन्दौर से प्रकाशित होने लगा। समाज सुधार तथा रुढ़ियों के विरुद्ध आवाज बुलन्द करने में इस पत्र ने विशेष भूमिका निभाई। इसी वर्ष कपूरचन्द पाटनी के संपादन में पाक्षिक "जैन जगत" का प्रकाशन फतहचन्द सेठी ने अजमेर से किया। इस पत्र में दरबारी लाल न्यायतीर्थ के क्रांतिकारी और तेजस्वी विचारों का प्रकाशन किया जाता था। सन् 1926 से पत्र का संपादन भार भी उन्हीं के कंधों पर आ गया। इनके संपादन स्पर्श के बाद तो यह पत्र तत्कालीन समाज का एक ऐसा प्रखर पत्र बन गया, जो दूषित परम्पराओं, रूढ़ियों और अंधविश्वासों पर कड़े प्रहार करता था। सन् 1934 में दरबारीलाल जी ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। सन 1935 में उन्होंने "जैन जगत" को पाक्षिक "सत्य संदेश" के रूप में परिवर्तित कर दिया। सन 1927 में प्रकाशित पत्रों में दीपचन्द जैन के संपादन में दिल्ली से हिन्दी मासिक "वर्धमान" तथा पं. श्रीलाल के संपादन में कलकत्ता से हिन्दी मासिक "विनोद" थे। "आदर्श जैन चरित्र", "समन्तभद्र", "जैन युवक" तथा "ओसवाल-नवयुवक" सन् 1928 में प्रकाशित प्रमुख पत्रिकाएँ हैं। "आदर्श जैन-चरित्र" मासिक का प्रकाशन बिजनौर से पं. मूलचन्द वत्सल के संपादन में हुआ। सरसावा से इसी वर्ष पं. जुगलकिशोर मुख्तार के संपादन में "समन्तभद्र" मासिक का प्रकाशन शुरु हुआ, जो शीघ्र ही "अनेकान्त" में मिल गया। मार्च 1928 में मासिक "जैन युवक" का प्रकाशन कलकत्ता से श्री विजयसिंह भांडिया के संपादन में हुआ। यह पत्र जैन समाज में चेतना एवं ओजस्वी भावनाओं का प्रसार करने वाला पत्र था। समाज-सुधार, समाज संगठन, अछूतोद्धार, शुद्धि-संस्कार सम्बन्धी तथा राजनैतिक लेखों का प्रकाशन इस पत्र में होता था। जनवरी 1928 में कलकत्ता से ओसवाल नवयुवक समिति ने मासिक "ओसवाल नवयुवक" का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस मासिक का मूल स्वर सामाजिक सुधार था। सामाजिकता के साथ-साथ संपादकीय वक्तव्यों में राष्ट्रीय भावनाओं की भी झलक दिखाई देती थी। इस पत्र के संपादन से श्रीचन्दरामपुरिया, मोहनलाल, जेठमल भंसाली, मोतीलाल नाहटा, सिद्धराज ढढ्ढा, गोपीचन्द चोपड़ा, विजयसिंह नाहर तथा भंवरमल सिंघी जैसे प्रबुद्ध विचारक जुड़े रहे। स्वतंत्रतापूर्व के उस काल में विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कोई समझौता न करने का सुन्दर उदाहरण इस पत्र के संपादकों-- श्री विजयसिंह नाहर तथा भंवरमल सिंघी ने प्रस्तुत किया। "साधुत्व" विषय पर प्रकाशित एक लेख पर हुई तीखी आलोचना पर जब पत्र संचालकों ने उन्हें भविष्य में ऐसे लेख न छापने की प्रतिज्ञा का आग्रह किया तो दोनों ने अपना त्यागपत्र दे दिया। इसी वर्ष रतनलाल मेहता के 87 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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