Book Title: Hindi Jain Patrakarita Itihas evam Mulya
Author(s): Sanjiv Bhanavat
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 2
________________ हिन्दी जैन पत्रकारिता का इतिहास एवं मूल्य का यह शैशवकाल भावी विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। इन पत्रों का मुख्य उद्देश्य अपने धर्म व मतों का प्रचार-प्रसार तो था ही किन्तु सामाजिक जागरण की दिशा में भी ये पत्र सोचने लगे थे। "जैन गजट" तथा "जैन मित्र" जैसे पत्र जो आज भी प्रकाशित हो रहे हैं, इसी युग की देन हैं। प्रथम जैन पत्र "जैन-पत्रिका" के बारे में विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है। सन 1884 में दो हिन्दी जैन पत्रों का प्रकाशन हुआ -- "जीयालाल प्रकाश" और "जैन"। "जीयालाल प्रकाश" का प्रकाशन फर्रुखनगर (हरियाणा) से हुआ। इन दोनों पत्रों का मुख्य उद्देश्य जैन मत का प्रचार-प्रसार करना था। जैनधर्म पर अन्य विचारधाराओं द्वारा किये जाने वाले प्रहार का विशेषकर स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा, इन पत्रों द्वारा विरोध किया गया। इसी वर्ष शोलापुर से रावजी सखाराम दोशी, गोरालाल शास्त्री और पन्नालाल सोनी के सम्पादकत्व में हिन्दी, मराठी भाषा का पाक्षिक "जैन बोधक" प्रारम्भ हुआ। यह पत्र अखिल भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्रीय परिषद् का पत्र था (सन् 1891 में अजमेर से "जैन प्रभाकर" का प्रकाशन हुआ, जिसका संपादन छोगालाल बिलाला करते थे। सन 1892 में "जैन हितैषी" नामक मासिक पत्र मुरादाबाद से बाब पन्नालाल ने निकाला। पहले "देश हितैषी" सन् 1903 में पं. पन्नालाल बाकलीवाल ने प्रकाशित किया, जिसे सन् 1904 में "जैन हितैषी" के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। अतः "जैन हितैषी" का जन्म भी पं. पन्नालाल बाकलीवाल के ही सम्पादन एवं प्रबन्ध में हुआ। इसका प्रमुख उद्देश्य जैन संस्कृति एवं इतिहास विषयक अनुसंधान था। यह जैनों का पहला शोध मासिक था। इसने जगह-जगह पर प्राप्त जैनागम से सम्बद्ध प्राचीन हस्तलिखित अप्रकाशित पाण्डुलिपियों की सूची प्रकाशित की।"2 बाबू पन्नालाल बाकलीवाल की "जैन हितैषी" पत्रिका हिन्दी और उर्दू लिपियों में निकलती थी। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन के शब्दों में बाकलीवाल जैन जागरण के अग्रदूतों की प्रथम पंक्ति में थे। ...छापे के आन्दोलन को उन्होंने सफल बनाया, अनेक संस्थाओं की स्थापना की। "जैन हितैषी" का उन्होंने दस वर्ष तक सम्पादन किया।"3 बाकलीवाल जी के बाद पं. नाथूराम प्रेमी इसके संपादक हुए। इनके कुशल सम्पादन में यह एक उत्कृष्ट साहित्यिक पत्र बन गया था। सामाजिक विषयों को भी इस पत्र में पर्याप्त स्थान दिया जाता रहा। यह पत्र वस्तुतः शोध एवं अनुसन्धानात्मक लेखों के प्रकाशन के कारण उस युग की "साहित्यिक प्रयोगशाला" का प्रथम एवं स्तरीय साहित्यिक पत्र बन गया था। सन् 1891 में अजमेर से "जैन प्रभाकर" का प्रकाशन हुआ। इसके संपादक छोगालाल बिलाला थे। इसी समय बाबू ज्ञानचन्द जैनी ने " जैन पत्रिका" निकालनी शुरु की। बाबू ज्ञानचन्द बहुत ही साहसी और निर्भीक थे। जैन समाज में सबसे पहले शायद उन्होंने ही विधवा विवाह की चर्चा छेड़ी थी। इस समय साम्प्रदायिक और जातीय पत्रों के प्रकाशन का सिलसिला प्रारम्भ हो गया था। इसमें अनेक पत्रों का मूल स्वर सम्प्रदाय विशेष के विचारों का प्रसार करना ही रहा। अजमेर से दिसम्बर 1895 में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा ने साप्ताहिक "जैन गजट" का प्रकाशन प्रारम्भ किया। जैनधर्म व दर्शन से सम्बद्ध लेखों के प्रकाशन के साथ-साथ इसमें जैन समाज की गतिविधियों के समाचार भी प्रकाशित किये जाते थे। बाबू सूरजभान जैन के सम्पादन में प्रारम्भ हुए इस पत्र का मुख्य उददेश्य दिगम्बर जैन महासभा की नीतियों का प्रचार-प्रसार करना था। इस पत्र ने भारत के जैन मतावलम्बियों को एक सत्र में संगठित करने तथा उनको उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। श्री 83 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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