Book Title: Hindi Granthavali
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
Publisher: Jyoti Karayalay

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Page 7
________________ पुरुष के जीवन के विषय में भी, दस-दस वर्ष की अवस्था तक उन्हें एक शब्द नहीं बतलाया गया है, तब अत्यन्त खेद हुआ। यही कारण है, कि आर्थिक स्थिति अच्छी न होने पर भी, मैंने इस ओर थोडा-सा नम्र-प्रयास करने का प्रयत्न किया। आजतक, इसी प्रकार की, यानी बालसाहित्य की ४० पुस्तकें (गुजराती में) प्रकाशित हो चुकी हैं । जिन्हें, जैन समाज की प्रत्येक श्रेणी तथा बम्बईप्रान्तीय शिक्षा विभाग ने, अपनी प्राथमिक पाठशालाओं में पुरस्कार तथा लाइब्रेरियों के लिये स्वीकृत करके, उत्तमस्थान प्रदान किया है। यही कारण है, कि थोड़े ही समय में इन पुस्तकों की लगभग १ लाख से अधिक प्रतियें प्रकाशित करने में मैं समर्थ हुआ। इन बातों को देखते हुए, यह कहा जा सकता है, कि मेरा प्रयत्न किसी अंश में सफल हुआ। यद्यपि, जैन-बन्धुओं का अधिकांशभाग, व्यापार-प्रिय होने के कारण, साहित्य की ओर उचित ध्यान नहीं देता है, तथापि अब वह समय आगया, जब कि यह उपेक्षा बिलकुल नहीं चल सकती । ऐसी पुस्तकें, बचपन से ही बालकों के हाथ में देकर उन्हें विशाल जैन-साहित्य का लाभ प्राप्त करने का स्वर्णअवसर देने में, कौन से माता-पिता चूक सकते हैं ? जिन-जिन बन्धुओं ने, आजतक इस ग्रन्थावली के साथ अपनी सहानुभूति प्रकट की है, अथवा किसी प्रकार

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