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श्री ऋषभदेव करो, झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, शील-व्रत (ब्रह्मचर्य) का पालन करो, सन्तोष से रहो, व्यसनों से दूर रहो, और साधु-सन्तों की सेवा करो। बहुत से लोग, इस धर्म का पालन करने लगे। . जो लोग उपर कहे हुए धर्म का पालन करने लगे, उनका एक संघ बन गया । इसी संघ को तीर्थ भी कहते हैं, इसी कारण, आदिनाथ प्रथम तीर्थ बनाने वाले हुए यानी पहले ' तीर्थकर ' हुए।
इस प्रकार, बहुत समय तक उपदेश देकर, वे निर्वाण-पद को प्राप्त हो गये।
श्री ऋषभदेवजी के अनेक तीर्थ हैं। शत्रुजय, आबू, राणकपुर, केसरियाजी, झगड़ियाजी-आदि।
बोलो श्री ऋषभदेव-भगवान. की जय ! बोलो श्री आदेश्वरदेव की जय ! !
-: जैन ज्योति :जैन जनताका प्रथम सचित्र कलात्मक मासिक
: तंत्री :
धीरजलाल टोकरशी शाह वार्षिक मूल्य रु. २-८-०] [एक अंक चार आना