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गये । गले में, बढ़िया - बढ़िया - मोतियों की मालाएँ पहनाई गईं । शरीर पर, अत्यन्त - सुगन्धित चन्दन का लेप किया गया । एक, अद्भुत सामग्रियों से सजे हुए सुन्दर - रथ में, दो सफेद घोड़े जोते गये और श्री नेमिनाथजी को उस रथ में बैठा
या गया ।
आगे-आगे, बाराती चले। दोनों तरफ हाथियों पर चढ़कर अमीर-उमराव लोग चले । रथ के पीछे, राजा समुद्र विजय तथा उनके भाई चले । इनके पीछे, पालकियों में बैठकर, मीठे-मीठे गीत गाती हुई, रानियें चलीं । इस बरात की अपार - शोभा का वर्णन कैसे किया जा सकता है ?
बरात, धीरे-धीरे चलने लगी । नगर के लोग, इस बरात को देखने के लिये, झुण्ड के झुण्ड एकत्रित हुए । मकानों की मंजिलें तथा छतें, बच्चों एवं स्त्रियों से खचाखच भरी थीं । बाजारों में, पुरुषों का पार ही न था ।
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इस तरह, अपनी सुन्दरता से, देखनेवालों के चित्त प्रसन्न करती हुई वह बरात, घोरे-धीरे राजा उग्रसेन के महल के समीप पहुंचने लगी ।
इवर, राजमती भी सोलह श्रृङ्गार सजकर,
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