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श्री ऋषभदेव इस प्रकार भ्रमण करते हुए, वे श्रेयांसकुमार के मकान के सामने आये । श्रेयांसकुमार, श्री ऋषभदेवजी के पुत्र बाहुबली के पौत्र थे। लोगों ने, श्री ऋषभदेवजी को चारों तरफ से घेर रखा था और कोलाहल कर रहे थे। श्रेयांसकुमार ने यह कोलाहल सुनकर, अपने सेवक से कहा-" बाहर जाकर मालूम करो, कि इतना शोर क्यों हो रहा है ? "
सेवक ने, बाहर जाकर जांच की और वापस लौटकर श्रेयांसकुमार से कहा-महाराज ! श्री ऋषभदेव-भगवान, जो आप के परदादा होते हैं, यहाँ पधारे हैं। उनके आसपास जो भीड़ एकत्रित हो रही है, उसी का यह कोलाहल है। ___ श्रेयांसकुमार, यह सुनते ही एकदम दौड़े और प्रभु के चरणों में अपना मस्तक रख दिया । उनका हृदय, भक्ति तथा आनन्द से गद्-गद् हो उठा। आनन्द के वेग में, विचार करते-करते उन्हें ध्यान आया, कि साधु को किस प्रकार की भिक्षा दी जासकती है।
इस समय, श्रेयांसकुमार के यहाँ गन्ने का रस