Book Title: Hindi Granthavali
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
Publisher: Jyoti Karayalay

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ १२ श्री ऋषभदेव मींजो, पानी में भिजोओ और दोने में लेकर खाओ, तो बदहजमी न होगी। __अब, लोग ऐसा ही करने लगे। किन्तु, थोड़े ही दिनों के बाद फिर अजीर्ण का रोग प्रारम्भ हो गया। तब, सब ने कहा-" चलो श्री ऋषभदेवजी के पास चलें, उनके सिवा हमारा भला चाहनेवाला और कौन है ?" सब मिलकर,श्री ऋषभदेवजी के पास आये और उनसे बोले-"भगवन् ! आपके कहने के मुताबिक ही हमने अन्न को सुधारकर खाया, किन्तु वह भी हजम नहीं होता।" श्री ऋषभदेवजी बोले-“भिजाये हुए अनाज को मुट्ठी में कुछ देर दाबे रहो, तब उसे खाओ।" मनुष्यों ने सोचा-" चलो, अब छुट्टी मिली।" किन्तु, थोड़े समय के बाद ही अजीर्ण फिर होने लगा । सब विचारने लगे, कि “ अब क्या करना चाहिये ?" इतने ही में, बडे जोर से हवा चली। वायु का वेग, इतना तेज़ था, कि आमने-सामने के वृक्षों की मोटी-मोटी डालिये परस्पर टकराती थी, जिनसे जबरदस्त आवाज़ होती थी। जहाँ देखो, वहीं आँधी और बवण्डर दिखाई देते थे। डालियों

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 398