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श्री ऋषभदेव मींजो, पानी में भिजोओ और दोने में लेकर खाओ, तो बदहजमी न होगी। __अब, लोग ऐसा ही करने लगे। किन्तु, थोड़े ही दिनों के बाद फिर अजीर्ण का रोग प्रारम्भ हो गया। तब, सब ने कहा-" चलो श्री ऋषभदेवजी के पास चलें, उनके सिवा हमारा भला चाहनेवाला और कौन है ?"
सब मिलकर,श्री ऋषभदेवजी के पास आये और उनसे बोले-"भगवन् ! आपके कहने के मुताबिक ही हमने अन्न को सुधारकर खाया, किन्तु वह भी हजम नहीं होता।"
श्री ऋषभदेवजी बोले-“भिजाये हुए अनाज को मुट्ठी में कुछ देर दाबे रहो, तब उसे खाओ।"
मनुष्यों ने सोचा-" चलो, अब छुट्टी मिली।" किन्तु, थोड़े समय के बाद ही अजीर्ण फिर होने लगा । सब विचारने लगे, कि “ अब क्या करना चाहिये ?" इतने ही में, बडे जोर से हवा चली। वायु का वेग, इतना तेज़ था, कि आमने-सामने के वृक्षों की मोटी-मोटी डालिये परस्पर टकराती थी, जिनसे जबरदस्त आवाज़ होती थी। जहाँ देखो, वहीं आँधी और बवण्डर दिखाई देते थे। डालियों