SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री ऋषभदेव के टकराने से पैदा हुई आवाज़ कान फाड़े डालती थी। इस तरह झाड़ों की डालियों की परस्पर रगड़ से अग्नि उत्पन्न हो गई और वह धक् धक् करके जलने लगी। बेचारे भोले मनुष्यों ने एक दूसरे से कहा"मित्र ! यह देखो, देखने के लायक यह कैसी बढ़िया-चीज़ आई है। वाह, यह तो खूब चमकती है, चलो इसे हम उठा लें।" किन्तु, ज्यों ही उसे उठाने को हाथ बढ़ाया, त्यों हो हाथ जलने लगा। " अरे बाप रे ! यह तो बहुत बुरी चीज़ है " यों कह-कहकर सब चिल्लाने लगे । फिर, सब मिलकर श्री ऋषभदेवजी के पास गये और उनसे प्रार्थना की-" नाथ ! जंगल में एक भूत आया है, वह सब को वहुत हैरान करता है; आप हम लोगों को उससे बचाने का प्रबन्ध कीजिये।" श्री ऋषभदेवजी ने कहा- उसे हाथ से मत छुओ, उसके आस-पास की घास उखाड़ डालो और उस पर लकड़ी डालते रहो। इस प्रकार उन जलती हुई लकड़ियों को इकट्ठी कर दो और उन पर तुम्हारा भिजोया हुआ अनाज पकाओ। इस तरह पकाया हुआ अनाज तुम खाओगे, तो तुम्हें फिर बदहजमी न होगी।"
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy